भ्रस्टाचार : भ्रस्टाचार एक सामाजिक समस्या

भ्रस्टाचार : भ्रस्टाचार एक सामाजिक समस्या
भ्रस्टाचार : भ्रस्टाचार एक सामाजिक समस्या

प्रस्तावना –

भारतवर्ष में इस समय समस्याओ की बाढ़ आई हुई है। राजनितिक , धर्म , की नहीं बल्कि वैयक्तिक तथा पारिवारिक परिवेश भी समस्याओ से घिरा हुआ है , तथा उससे जूझ रहा है , इन समस्याओ से घिरी मानवता दिन-दिन दम तोड़ रही है। भवन बन रहे है। कारखाने लग रहे है।, भीड़ बढ़ रही है परन्तु मानव खोता जा रहा है , छोटा होता जा रहा है। क्योकि, भ्रष्टाचार का दवान प्रत्येक जगह फैल रहा है, उसका गाला घोट रहा है। यह ठीक है की मानव मनोविज्ञान के अनुसार मानव में सद तथा असद वृतिया सदा से ही रही है। किन्तु जब जब असद वृतिया बड़ी है, भ्रष्टाचार पनपा है।

 

भ्रष्टाचार का अर्थ –

भ्रष्टाचार शब्द भ्रष्ट + आचार दो शब्दों के योग से बना है। ‘भ्रष्ट ‘ शब्द का अर्थ है बिगड़ा हुआ अर्थात निकृष्ट कोटि की विचारधारा। ‘अचार’ का अर्थ है आचरण। दूसरे शब्दों में भ्रष्टाचार से तात्पर्य निन्दनीय आचरण से है, जिसके बस में होकर व्यक्ति अपने कर्त्तव्य को भूलकर अनुचित रूप से लाभ प्राप्त करता है।

 

भ्रष्टाचार का जन्म –

भारतवर्ष में प्राचीन काल से भ्रष्टाचार की घटनाए सुनी चली आ रही है। चाणक्य के अर्थशास्त्र में भ्रष्ट अधिकारियो का उल्लेख मिलता है। उसके पस्चात गुप्त साम्राज्य और मुग़ल साम्राज्य का जहा तक प्रश्न है , उसका अंत तो उसके भ्रष्ट और अत्याचारी अघिकारियों के कारण हुआ। परन्तु भ्रष्टाचार में सबसे बड़ी बृद्धि ईस्ट इंडिया कम्पनी के इस्थापना के बाद हुई है। पहले तो अग्रेजो ने अपने लिए सुविघा प्राप्त काटने के लिए भारतीय अघिकारियों को भ्रष्ट किया। उसके बाद जब भारत स्वतन्त्र हो गया और भारतीयों का स्वयं का शासन स्थापित हो गया तो वे स्वयं भी इस परम्परा को बढ़ाते गए।

 

भ्रष्टाचार वृद्धि के प्रमुख कारण –

भ्रष्टाचार वृद्धि के अनेक कारण है , उनमे सत्ता का स्वाद जो राजनीतज्ञों को प्राप्त हुआ प्रमुख है। लार्ड एक्टन का कहना है कि सत्ता भ्रष्ट करती है और पूर्ण सत्ता पूर्ण भ्रष्ट करती है। भारत की िस्थति में पूर्णतया सत्या प्रतीत होता है। स्वार्थ और कामना इस रोग के मूल कारण है। इसके अतिरिक्त अन्य कारण है – लोगो की अजीविया के साधनो की कमी का होना, जनसख्या में तीव्रगति से वृद्धि होना, फैसन का बढ़ना, शिच्छा की कमी होना, झूठी सन सौकत बनाये रखना, महगाई का तेजी से बढ़ना व सामाजिक कुरीतियों यथा दहेज़-प्रथा, बड़े-बड़े भोज अदि का तेजी से फैलना। इस भौतिकवादी युग में मानव अभिक धन का संग्रह करने का इच्छुक रहता है। इसी लिए वह भ्रष्ट तरीके अपनाकर धन प्राप्त करना कहता है भ्रष्टाचार को बढ़ाने ने राजनितिक डालो का काम हाथ नहीं है। राजनितिक दाल अनेक प्रकार से बिभिन्न सख्याओ में धन प्राप्त करते है और उनका समर्थन करते है। भारत में इन कारणों से भ्रष्टाचार तेजी से बढ़ता जा रहा है।

 

राजनितिक और भ्रष्टाचार –

आज भारत की राजनितिक पूणतया भ्रष्ट है। राजनितिक भ्रस्टाचार को जन्म देने में ब्यापरी वर्ग का सबसे बड़ा हाथ है। वे बड़ी बड़ी धनराशियाँ देखर उससे दस गुना रियासते प्राप्त करते है। इससे एक ओर राजनितिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है तो दोस्ती ओर समाज पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसलिए ब्यापारी वर्ग अपने लाभ के लिए मिलावट , चोरबाजारी तथा मुनाफा खोरी अदि सभी साधनो का सहारा लेता है। और सत्ता प्रतिष्ठान इसे रोकने में कठिनाई और हिचक अनुभव करता है। इसके अतिरिक्त भारत में प्रशासनिक भ्रस्टाचार भी पूर्णतया व्याप्त है प्रशासनिक भ्रस्टाचार में पुलिस सबसे अग्रणी है। परन्तु अभी जो नए तथ्य सामने आए है उनसे पता चलता है की देश की सबसे बड़ी प्रशासनिक सेवा आई. ए. एस. के अधिकारी भी भ्रष्ट आचरण तथा घूसखोरी से अछूते नहीं रहे। बुराई तथा दुराचारी की आदते ऊपर से आती है। ‘ यथा राजा तथा प्रजा ‘ एक पुराणी कहावत है। जब नेता ही अनजारी, दुरात्मा तथा घूसखोर होंगे तो उनके अधीनस्थ कर्मचारियो से सदाचरण की उम्मीदे कैसे की जा सकती है। बोफोर्स तोपों का मामला अभी तक ठंडा नहीं हुआ। कही हवाला कांड, कही चारा कांड तो कही अपनों को चुन चुनकर आर्थिक अनुदान देना और पुलिस बालो में केवल एक जाती के लोगो का भर्ती करना भ्रष्टाचार के उदाहरण है।

 

भ्रष्टाचार के रूप –

आज भ्रष्टाचार दो रूपों में दिखाई देता है – सरकारी तन्त्र तथा व्यक्ति समुदाय के रूप में। आज मानव भौतिक सुखो के पीछे बहुत तीव्र गति से भाग रहा है। उन सुखो को पाने की चिंता में वह अच्छे बुरे का विवेक खो बैठा है। निजी हित तथा लाभ प्राप्ति किस तरह से हो इसकी चिंता उसे सताती रहती है। अपनी इस चिंता को दूर करने के लिए नैकिकता का सहारा लेकर अनैतिकता की ओर अग्रसर होता है। जबकि यह कार्य मानव शरीर के एक दम विपरीत है, फिर भी वह ऐसा करने को बाध्य है। सरकारी या गैर सरकारी, छोटे बड़े सभी कर्मचारी अपने जीवन को अधिक सुखद एवं विलासी बनाने के लिए धन संचय में लगे रहते है। इसके लिए वे सभी प्रकार के अनैतिक कार्यो का सहारा लेते है। तब भ्रष्टाचार हमारी आत्म-लिप्सा तथा स्वार्थ-भावना के परिणाम है। अर्थात इन्ही से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।

 

भ्रष्टाचार के परिणाम –

बिना रिशवत के फाइन एक मेज से दूसरे मेज तक नहीं पहुँचती , लाइसेंस का मिलना तो और भी कठिन है। आदमी अपनी जमींन पर अपना घर नहीं बना सकता, उसे पीने का पानी तथा विधुत नहीं मिल सकती, जब तक सम्बंधित क्लर्क, जूनियर इंजीनियर को खुस नहीं किया जाता। इसके विपरीत रिस्वत देकर सरकारी जमीं पर चार चार मंजिला बिल्डिंग बन जाती है। किस क्षेत्र की बात करे, शिक्षा सबसे पवित्र क्षेत्र माना गया है, परन्तु भारत में तो उसका ही सबसे बुरा हाल है

 

भ्रष्टाचार दूर करने के उपाय –

भ्रस्टाचार को रोकने के लिए धार्मिक, नैतिक एवं सदाचार जैसी सिद्धान्तों को अपनाया जाए। सर्वप्रथम तो हमे भ्रस्टाचार को मिटाने के लिए कृत संकल्प होना चाहिए। भ्रष्टाचार जैसे सामाजिक रोग से बचने के लिए हमें भौतिकता के स्थान पर आध्यात्मिकताप्रचार करना चाहिए। प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति को रोजगार दिया जाए, तो उसे जीवन यापन करने के लिए भ्रष्ट टिके नहीं करने पड़ेगे। राजनीतिज्ञों का दैनिक प्रशासन में हस्ताक्षेप बंद करना होगा। जनसँख्या में कमी, भौतिकता एवं स्वार्थपरता की बृद्धि में कमी तथा सर्कार की राजनीती शख्ती लानी होगी तथा महगाई को ख़त्म करना होगा।

उपसंहार –

हमें भ्रष्टाचार रूपी दानव को शीघ्रता से कुचलना होगा। यदि हम ऐसा नहीं कर पाए तो परिणाम होगा की हिंसक, असामाजिक व अराजक तत्व चारो ओर खुले आम अपनी मनमानी करने लगेंगे तथा स्थति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी। अतः हमें भ्रष्टाचार से जीवन को मुक्त करने के लिए युद्ध जैसे कार्य करने की आवश्कता है। भ्रष्टाचार रोग का एक निदान है – मन का निरोग होना। मान तभी निरोग होगा, जब हम अंदर और बहार से मन को भ्रष्टाचार की ओर ले जाने वाले पशु – वृतियो को इंद्रिय सयम द्वारा त्यागमय जीवन का आनंद लगे।

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