बनमानुस खानसामा मुंशी प्रेमचंद

बनमानुस खानसामा मुंशी प्रेमचंद

बनमानुस खानसामा मुंशी प्रेमचंद

कुछ दिन हुए इलाहाबाद में एक सरकस आाया था। उसमें और तो बहुत से जानवर थे, मगर एक बनमानुस बहुत होशियार था, उसे लोग डिक नाम से पुकारते ये।

मालिक ने उसे ऐसा सिखाया था कि वह घर का सब काम कर लेता। हां, बोलने से लाचार था। उसके मालिक की स्त्री मर चुकी थी, सिर्फ एक छोटा-सा बच्चा था। जब मालिक कहीं चला जाता, तो डिक ही उस बच्चे की रखवाली करता था।

मालिक के नौकरों में तीन आदमी बड़े शैतान और कामचोर थे। एक दिन तमाशा हो रहा था; पर तीनों आदमी शराब के नशे में चूर पड़े हुए थे । जब इनके काम करने का वक्‍त आया तो उनका कहीं पता नहीं ।

मालिक बहुत घबड़ाया । बहुत तलाश करने पर तीनों एक कोठरी में मिले । मगर इस दशा में वे कर ही क्या सकते थे। तमाशा बरबाद हो गया । तमाशा खतम होते ही मालिक ने उन तीनों को डांटा और निकाल दिया ।

बनमानुस खानसामा मुंशी प्रेमचंद

 चाहिए तो यह था कि वे अपने किये पर पछताते और मालिक से अपराध क्षमा कराते, मगर वे उलटे बिगड़ उठे और मालिक से इस बेइज्जती का बदला लेने की फिक्र सोचने लगे।

एक दिन तीनों बदमाश इसी घात में बैठे हुए थे कि डिक बच्चे को उसकी छोटी-सी गाड़ी पर बिठाकर घुमाने निकला । डिक को देखते ही तीनों उसके पास पहुँचे और एक ने डिक को तमंचा दिखाया, बाकी दोनों आदमी बच्चे को लेकर भाग खड़े हुए ।

डिक बड़ा समझदार था । उसने सोचा कि अगर इस वक्त रोकता हूं तो मेरी भी जान जायगी और बच्चे की भी । वह चुप चाप वहीं खड़ा रहा । जब वह तीनों बच्चे को लेकर कुछ दूर निकल गये, तो वह एक पेड़ पर चढ़ गया कि देखें यह सब क्या करते हैं ।

बनमानुस खानसामा मुंशी प्रेमचंद

वे ज्यों-ज्यों आगे बढ़ते जाते थे, डिक भी एक से दूसरे पेड़ पर और दूसरे से तीसरे पेड़ पर कूद कूदकर उनका पीछा करता जाता था। आखिर वे सब रेल- गाड़ी की पटरियों तक पहुँच गये।

वहाँ वे बच्वे को रेलगाड़ी की पटरियों के बीचवाली लकड़ी पर लिटाकर दूर से तमाशा देखने के लिये खड़े हो गये । बच्चे के हाथ-पाँव बंधे थे, इसलिये वह हिल भी न सकता था । डिक भी चुपके से उतरा और एक झाड़ी की आड़ में छिप गया ।

अरे रेरे ! यह तो गजब हुआ ! वह दूर से गाड़ी चली आ रही है । बच्चे की जान अब कैसे बचेगी ? अब क्या उपाय है? अगर डिक बच्चे के पास जाता है, तो शायद ये तीनों शैतान देख लें और तमंचे से मार डालें ।

बनमानुस खानसामा मुंशी प्रेमचंद

ज्यादा सोचने का मौका न था। थोड़ी ही दूर पर प्वाईंट सिगनल था इसके सिवा कोई दूसरा उपाय न था । डिक को सिगनल की क्रिया मालूम थी। उसने पहले कई बार आदमियों को गाड़ी को एक पटरी से दूसरी पटरी पर लाते देखा था ।

गाड़ी बच्चे से बहुत करीब आ गई थी। मुसाफिरों ने देखा कि एक बच्चा पटरी पर पड़ा हुआ है । ड्रायवर की निगाह भी बच्चे पर पड़ी। वह ब्रेक को कसने लगा, लेकिन गाड़ी का एकदम रुकना मुश्किल था।

वह रुकते रुकते भी बच्चे के सिर पर आ जायगी । ठीक उसी वक़्त डिक ने प्वायंट सिगनल को खींचा। गाड़ी दूसरी लायन पर चली गई । डिक दौड़ता हुआ आया और बच्चे को गोद में लेकर भागा ।

बनमानुस खानसामा मुंशी प्रेमचंद

बदमाश लोग दिल में खुश हो रहे थे कि आज दिली मुराद पूरी हुई। एकाएक उन्‍होंने देखा कि डिक बच्चे को लिये भागा जा रहा है। वे उसके पीछे दौड़ने लगे । बच्चे की वजह से डिक तेज न दौड़ सकता था। तीनों आदमी उसके करीब होते जाते थे। मगर डिक ने हिम्मत न छोड़ी, यहाँ तक कि सरकस का तम्बू सामने आ गया।

एकाएक दन से एक गोली उसकी पीठ पर लगी। आवाज़ सुनते ही मालिक तम्बू से निकल आया तो देखता है कि डिक बच्चे को लिये पीठ झुकाये लंगड़ाता चला आता है। मालिक ने आगे बढ़कर बच्चे को लिया । उसी वक्‍त डिक ज़मीन पर गिर पड़ा और नमक का हक अदा करके इस दुनिया से रुखसत हो गया।

इतने में सरकस के कई आदमी उन तीनों बदमाशों को पकड़े हुए उसके सामने लाये। उन तीनों को देखकर वह सब कुछ समझ गया और डिक की छाती पर लोटकर बालक की तरह रोने लगा ।

 

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