“कपट भाव मन में नहीं, सब से स्वभाव।
नारायण का भक्त की, लगे किनारे नव।।
ईश्वर भक्ति के स्वभाव के दुगून दुराचार आलास प्रसाद रूपी
आसुरी आचरण तथा दुखो का स्वाभाविक आभाव हो जाता है।
आसुरी आचरण तथा दुखो का स्वाभाविक आभाव हो जाता है।
ईश्वर भक्त में सद्गुण सदाचार रूपी दैवी सम्पदा के लचन अपने
आप ही आ जाते है इसमें न तो पैसे ही खर्च होते है न कोई समय
व्यय होता है और न ही कोई परिश्रम।
सयन के समय हम परमात्मा का नाम लेते है। परमात्मा के नाम
रूप गुण प्रभाव कास्मरण करते हुए सयन करना चाहिए।
रात्रि में परमात्मा विषयक है।
रूप गुण प्रभाव कास्मरण करते हुए सयन करना चाहिए।
रात्रि में परमात्मा विषयक है।
संकल्प होते रहेंगे ,इससे बुद्धि सात्त्विक होगी और हम परमात्मा के
निकट पहुचेगे। बतलाइये ,इसमें हमको क्या परिश्रम करना पड़ा
न पैसा खर्च हुआ और न समय ही।
निकट पहुचेगे। बतलाइये ,इसमें हमको क्या परिश्रम करना पड़ा
न पैसा खर्च हुआ और न समय ही।
भगवन है और मिलते है, था अंतर्यामी ,परमदयालु और सर्व
शक्तिमान है। हमें श्रद्धा के साथ भक्ति करनी चाहिए।
शक्तिमान है। हमें श्रद्धा के साथ भक्ति करनी चाहिए।
हमें भगवन पर विश्वास करना चाहिए वह अपने भक्त की अवश्य
सुनते है। भगवन सब जगह है साव जगन पर उनकी आँखे है।
सुनते है। भगवन सब जगह है साव जगन पर उनकी आँखे है।
सब जगह पर उनके काम है अतः हम जो कुछ कर रहे है,
भगवन उसे देख रहे है। और जो कुछ हम बोल रहे है उसे वे
सुन रहे है।
भगवन उसे देख रहे है। और जो कुछ हम बोल रहे है उसे वे
सुन रहे है।
भगवन सब और हाथ पैर वाला ,सब और नेत्र सिर और मुख वाला
तथा सब और कान वाला है। क्योकि वह संसार में सब को व्याप्त
करके स्थित है।
तथा सब और कान वाला है। क्योकि वह संसार में सब को व्याप्त
करके स्थित है।
वीर पुरुष वही है , जो अपने ऊपर भारी से भारी आपत्ति पड़ने
पर भी भक्त प्रह्लाद , अमरीश की भाती अपने सिद्धांत को ,कर्त्तव्य
नहीं छोड़ता।
पर भी भक्त प्रह्लाद , अमरीश की भाती अपने सिद्धांत को ,कर्त्तव्य
नहीं छोड़ता।
वरन उसपर दृणता के साथ डाटा रहता है, जरा भी विचलित नहीं
होता भगवन के सगुन और निगुण स्वरूप की प्राप्ति या ज्ञान ना
होने के कारन उसका यतार्थ
चिंतन न हो कोई हानि नहीं ,किन्तु जिव ईस्वर का अंस होने से
उसका भगवान में प्रेम स्वाभाविक होना चाहिए।
होता भगवन के सगुन और निगुण स्वरूप की प्राप्ति या ज्ञान ना
होने के कारन उसका यतार्थ
चिंतन न हो कोई हानि नहीं ,किन्तु जिव ईस्वर का अंस होने से
उसका भगवान में प्रेम स्वाभाविक होना चाहिए।
प्रातः काल और सांय काल पूजा के लिए टाइम अवश्य निकलना
चाहिए। उस समय भजन धयान ,पूजा पाट ,इस्तुति प्राथना आदि
जो कुछ भी किया जाता है वह फल दाई होता है।
चाहिए। उस समय भजन धयान ,पूजा पाट ,इस्तुति प्राथना आदि
जो कुछ भी किया जाता है वह फल दाई होता है।
भक्त अम्बरीष ने बड़े आदर पूर्वक प्राथना की थी जिसके फल
स्वरूप दुर्वासा को भी उसके सरन में आना पड़ा था।
स्वरूप दुर्वासा को भी उसके सरन में आना पड़ा था।
कौसल देख के राजा अमरीश बहोत ही धर्मात्मा ,ईस्वर भक्त और
पालक थे। अतिथि स्वागत साधु संतो की सेवा मन लगा कर करते थे।
पालक थे। अतिथि स्वागत साधु संतो की सेवा मन लगा कर करते थे।
वह फलदाई होता है भक्त अमरीश ने बड़ी आदर पूर्वक साधना
की थी जिसके फल स्वरूप दुर्वासा को भी उनके सरन में आना
पड़ा था।
की थी जिसके फल स्वरूप दुर्वासा को भी उनके सरन में आना
पड़ा था।
एक बार की बात है ऋषि दुर्वासा राजा अमरीश के पास राजा ने
बड़ी प्रसन्नता से दुर्वासा ऋषि का सम्मान किया और
भोजन पर आमंत्रित किया दुर्वासा जी अपने सीस्यो के साथ सरयू
नदी पर इस्नान करने गए उन्हें सरयू में नहाते समय उनको देर हो गई।
बड़ी प्रसन्नता से दुर्वासा ऋषि का सम्मान किया और
भोजन पर आमंत्रित किया दुर्वासा जी अपने सीस्यो के साथ सरयू
नदी पर इस्नान करने गए उन्हें सरयू में नहाते समय उनको देर हो गई।
राजा अमरीश ने ब्राह्मणो के कहने में जल पि लिया। जब नाहा धो
कर दुर्वासा ऋषि वहा पर आये और उन्हें पता लगा की राजा ने हमसे
पहले ही जल पि लिया।
कर दुर्वासा ऋषि वहा पर आये और उन्हें पता लगा की राजा ने हमसे
पहले ही जल पि लिया।
तो वे क्रोधित हो गए और उन्होंने क्रोथ में आ कर अपनी जाटा का
एक बाल तोड़ कर पृथ्वी पर पटक दिया।
एक बाल तोड़ कर पृथ्वी पर पटक दिया।
बाल के पृथ्वी पर गिरते ही एक रक्छसि पैदा हुयी। और वह अम्ब्रीष
को मरने के लिए भागी।
को मरने के लिए भागी।
महराजा अम्ब्रीश ने इस रसछासी से बचने के किये महराज विष्णु
भगवन को पुकारा भक्त की पुकार सुनकर भगवन विष्णु ने अपने
सुदर्शन चक्र को रसचि के ऊपर छोड़ दिया।
भगवन को पुकारा भक्त की पुकार सुनकर भगवन विष्णु ने अपने
सुदर्शन चक्र को रसचि के ऊपर छोड़ दिया।
सुदरसन चक्र रसचसी का वध करके दुर्वासा की ओर वड़ा। दुर्वासा
वहा से भाग खड़े हुये वे भागे भागे देवताओ के पास गए ,
परन्तु किसी ने भी उनकी पुकार नहीं सुनी सभी ने उन्हें राजा
अमरीश की सरन में जाने को कहा।
वहा से भाग खड़े हुये वे भागे भागे देवताओ के पास गए ,
परन्तु किसी ने भी उनकी पुकार नहीं सुनी सभी ने उन्हें राजा
अमरीश की सरन में जाने को कहा।
विवस हो कार दुर्वासा राजा अमरिश के पास गए और उन्होंने
गिरकर उनसे क्षमा मागि महराज अमरीश ने भगवन विष्णु से
सुदरसन चक्र वापसी के लिए निवेदन किया सुदरसन चक्र वापस
लौट गया सच है।
गिरकर उनसे क्षमा मागि महराज अमरीश ने भगवन विष्णु से
सुदरसन चक्र वापसी के लिए निवेदन किया सुदरसन चक्र वापस
लौट गया सच है।
की जो भगवान को सच्चे मन से याद करते है ,श्रद्धा के साथ
पूजा करते है , भगवान अच्छा करते है। उनकी प्राथना
सुनकर दौड़े दौड़े आते है। हमें भगवन की सच्चे मन से पूजा
अर्चना करनी चाहिए।
पूजा करते है , भगवान अच्छा करते है। उनकी प्राथना
सुनकर दौड़े दौड़े आते है। हमें भगवन की सच्चे मन से पूजा
अर्चना करनी चाहिए।
दुःख में सुमिरन सब कराइ , सुख में कराइ न कोय।
जो सुख में सुमिरन कराइ , दुःख काहे को होय। ।
Published By – Kaushlendra Kumar