वाक्य विचार(Syntax) की परिभाषा हिंदी में (2021)

वाक्य विचार(Syntax) की परिभाषा हिंदी में (2021)

वाक्य विचार की परिभाषा (Syntax) –

जिस शब्द समूह से वक्ता या लेखक का पूर्ण अभिप्राय श्रोता या पाठक को समझ में आ जाए, उसे वाक्य कहते हैं।

 

दूसरे शब्दों में – विचार को पूर्णता से प्रकट करनेवाली एक क्रिया से युक्त पद-समूह को ‘वाक्य’ कहते हैं।

सरल शब्दों में – वह शब्द समूह जिससे पूरी बात समझ में आ जाये, ‘वाक्य’ कहलाता हैै। जैसे- विजय खेल रहा है, बालिका नाच रही हैैै।

 

आचार्य विश्वनाथ ने अपने ‘साहित्यदर्पण’ में लिखा है –

”वाक्यं स्यात् योग्यताकांक्षासक्तियुक्त: पदोच्चय:। अर्थात वाक्य ऐसे पदसमूह का नाम है जिसमें योग्यता, आकांक्षा और आसक्ति (सामीप्य) ये तीनों वर्तमान हों। उसे वाक्य कहते हैं।

वाक्य के भाग – 

वाक्य के दो भेद होते है

(1) उद्देश्य (Subject)
(2) विद्येय (Predicate)

 

(1) उद्देश्य (Subject) :-

वाक्य का वह भाग है, जिसमें किसी व्यक्ति या वस्तु के बारे में कुछ कहा जाए, उसे उद्देश्य कहते हैं।

 

सरल शब्दों में – वाक्य में जिसके विषय में कुछ कहा जाये उसे उद्देश्य कहते हैं।

जैसे – पूनम किताब पढ़ती है। सचिन दौड़ता है।

इस वाक्य में पूनम और सचिन के विषय में बताया गया है। अतः ये उद्देश्य है। इसके अंतर्गत कर्ता और कर्ता का विस्तार आता है

जैसे – ‘परिश्रम करने वाला व्यक्ति’ सदा सफल होता है। इस वाक्य में कर्ता (व्यक्ति) का विस्तार ‘परिश्रम करने वाला’ है। उद्देश्य के रूप में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया-विशेषण क्रियाद्योतक और वाक्यांश आदि आते हैं।

जैसे –

1. संज्ञा- मोहन गेंद खेलता है।
2. सर्वनाम- वह घर जाता है।
3. विशेषण- बुद्धिमान सदा सच बोलते हैं।
4. क्रिया-विशेषण- पीछे मत देखो।
5. क्रियार्थक संज्ञा- तैरना एक अच्छा व्यायाम है।
6. वाक्यांश- भाग्य के भरोसे बैठे रहना कायरों का काम है।
7. कृदन्त- लकड़हारा लकड़ी बेचता है।

उद्देश्य के भाग –

उद्देश्य के दो भाग होते है

(i) कर्ता
(ii) कर्ता का विशेषण या कर्ता से संबंधित शब्द।

 

उद्देश्य का विस्तार-

उद्देश्य की विशेषता प्रकट करनेवाले शब्द या शब्द-समूह को उद्देश्य का विस्तार कहते हैं। उद्देश्य के विस्तारक शब्द विशेषण, सम्बन्धवाचक, समानाधिकरण, क्रियाद्योतक और वाक्यांश आदि होते हैं।

जैसे-

1. विशेषण- ‘दुष्ट’ लड़के ऊधम मचाते हैं।
2. सम्बन्धकारक- ‘मोहन का’ घोड़ा घास खाता है।
3. विशेषणवत्प्रयुक्त शब्द- ‘सोये हुए’ शेर को जगाना अच्छा नहीं होता।
4. क्रियाद्योतक- ‘खाया मुँह और नहाया बदन’ छिपता नहीं है। ‘दौड़ता हुआ’ बालक गिर गया।
5. वाक्यांश- ‘दिन भर का थका हुआ’ लड़का लेटते ही सो गया।
6. प्रश्न से- ‘कैसा’ काम होता है ?
7. सम्बोधन- ‘हे राम!’ तुम क्या कर रहे हो ?

विशेष –

सम्बोधन का प्रयोग ऐसे वाक्यों में भी होता है, जहाँ वाक्य का कर्त्ता और सम्बोधित व्यक्ति भिन्न-भिन्न होते हैं।

जैसे – हे गरुड़ ! राम की माया ही ऐसी है !

इस वाक्य में गरुड़ तथा वाक्य का कर्त्ता ‘माया’ भिन्न-भिन्न हैं। ऐसे वाक्यों में सम्बोधन के बाद ‘तुम सुनो’ आदि छिपा रहता है, ये सम्बोधन ‘तू’, ‘तुम’ अथवा ‘आप’ के विस्तार होते हैं।

 

(2) विद्येय (Predicate) :-

उद्देश्य के विषय में जो कुछ कहा जाता है, उसे विद्येय कहते है। जैसे- पूनम किताब पढ़ती है। इस वाक्य में ‘किताब पढ़ती’ है विधेय है क्योंकि पूनम (उद्देश्य )के विषय में कहा गया है।

दूसरे शब्दों में – वाक्य के कर्ता (उद्देश्य) को अलग करने के बाद वाक्य में जो कुछ भी शेष रह जाता है, वह विधेय कहलाता है। इसके अंतर्गत विधेय का विस्तार आता है।

जैसे – लंबे-लंबे बालों वाली लड़की ‘अभी-अभी एक बच्चे के साथ दौड़ते हुए उधर गई’ । इस वाक्य में विधेय (गई) का विस्तार ‘अभी-अभी एक बच्चे के साथ दौड़ते हुए उधर’ है।

विशेष – आज्ञासूचक वाक्यों में विद्येय तो होता है किन्तु उद्देश्य छिपा होता है।

जैसे – वहाँ जाओ। खड़े हो जाओ। इन दोनों वाक्यों में जिसके लिए आज्ञा दी गयी है वह उद्देश्य अर्थात ‘वहाँ न जाने वाला ‘(तुम) और ‘खड़े हो जाओ’ (तुम या आप) अर्थात उद्देश्य दिखाई नही पड़ता वरन छिपा हुआ है।

विधेय के भाग –

विधेय के छः भाग होते है

(i)   क्रिया
(ii)  क्रिया के विशेषण
(iii) कर्म
(iv) कर्म के विशेषण या कर्म से संबंधित शब्द
(v)  पूरक
(vi) पूरक के विशेषण।

 

विधेय के प्रकार –

विधेय दो प्रकार के होते हैं।

(i) साधारण विधेय

(ii) जटिल विधेय

 

(i) साधारण विधेय –

साधारण विधेय में केवल एक क्रिया होती है।

जैसे – राम पढ़ता हैं। वह लिखती है।

(ii) जटिल विधेय –

जब विधेय के साथ पूरक शब्द प्रयुक्त होते हैं, तो विधेय को जटिल विधेय कहते हैं।
पूरक के रूप में आनेवाला शब्द संज्ञा, विशेषण, सम्बन्धवाचक तथा क्रिया-विशेषण होता हैं।

जैसे-

1. संज्ञा : मेरा बड़ा भाई ‘दुकानदार’ है।
2. विशेषण : वह आदमी ‘सुस्त’ है।
3. सम्बन्धवाचक : ये पाँच सौ रुपये ‘तुम्हारे’ हुए।
4. ‘क्रिया-विशेषण’ : आप ‘कहाँ’ थे।

 

विधेय का विस्तार (Predicate and its Extension) –

विधेय की विशेषता प्रकट करनेवाले शब्द-समूह को विधेय का विस्तार कहते हैं। विधेय का विस्तार निम्नलिखित प्रकार से होते हैं-

1. कर्म द्वारा : वह ‘रामायण’ पढ़ता है।
2. विशेषण द्वारा : वह ‘प्रसन्न’ हो गया।
3. क्रिया-विशेषण द्वारा : मोहन ‘धीरे-धीरे’ पढ़ता है।
4. सम्बन्धसूचक द्वारा : नाव यात्रियों ‘सहित’ डूब गया।
5. क्रियाद्योतक द्वारा : वह हाथ में ‘गेंद लिए’ जाता है।
6. क्रियाविशेषणवत् प्रयुक्त शब्द द्वारा : वह ‘अच्छा’ गाता है।
7. पूर्वकालिक क्रिया द्वारा : मोहन ‘पढ़कर’ सो गया।
8. पद वाक्यांश द्वारा : ‘मोहन भोजन करने के बाद ही’ सो गया।

कुछ कारकों के द्वारा –

(कर्त्ता, कर्म और सम्बन्ध के अतिरिक्त)

(क) करण कारक : राम ने रावण को ‘वाण’ से मारा।
(ख) सम्प्रदान कारक : राम ने ‘दरिद्रों के लिए’ घर छोड़ा।
(ग) अपादान कारक : वह ‘पेड़ से’ गिर पड़ा।
(घ) अधिकरण कारक : हनुमान जी ‘राक्षसों पर’ टूट पड़े।

 

नीचे की तालिका से उद्देश्य तथा विधेय सरलता से समझा जा सकता है-

 

वाक्य उद्देश्य विधेय
गाय घास खाती है गाय घास खाती है।
सफेद गाय हरी घास खाती है। सफेद गाय हरी घास खाती है।

 

वाक्य के भेद –

(1) वाक्य के भेद –

रचना के आधार पर रचना के आधार पर वाक्य के तीन भेद होते है-

(i)  साधरण वाक्य या सरल वाक्य (Simple Sentence)
(ii) मिश्रित वाक्य (Complex Sentence)
(iii) संयुक्त वाक्य (Compound Sentence)

 

(i) साधरण वाक्य या सरल वाक्य :-

जिन वाक्य में एक ही क्रिया होती है, और एक कर्ता होता है, वे साधारण वाक्य कहलाते है।

दूसरे शब्दों में – जिन वाक्यों में केवल एक ही उद्देश्य और एक ही विधेय होता है, उन्हें साधारण वाक्य या सरल वाक्य कहते हैं। इसमें एक ‘उद्देश्य’ और एक ‘विधेय’ रहते हैं।

जैसे – ‘बिजली चमकती है’, ‘पानी बरसा’ । इन वाक्यों में एक-एक उद्देश्य, अर्थात कर्ता और विधेय, अर्थात क्रिया है। अतः, ये साधारण या सरल वाक्य हैं।

 

(ii) मिश्रित वाक्य :-

जिस वाक्य में एक से अधिक वाक्य मिले हों किन्तु एक प्रधान उपवाक्य तथा शेष आश्रित उपवाक्य हों, मिश्रित वाक्य कहलाता है।

सरल शब्दों में – जिस वाक्य में मुख्य उद्देश्य और मुख्य विधेय के अलावा एक या अधिक समापिका क्रियाएँ हों, उसे ‘मिश्रित वाक्य’ कहते हैं।

जब दो ऐसे वाक्य मिलें जिनमें एक मुख्य उपवाक्य (Principal Clause) तथा एक गौण अथवा आश्रित उपवाक्य (Subordinate Clause) हो, तब मिश्र वाक्य बनता है।

जैसे-

मेरा दृढ़ विश्वास है कि भारत जीतेगा।
सफल वही होता है जो परिश्रम करता है।
उपर्युक्त वाक्यों में ‘मेरा दृढ़ विश्वास है कि’ तथा ‘सफल वही होता है’ मुख्य उपवाक्य हैं और ‘भारत जीतेगा’ तथा ‘जो परिश्रम करता है’ गौण उपवाक्य। इसलिए ये मिश्र वाक्य हैं।

दूसरे शब्दों मेें – जिन वाक्यों में एक प्रधान (मुख्य) उपवाक्य हो और अन्य आश्रित (गौण) उपवाक्य हों तथा जो आपस में ‘कि’; ‘जो’; ‘क्योंकि’; ‘जितना’; ‘उतना’; ‘जैसा’; ‘वैसा’; ‘जब’; ‘तब’; ‘जहाँ’; ‘वहाँ’; ‘जिधर’; ‘उधर’; ‘अगर/यदि’; ‘तो’; ‘यद्यपि’; ‘तथापि’; आदि से मिश्रित (मिले-जुले) हों उन्हें मिश्रित वाक्य कहते हैं।

इनमे एक मुख्य उद्देश्य और मुख्य विधेय के अलावा एक से अधिक समापिका क्रियाएँ होती है।

 

जैसे – मैं जनता हूँ कि तुम्हारे अक्षर अच्छे नहीं बनते। जो लड़का कमरे में बैठा है वह मेरा भाई है। यदि परिश्रम करोगे तो उत्तीर्ण हो जाओगे।

‘मिश्र वाक्य’ के ‘मुख्य उद्देश्य’ और ‘मुख्य विधेय’ से जो वाक्य बनता है, उसे ‘मुख्य उपवाक्य’ और दूसरे वाक्यों को आश्रित उपवाक्य’ कहते हैं। पहले को ‘मुख्य वाक्य’ और दूसरे को ‘सहायक वाक्य’ भी कहते हैं। सहायक वाक्य अपने में पूर्ण या सार्थक नहीं होते, पर मुख्य वाक्य के साथ आने पर उनका अर्थ निकलता हैं।

 

(iii) संयुक्त वाक्य :-

जिस वाक्य में दो या दो से अधिक उपवाक्य मिले हों, परन्तु सभी वाक्य प्रधान हो तो ऐसे वाक्य को संयुक्त वाक्य कहते है।

दूसरे शब्दो में – जिन वाक्यों में दो या दो से अधिक सरल वाक्य योजकों (और, एवं, तथा, या, अथवा, इसलिए, अतः, फिर भी, तो, नहीं तो, किन्तु, परन्तु, लेकिन, पर आदि) से जुड़े हों, उन्हें संयुक्त वाक्य कहते है।

सरल शब्दों में – जिस वाक्य में साधारण अथवा मिश्र वाक्यों का मेल संयोजक अवयवों द्वारा होता है, उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं।

जैसे – वह सुबह गया और शाम को लौट आया। प्रिय बोलो पर असत्य नहीं। उसने बहुत परिश्रम किया किन्तु सफलता नहीं मिली।

 

संयुक्त वाक्य उस वाक्य –

समूह को कहते हैं, जिसमें दो या दो से अधिक सरल वाक्य अथवा मिश्र वाक्य अव्ययों द्वारा संयुक्त हों। इस प्रकार के वाक्य लम्बे और आपस में उलझे होते हैं।

जैसे – ‘मैं रोटी खाकर लेटा कि पेट में दर्द होने लगा, और दर्द इतना बढ़ा कि तुरन्त डॉक्टर को बुलाना पड़ा।’ इस लम्बे वाक्य में संयोजक ‘और’ है,

इसी प्रकार ‘मैं आया और वह गया’ इस वाक्य में दो सरल वाक्यों को जोड़नेवाला संयोजक ‘और’ है। यहाँ यह याद रखने की बात है कि संयुक्त वाक्यों में प्रत्येक वाक्य अपनी स्वतन्त्र सत्ता बनाये रखता है,

वह एक-दूसरे पर आश्रित नहीं होता, केवल संयोजक अव्यय उन स्वतन्त्र वाक्यों को मिलाते हैं। इन मुख्य और स्वतन्त्र वाक्यों को व्याकरण में ‘समानाधिकरण’ उपवाक्य भी कहते हैं।

 

(2) वाक्य के भेद –

अर्थ के आधार पर अर्थ के आधार पर वाक्य मुख्य रूप से आठ प्रकार के होते है

(i)     सरल वाक्य (Affirmative Sentence)
(ii)    निषेधात्मक वाक्य (Negative Semtence)
(iii)   प्रश्नवाचक वाक्य (Interrogative Sentence)
(iv)   आज्ञावाचक वाक्य (Imperative Sentence)
(v)    संकेतवाचक वाक्य (Conditional Sentence)
(vi)   विस्मयादिबोधक वाक्य (Exclamatory Sentence)
(vii)  विधानवाचक वाक्य (Assertive Sentence)
(viii)  इच्छावाचक वाक्य (IIIative Sentence)

 

(i)सरल वाक्य :-

वे वाक्य जिनमे कोई बात साधरण ढंग से कही जाती है, सरल वाक्य कहलाते है।
जैसे – राम ने बाली को मारा। राधा खाना बना रही है।

 

(ii) निषेधात्मक वाक्य :-

जिन वाक्यों में किसी काम के न होने या न करने का बोध हो उन्हें निषेधात्मक वाक्य कहते है।

जैसे – आज वर्षा नही होगी। मैं आज घर जाऊॅंगा।

 

(iii)प्रश्नवाचक वाक्य :-

वे वाक्य जिनमें प्रश्न पूछने का भाव प्रकट हो, प्रश्नवाचक वाक्य कहलाते है।
जैसे – राम ने रावण को क्यों मारा? तुम कहाँ रहते हो ?

 

(iv) आज्ञावाचक वाक्य :-

जिन वाक्यों से आज्ञा प्रार्थना, उपदेश आदि का ज्ञान होता है, उन्हें आज्ञावाचक वाक्य कहते है।

जैसे – वर्षा होने पर ही फसल होगी। परिश्रम करोगे तो फल मिलेगा ही। बड़ों का सम्मान करो।


(v) संकेतवाचक वाक्य :-

जिन वाक्यों से शर्त्त (संकेत) का बोध होता है यानी एक क्रिया का होना दूसरी क्रिया पर निर्भर होता है, उन्हें संकेतवाचक वाक्य कहते है।

जैसे – यदि परिश्रम करोगे तो अवश्य सफल होंगे। पिताजी अभी आते तो अच्छा होता। अगर वर्षा होगी तो फसल भी होगी।

 

(vi) विस्मयादिबोधक वाक्य :-

जिन वाक्यों में आश्चर्य, शोक, घृणा आदि का भाव ज्ञात हो उन्हें विस्मयादिबोधक वाक्य कहते है।

जैसे- वाह! तुम आ गये। हाय! मैं लूट गया।

 

(vii) विधानवाचक वाक्य :-

जिन वाक्यों में क्रिया के करने या होने की सूचना मिले, उन्हें विधानवाचक वाक्य कहते है।

जैसे – मैंने दूध पिया। वर्षा हो रही है। राम पढ़ रहा है।

 

(viii) इच्छावाचक वाक्य :-

जिन वाक्यों से इच्छा, आशीष एवं शुभकामना आदि का ज्ञान होता है, उन्हें इच्छावाचक वाक्य कहते है।

जैसे – तुम्हारा कल्याण हो। आज तो मैं केवल फल खाऊँगा। भगवान तुम्हें लंबी उमर दे।

 

वाक्य के अनिवार्य तत्व – 

वाक्य में निम्नलिखित छ तत्व अनिवार्य है

(1) सार्थकता
(2) योग्यता
(3) आकांक्षा
(4) निकटता
(5) क्रम
(6) अन्वय

 

(1) सार्थकता –

सार्थकता वाक्य का प्रमुख गुण है। इसके लिए आवश्यक है कि वाक्य में सार्थक शब्दों का ही प्रयोग हो, तभी वाक्य भावाभिव्यक्ति के लिए सक्षम होगा।
जैसे- राम रोटी पीता है।

यहाँ ‘रोटी पीना’ सार्थकता का बोध नहीं कराता, क्योंकि रोटी खाई जाती है। सार्थकता की दृष्टि से यह वाक्य अशुद्ध माना जाएगा।

सार्थकता की दृष्टि से सही वाक्य होगा –  राम रोटी खाता है।

इस वाक्य को पढ़ते ही पाठक के मस्तिष्क में वाक्य की सार्थकता उपलब्ध हो जाती है। कहने का आशय है कि वाक्य का यह तत्त्व रचना की दृष्टि से अनिवार्य है। इसके अभाव में अर्थ का अनर्थ सम्भव है।

 

(2) योग्यता –

वाक्य में सार्थक शब्दों के भाषानुकूल क्रमबद्ध होने के साथ-साथ उसमें योग्यता अनिवार्य तत्त्व है। प्रसंग के अनुकूल वाक्य में भावों का बोध कराने वाली योग्यता या क्षमता होनी चाहिए। इसके आभाव में वाक्य अशुद्ध हो जाता है।

जैसे – हिरण उड़ता है।
यहाँ पर हिरण और उड़ने की परम्पर योग्यता नहीं है, अतः यह वाक्य अशुद्ध है। यहाँ पर उड़ता के स्थान पर चलता या दौड़ता लिखें तो वाक्य शुद्ध हो जाएगा।

वाक्य लिखते या बोलते समय निम्नलिखित बातों पर निश्चित रूप से ध्यान देना चाहिए-

(a) पद प्रकृति –

विरुद्ध नहीं हो : हर एक पद की अपनी प्रकृति (स्वभाव/धर्म) होती है। यदि कोई कहे मैं आग खाता हूँ। हाथी ने दौड़ में घोड़े को पछाड़ दिया।

उक्त वाक्यों में पदों की प्रकृतिगत योग्यता की कमी है। आग खायी नहीं जाती। हाथी घोड़े से तेज नहीं दौड़ सकता।

इसी जगह पर यदि कहा जाय-
मैं आम खाता हूँ।
घोड़े ने दौड़ में हाथी को पछाड़ दिया।
तो दोनों वाक्यों में योग्यता आ जाती है।

(b) बात –

समाज, इतिहास, भूगोल, विज्ञान आदि विरुद्ध न हो : वाक्य की बातें समाज, इतिहास, भूगोल, विज्ञान आदि सम्मत होनी चाहिए; ऐसा नहीं कि जो बात हम कह रहे हैं, वह इतिहास आदि विरुद्ध है। जैसे-
दानवीर कर्ण द्वारका के राजा थे।

महाभारत 25 दिन तक चला।
भारत के उत्तर में श्रीलंका है।
ऑक्सीजन और हाइड्रोजन के परमाणु परस्पर मिलकर कार्बनडाई ऑक्साइड बनाते हैं।

(3) आकांक्षा –

आकांक्षा का अर्थ है – इच्छा। एक पद को सुनने के बाद दूसरे पद को जानने की इच्छा ही ‘आकांक्षा’ है। यदि वाक्य में आकांक्षा शेष रहा जाती है तो उसे अधूरा वाक्य माना जाता है; क्योंकि उससे अर्थ पूर्ण रूप से अभिव्यक्त नहीं हो पाता है।

जैसे – यदि कहा जाय।

‘खाता है’ तो स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि क्या कहा जा रहा है- किसी के भोजन करने की बात कही जा रही है या Bank के खाते के बारे में ?

(4) निकटता –

बोलते तथा लिखते समय वाक्य के शब्दों में परस्पर निकटता का होना बहुत आवश्यक है, रूक-रूक कर बोले या लिखे गए शब्द वाक्य नहीं बनाते। अतः वाक्य के पद निरंतर प्रवाह में पास-पास बोले या लिखे जाने चाहिए।

जैसे –

गंगा……………….. पश्चिम
से …………………………………. पूरब
         की ओर बहती है।

गंगा पश्चिम से पूरब की ओर बहती है।

घेरे के अन्दर पदों के बीच की दूरी और समयान्तराल असमान होने के कारण वे अर्थ-ग्रहण खो देते हैं; जबकि नीचे उन्हीं पदों को समान दूरी और प्रवाह में रखने के कारण वे पूर्ण अर्थ दे रहे हैं।

अतएव, वाक्य को स्वाभाविक एवं आवश्यक बलाघात आदि के साथ बोलना पूर्ण अर्थ की अभिव्यक्ति के लिए आवश्यक है।

(5) क्रम –

क्रम से तात्पर्य है – पदक्रम। सार्थक शब्दों को भाषा के नियमों के अनुरूप क्रम में रखना चाहिए। वाक्य में शब्दों के अनुकूल क्रम के अभाव में अर्थ का अनर्थ हो जाता है।
जैसे – नाव में नदी है।

इस वाक्य में सभी शब्द सार्थक हैं, फिर भी क्रम के अभाव में वाक्य गलत है। सही क्रम करने पर नदी में नाव है वाक्य बन जाता है, जो शुद्ध है।

(6) अन्वय –

अन्वय का अर्थ है कि पदों में व्याकरण की दृष्टि से लिंग, पुरुष, वचन, कारक आदि का सामंजस्य होना चाहिए। अन्वय के अभाव में भी वाक्य अशुद्ध हो जाता है। अतः अन्वय भी वाक्य का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है।

जैसे – नेताजी का लड़का का हाथ में बन्दूक था।

इस वाक्य में भाव तो स्पष्ट है लेकिन व्याकरणिक सामंजस्य नहीं है। अतः यह वाक्य अशुद्ध है। यदि इसे नेताजी के लड़के के हाथ में बन्दूक थी, कहें तो वाक्य व्याकरणिक दृष्टि से शुद्ध होगा।

 

वाक्य-विग्रह (Analysis) –

वाक्य-विग्रह (Analysis) – वाक्य के विभिन्न अंगों को अलग-अलग किये जाने की प्रक्रिया को वाक्य-विग्रह कहते हैं। इसे ‘वाक्य-विभाजन’ या ‘वाक्य-विश्लेषण’ भी कहा जाता है।

सरल वाक्य का विग्रह करने पर एक उद्देश्य और एक विद्येय बनते है। संयुक्त वाक्य में से योजक को हटाने पर दो स्वतंत्र उपवाक्य (यानी दो सरल वाक्य) बनते हैं। मिश्र वाक्य में से योजक को हटाने पर दो अपूर्ण उपवाक्य बनते है।

सरल वाक्य = 1 उद्देश्य + 1 विद्येय
संयुक्त वाक्य = सरल वाक्य + सरल वाक्य
मिश्र वाक्य = प्रधान उपवाक्य + आश्रित उपवाक्य

 

वाक्यों का रूपान्तरण –

किसी वाक्य में अर्थ परिवर्तन किए बिना उसकी संचरना में परिवर्तन की प्रक्रिया वाक्यों का रूपान्तरण कहलाती है। एक प्रकार के वाक्य को दूसरे प्रकार के वाक्यों में बदलना वाक्य परिवर्तन या वाक्य रचनान्तरण कहलाता है। अर्थ में परिवर्तन लाए बिना वाक्य की रचना में परिवर्तन किया जा सकता है।

सरल वाक्यों से संयुक्त अथवा मिश्र वाक्य बनाए जा सकते हैं। इसी प्रकार संयुक्त अथवा मिश्र वाक्यों को सरल वाक्यों में बदला जा सकता है। ध्यान रखिए कि इस परिवर्तन के कारण कुछ शब्द, योजक चिह्न या संबंधबोधक लगाने या हटाने पड़ सकते हैं।

वाक्य परिवर्तन की प्रक्रिया में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि वाक्य का केवल प्रकार बदला जाए, उसका अर्थ या काल आदि नहीं।

 

वाक्य परिवर्तन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें –

वाक्य परिवर्तन करते समय निम्नलिखित बातें ध्यान रखनी चाहिए।

(i) केवल वाक्य रचना बदलनी चाहिए, अर्थ नहीं।
(ii) सरल वाक्यों को मिश्र या संयुक्त वाक्य बनाते समय कुछ शब्द या सम्बन्धबोधक अव्यय अथवा योजक आदि से जोड़ना। जैसे- क्योंकि, कि, और, इसलिए, तब आदि।
(iii) संयुक्त/मिश्र वाक्यों को सरल वाक्यों में बदलते समय योजक शब्दों या सम्बन्धबोधक अव्ययों का लोप करना।

 

सरल वाक्य से संयुक्त वाक्य में परिवर्तन –

(1) सरल वाक्य –

अस्वस्थ रहने के कारण वह परीक्षा में सफल न हो सका।

संयुक्त वाक्य – वह अस्वस्थ था और इसलिए परीक्षा में सफल न हो सका।

 

(2) सरल वाक्य –

सूर्योदय होने पर कुहासा जाता रहा।

संयुक्त वाक्य – सूर्योदय हुआ और कुहासा जाता रहा।

 

(3) सरल वाक्य –

गरीब को लूटने के अतिरिक्त उसने उसकी हत्या भी कर दी।

संयुक्त वाक्य – उसने न केवल गरीब को लूटा, बल्कि उसकी हत्या भी कर दी।

 

(4) सरल वाक्य –

पैसा साध्य न होकर साधन है।

संयुक्त वाक्य – पैसा साध्य नहीं है, किन्तु साधन है।

 

(5) सरल वाक्य –

अपने गुणों के कारण उसका सब जगह आदर-सत्कार होता है।

संयुक्त वाक्य – उसमें गुण थे इसलिए उसका सब जगह आदर-सत्कार होता था।

 

(6) सरल वाक्य –

दोनों में से कोई काम पूरा नहीं हुआ।

संयुक्त वाक्य – न एक काम पूरा हुआ न दूसरा।

 

(7) सरल वाक्य –

पंगु होने के कारण वह घोड़े पर नहीं चढ़ सकता।

संयुक्त वाक्य – वह पंगु है इसलिए घोड़े पर नहीं चढ़ सकता।

 

(8) सरल वाक्य –

परिश्रम करके सफलता प्राप्त करो।

संयुक्त वाक्य – परिश्रम करो और सफलता प्राप्त करो।

(9) सरल वाक्य –

रमेश दण्ड के भय से झूठ बोलता रहा।

संयुक्त वाक्य – रमेश को दण्ड का भय था, इसलिए वह झूठ बोलता रहा।

 

(10) सरल वाक्य –

वह खाना खाकर सो गया।

संयुक्त वाक्य – उसने खाना खाया और सो गया।

 

(11) सरल वाक्य –

उसने गलत काम करके अपयश कमाया।

संयुक्त वाक्य – उसने गलत काम किया और अपयश कमाया।


संयुक्त वाक्य से सरल वाक्य में परिवर्तन –

 

(1) संयुक्त वाक्य – सूर्योदय हुआ और कुहासा जाता रहा।

सरल वाक्य – सूर्योदय होने पर कुहासा जाता रहा।

 

(2) संयुक्त वाक्य – जल्दी चलो, नहीं तो पकड़े जाओगे।

सरल वाक्य – जल्दी न चलने पर पकड़े जाओगे।

 

(3) संयुक्त वाक्य – वह धनी है पर लोग ऐसा नहीं समझते।

सरल वाक्य- लोग उसे धनी नहीं समझते।

 

(4) संयुक्त वाक्य – वह अमीर है फिर भी सुखी नहीं है।

सरल वाक्य – वह अमीर होने पर भी सुखी नहीं है।

 

(5) संयुक्त वाक्य – बाँस और बाँसुरी दोनों नहीं रहेंगे।

सरल वाक्य – न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी।

 

(6) संयुक्त वाक्य – राजकुमार ने भाई को मार डाला और स्वयं राजा बन गया।

सरल वाक्य – भाई को मारकर राजकुमार राजा बन गया।

सरल वाक्य से मिश्र वाक्य में परिवर्तन –

 

(1) सरल वाक्य – उसने अपने मित्र का पुस्तकालय खरीदा।

मिश्र वाक्य – उसने उस पुस्तकालय को खरीदा, जो उसके मित्र का था।

 

(2) सरल वाक्य – अच्छे लड़के परिश्रमी होते हैं।

मिश्र वाक्य – जो लड़के अच्छे होते है, वे परिश्रमी होते हैं।

 

(3) सरल वाक्य – लोकप्रिय कवि का सम्मान सभी करते हैं।

मिश्र वाक्य – जो कवि लोकप्रिय होता है, उसका सम्मान सभी करते हैं।

 

(4) सरल वाक्य – लड़के ने अपना दोष मान लिया।

मिश्र वाक्य – लड़के ने माना कि दोष उसका है।

 

(5) सरल वाक्य – राम मुझसे घर आने को कहता है।

मिश्र वाक्य – राम मुझसे कहता है कि मेरे घर आओ।

 

(6) सरल वाक्य – मैं तुम्हारे साथ खेलना चाहता हूँ।

मिश्र वाक्य – मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे साथ खेलूँ।

 

(7) सरल वाक्य – आप अपनी समस्या बताएँ।

मिश्र वाक्य – आप बताएँ कि आपकी समस्या क्या है ?

 

(8) सरल वाक्य – मुझे पुरस्कार मिलने की आशा है।

मिश्र वाक्य – आशा है कि मुझे पुरस्कार मिलेगा।

 

(9) सरल वाक्य – महेश सेना में भर्ती होने योग्य नहीं है।

मिश्र वाक्य – महेश इस योग्य नहीं है कि सेना में भर्ती हो सके।

 

(10) सरल वाक्य – राम के आने पर मोहन जाएगा।

मिश्र वाक्य – जब राम जाएगा तब मोहन आएगा।

 

(11) सरल वाक्य – मेरे बैठने की जगह कहाँ है ?

मिश्र वाक्य – वह जगह कहाँ है जहाँ मैं बैठूँ ?

 

(12) सरल वाक्य – मैं तुम्हारे साथ व्यापार करना चाहता हूँ।

मिश्र वाक्य – मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे साथ व्यापार करूँ।

 

मिश्र वाक्य से सरल वाक्य में परिवर्तन-

 

(1) मिश्र वाक्य – उसने कहा कि मैं निर्दोष हूँ।

सरल वाक्य – उसने अपने को निर्दोष घोषित किया।

 

(2) मिश्र वाक्य – मुझे बताओ कि तुम्हारा जन्म कब और कहाँ हुआ था।

सरल वाक्य – तुम मुझे अपने जन्म का समय और स्थान बताओ।

 

(3) मिश्र वाक्य – जो छात्र परिश्रम करेंगे, उन्हें सफलता अवश्य मिलेगी।

सरल वाक्य – परिश्रमी छात्र अवश्य सफल होंगे।

 

(4) मिश्र वाक्य – ज्यों ही मैं वहाँ पहुँचा त्यों ही घण्टा बजा।

सरल वाक्य – मेरे वहाँ पहुँचते ही घण्टा बजा।

 

(5) मिश्र वाक्य – यदि पानी न बरसा तो सूखा पड़ जाएगा।

सरल वाक्य – पानी न बरसने पर सूखा पड़ जाएगा।

 

(6) मिश्र वाक्य – उसने कहा कि मैं निर्दोष हूँ।

सरल वाक्य – उसने अपने को निर्दोष बताया।

 

(7) मिश्र वाक्य – यह निश्चित नहीं है कि वह कब आएगा?

सरल वाक्य – उसके आने का समय निश्चित नहीं है।

 

(8) मिश्र वाक्य – जब तुम लौटकर आओगे तब मैं जाऊँगा।

सरल वाक्य – तुम्हारे लौटकर आने पर मैं जाऊँगा।

 

(9) मिश्र वाक्य – जहाँ राम रहता है वहीं श्याम भी रहता है।

सरल वाक्य – राम और श्याम साथ ही रहते हैं।

 

(10) मिश्र वाक्य – आशा है कि वह साफ बच जाएगा।

सरल वाक्य – उसके साफ बच जाने की आशा है।

 

संयुक्त वाक्य से मिश्र वाक्य में परिवर्तन –

 

(1) संयुक्त वाक्य – सूर्य निकला और कमल खिल गए।

मिश्र वाक्य – जब सूर्य निकला, तो कमल खिल गए।

 

(2) संयुक्त वाक्य – छुट्टी की घंटी बजी और सब छात्र भाग गए।

मिश्र वाक्य – जब छुट्टी की घंटी बजी, तब सब छात्र भाग गए।

 

(3) संयुक्त वाक्य – काम पूरा कर डालो नहीं तो जुर्माना होगा।

मिश्र वाक्य – यदि काम पूरा नहीं करोगे तो जुर्माना होगा।

(4)संयुक्त वाक्य – इस समय सर्दी है इसलिए कोट पहन लो।

मिश्र वाक्य – क्योंकि इस समय सर्दी है, इसलिए कोट पहन लो।

 

(5) संयुक्त वाक्य – वह मरणासन्न था, इसलिए मैंने उसे क्षमा कर दिया।

मिश्र वाक्य – मैंने उसे क्षमा कर दिया, क्योंकि वह मरणासन्न था।

 

(6) संयुक्त वाक्य – वक्त निकल जाता है पर बात याद रहती है।

मिश्र वाक्य – भले ही वक्त निकल जाता है, फिर भी बात याद रहती है।

 

(7) संयुक्त वाक्य – जल्दी तैयार हो जाओ, नहीं तो बस चली जाएगी।

मिश्र वाक्य – यदि जल्दी तैयार नहीं होओगे तो बस चली जाएगी।

 

(8) संयुक्त वाक्य – इसकी तलाशी लो और घड़ी मिल जाएगी।

मिश्र वाक्य – यदि इसकी तलाशी लोगे तो घड़ी मिल जाएगी।

(9) संयुक्त वाक्य – सुरेश या तो स्वयं आएगा या तार भेजेगा।

मिश्र वाक्य – यदि सुरेश स्वयं न आया तो तार भेजेगा।

 

मिश्र वाक्य से संयुक्त वाक्य में परिवर्तन –

 

(1) मिश्र वाक्य – वह उस स्कूल में पढ़ा जो उसके गाँव के निकट था।

संयुक्त वाक्य – वह स्कूल में पढ़ा और वह स्कूल उसके गाँव के निकट था।

 

(2) मिश्र वाक्य – मुझे वह पुस्तक मिल गई है जो खो गई थी।

संयुक्त वाक्य – वह पुस्तक खो गई थी परन्तु मुझे मिल गई है।

 

(3) मिश्र वाक्य – जैसे ही उसे तार मिला वह घर से चल पड़ा।

संयुक्त वाक्य – उसे तार मिला और वह तुरन्त घर से चल पड़ा।

(4) मिश्र वाक्य – काम समाप्त हो जाए तो जा सकते हो।

संयुक्त वाक्य – काम समाप्त करो और जाओ।

 

(5) मिश्र वाक्य – मुझे विश्वास है कि दोष तुम्हारा है।

संयुक्त वाक्य – दोष तुम्हारा है और इसका मुझे विश्वास है।

 

(6) मिश्र वाक्य – आश्चर्य है कि वह हार गया।

संयुक्त वाक्य – वह हार गया परन्तु यह आश्चर्य है।

 

(7) मिश्र वाक्य – जैसा बोओगे वैसा काटोगे।

संयुक्त वाक्य – जो जैसा बोएगा वैसा ही काटेगा।

 

कर्तृवाचक से कर्मवाचक वाक्य में परिवर्तन –

 

(1) कर्तृवाचक वाक्य – लड़का रोटी खाता है।

कर्मवाचक वाक्य – लड़के से रोटी खाई जाती है।

 

(2) कर्तृवाचक वाक्य – तुम व्याकरण पढ़ाते हो।

कर्मवाचक वाक्य – तुमसे व्याकरण पढ़ाया जाता है।

 

(3) कर्तृवाचक वाक्य – मोहन गीत गाता है।

कर्मवाचक वाक्य – मोहन से गीत गाया जाता है।

 

अर्थ की दृष्टि से वाक्य में परिवर्तन –

अर्थ की दृष्टि से वाक्य के आठ भेद हम पढ़ चुके हैं। उनका भी रूपान्तरण हो सकता है। एक वाक्य का उदाहरण देखिए-

विधानवाचक – अनुपमा पुस्तक पढ़ेगी।
निषेधवाचक – अनुपमा पुस्तक नहीं पढ़ेगी।
प्रश्नवाचक – क्या अनुपमा पुस्तक पढ़ेगी ?
विस्मयवाचक – अरे! अनुपमा पुस्तक पढ़ेगी।
आज्ञावाचक – अनुपमा, पुस्तक पढ़ो।
इच्छावाचक – अनुपमा पुस्तक पढ़ती होगी।
संकेतवाचक – अनुपमा पुस्तक पढ़े तो ……

 

विधिवाचक से निषेधवाचक वाक्य में परिवर्तन –

 

(1) विधिवाचक वाक्य – वह मुझसे बड़ा है।

निषेधवाचक – मैं उससे बड़ा नहीं हूँ।

 

(2) विधिवाचक वाक्य – अपने देश के लिए हरएक भारतीय अपनी जान देगा।

निषेधवाचक वाक्य – अपने देश के लिए कौन भारतीय अपनी जान न देगा ?

 

विधानवाचक वाक्य से निषेधवाचक वाक्य में परिवर्तन –

 

(1) विधानवाचक वाक्य – यह प्रस्ताव सभी को मान्य है।

निषेधवाचक – इस प्रस्ताव के विरोधाभास में कोई नहीं है।

 

(2) विधानवाचक वाक्य – तुम असफल हो जाओगे।

निषेधवाचक – तुम सफल नहीं हो पाओगे।

(3) विधानवाचक वाक्य – शेरशाह सूरी एक बहादुर बादशाह था।

निषेधवाचक – शेरशाह सूरी से बहादुर कोई बादशाह नहीं था।

 

(4) विधानवाचक वाक्य – रमेश सुरेश से बड़ा है।

निषेधवाचक – रमेश सुरेश से छोटा नहीं है।

 

(5) विधानवाचक वाक्य – शेर गुफा के अन्दर रहता है।

निषेधवाचक – शेर गुफा के बाहर नहीं रहता है।

 

(6) विधानवाचक वाक्य – मुझे सन्देह हुआ कि यह पत्र आपने लिखा।

निषेधवाचक – मुझे विश्वास नहीं हुआ कि यह पत्र आपने लिखा।

 

(7) विधानवाचक वाक्य – मुगल शासकों में अकबर श्रेष्ठा था।

निषेधवाचक – मुगल शासकों में अकबर से बढ़कर कोई नहीं था।

 

निश्चयवाचक वाक्य से प्रश्नवाचक वाक्य में परिवर्तन –

 

(1) निश्चयवाचक – आपका भाई यहाँ नहीं हैं।

प्रश्नवाचक – आपका भाई कहाँ है ?

 

(2) निश्चयवाचक – किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।

प्रश्नवाचक – किस पर भरोसा किया जाए ?

 

(3) निश्चयवाचक – गाँधीजी का नाम सबने सुन रखा है।

प्रश्नवाचक – गाँधीजी का नाम किसने नहीं सुना?

 

(4) निश्चयवाचक – तुम्हारी पुस्तक मेरे पास नहीं हैं।

प्रश्नवाचक – तुम्हारी पुस्तक मेरे पास कहाँ है?

 

(5) निश्चयवाचक – तुम किसी न किसी तरह उत्तीर्ण हो गए।

प्रश्नवाचक – तुम कैसे उत्तीर्ण हो गए?

 

(6) निश्चयवाचक – अब तुम बिल्कुल स्वस्थ हो गए हो।

प्रश्नवाचक – क्या तुम अब बिल्कुल स्वस्थ हो गए हो?

 

(7) निश्चयवाचक – यह एक अनुकरणीय उदाहरण है।

प्रश्नवाचक – क्या यह अनुकरणीय उदाहरण नहीं हैं?

 

विस्मयादिबोधक वाक्य से विधानवाचक वाक्य में परिवर्तन –

 

(1) विस्मयादिबोधक – वाह! कितना सुन्दर नगर है!

विधानवाचक वाक्य – बहुत ही सुन्दर नगर है!

 

(2) विस्मयादिबोधक – काश! मैं जवान होता।

विधानवाचक वाक्य – मैं चाहता हूँ कि मैं जवान होता।

 

(3) विस्मयादिबोधक – अरे! तुम फेल हो गए।

विधानवाचक वाक्य – मुझे तुम्हारे फेल होने से आश्चर्य हो रहा है।

 

(4) विस्मयादिबोधक – ओ हो! तुम खूब आए।

विधानवाचक वाक्य – मुझे तुम्हारे आगमन से अपार ख़ुशी है।

 

(5) विस्मयादिबोधक – कितना क्रूर!

विधानवाचक वाक्य – वह अत्यन्त क्रूर है।

 

(6) विस्मयादिबोधक – क्या! मैं भूल कर रहा हूँ!

विधानवाचक वाक्य – मैं तो भूल नहीं कर रहा।

 

(7) विस्मयादिबोधक – हाँ हाँ! सब ठीक है।

विधानवाचक वाक्य – मैं अपनी बात का अनुमोदन करता हूँ।

 

वाक्य रचना के कुछ सामान्य नियम

”व्याकरण-सिंद्ध पदों को मेल के अनुसार यथाक्रम रखने को ही ‘वाक्य-रचना’ कहते है।” वाक्य का एक पद दूसरे से लिंग, वचन, पुरुष, काल आदि का जो संबंध रखता है, उसे ही ‘मेल’ कहते हैं। जब वाक्य में दो पद एक ही लिंग-वचन-पुरुष-काल और नियम के हों तब वे आपस में मेल, समानता या सादृश्य रखनेवाले कहे जाते हैं।
 
निर्दोष वाक्य लिखने के कुछ नियम हैं। इनकी सहायता से शुद्ध वाक्य लिखने का प्रयास किया जा सकता है।
सुन्दर वाक्यों की रचना के लिए 
(1) क्रम (Order) 
(2) अन्वय (Co-ordination)  
(3) प्रयोग (Use) 

(1) क्रम (order)

किसी वाक्य के सार्थक शब्दों को यथास्थान रखने की क्रिया को ‘क्रम’ अथवा ‘पदक्रम’ कहते हैं। इसके कुछ सामान्य नियम इस प्रकार हैं-
(i) हिंदी वाक्य के आरम्भ में कर्ता, मध्य में कर्म और अन्त में क्रिया होनी चाहिए।
जैसे- मोहन ने भोजन किया।
यहाँ कर्ता ‘मोहन’, कर्म ‘भोजन’ और अन्त में क्रिया ‘क्रिया’ है।
(ii) उद्देश्य या कर्ता के विस्तार को कर्ता के पहले और विधेय या क्रिया के विस्तार को विधेय के पहले रखना चाहिए। 
जैसे- अच्छे लड़के धीरे-धीरे पढ़ते हैं।
(iii) कर्ता और कर्म के बीच अधिकरण, अपादान, सम्प्रदान और करण कारक क्रमशः आते हैं।
जैसे- मुरारि ने घर में (अधिकरण) आलमारी से (अपादान) श्याम के लिए (सम्प्रदान) हाथ से (करण) पुस्तक निकाली।
(iv) सम्बोधन आरम्भ में आता है।
जैसे- हे प्रभु, मुझपर दया करें।
(v) विशेषण विशेष्य या संज्ञा के पहले आता है।
जैसे- मेरी उजली कमीज कहीं खो गयी।

(vi) क्रियाविशेषण क्रिया के पहले आता है।
जैसे- वह तेज दौड़ता है।

 

(vii) प्रश्रवाचक पद या शब्द उसी संज्ञा के पहले रखा जाता है, जिसके बारे में कुछ पूछा जाय।
जैसे- क्या मोहन सो रहा है ?
टिप्पणी- यदि संस्कृत की तरह हिंदी में वाक्यरचना के साधारण क्रम का पालन न किया जाय, तो इससे कोई क्षति अथवा अशुद्धि नहीं होती। फिर भी, उसमें विचारों का एक तार्किक क्रम ऐसा होता है, जो एक विशेष रीति के अनुसार एक-दूसरे के पीछे आता है।

क्रम-संबंधी कुछ अन्य बातें

 

(1) प्रश्नवाचक शब्द को उसी के पहले रखना चाहिए, जिसके विषय में मुख्यतः प्रश्न किया जाता है।
जैसे- वह कौन व्यक्ति है ?
वह क्या बनाता है ?
(2) यदि पूरा वाक्य ही प्रश्नवाचक हो तो ऐसे शब्द (प्रश्नसूचक) वाक्यारंभ में रखना चाहिए।
जैसे- क्या आपको यही बनना था ?
(3) यदि ‘न’ का प्रयोग आदर के लिए आए तो प्रश्नवाचक का चिह्न नहीं आएगा और ‘न’ का प्रयोग अंत में होगा।
जैसे- आप बैठिए न।
आप मेरे यहाँ पधारिए न।
(4) यदि ‘न’ क्या का अर्थ व्यक्त करे तो अंत में प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग करना चाहिए और ‘न’ वाक्यान्त में होगा।
जैसे- वह आज-कल स्वस्थ है न ?
आप वहाँ जाते हैं न ?
(5) पूर्वकालिक क्रिया मुख्य क्रिया के पहले आती है।
जैसे- वह खाकर विद्यालय जाता है।
शिक्षक पढ़ाकर घर जाते हैं।
(6) विस्मयादिबोधक शब्द प्रायः वाक्यारंभ में आता है।
जैसे- वाह ! आपने भी खूब कहा है।
ओह ! यह दर्द सहा नहीं जा रहा है।

(2) अन्वय (मेल)

अन्वय’ में लिंग, वचन, पुरुष और काल के अनुसार वाक्य के विभित्र पदों (शब्दों) का एक-दूसरे से सम्बन्ध या मेल दिखाया जाता है। यह मेल कर्ता और क्रिया का, कर्म और क्रिया का तथा संज्ञा और सर्वनाम का होता हैं।

कर्ता और क्रिया का मेल

(i) यदि कर्तृवाचक वाक्य में कर्ता विभक्तिरहित है, तो उसकी क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष कर्ता के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार होंगे।
जैसे- करीम किताब पढ़ता है।
सोहन मिठाई खाता है।
रीता घर जाती है।
(ii) यदि वाक्य में एक ही लिंग, वचन और पुरुष के अनेक विभक्तिरहित कर्ता हों और अन्तिम कर्ता के पहले ‘और’ संयोजक आया हो, तो इन कर्ताओं की क्रिया उसी लिंग के बहुवचन में होगी।
जैसे- मोहन और सोहन सोते हैं।
आशा, उषा और पूर्णिमा स्कूल जाती हैं।
(iii) यदि वाक्य में दो भित्र लिंगों के कर्ता हों और दोनों द्वन्द्वसमास के अनुसार प्रयुक्त हों तो उनकी क्रिया पुंलिंग बहुवचन में होगी।
जैसे- नर-नारी गये।
राजा-रानी आये।
स्त्री-पुरुष मिले।
माता-पिता बैठे हैं।
(iv) यदि वाक्य में दो भित्र-भित्र विभक्तिरहित एकवचन कर्ता हों और दोनों के बीच ‘और’ संयोजक आये, तो उनकी क्रिया पुंलिंग और बहुवचन में होगी।
जैसे- राधा और कृष्ण रास रचते हैं।
बाघ और बकरी एक घाट पानी पीते हैं।
(v) यदि वाक्य में दोनों लिंगों और वचनों के अनेक कर्ता हों, तो क्रिया बहुवचन में होगी और उनका लिंग अन्तिम कर्ता के अनुसार होगा।
जैसे- एक लड़का, दो बूढ़े और अनेक लड़कियाँ आती हैं।
एक बकरी, दो गायें और बहुत-से बैल मैदान में चरते हैं।
(vi) यदि वाक्य में अनेक कर्ताओं के बीच विभाजक समुच्चयबोधक अव्यय ‘या’ अथवा ‘वा’ रहे तो क्रिया अन्तिम कर्ता के लिंग और वचन के अनुसार होगी।
जैसे- घनश्याम की पाँच दरियाँ वा एक कम्बल बिकेगा।
हरि का एक कम्बल या पाँच दरियाँ बिकेंगी।
मोहन का बैल या सोहन की गायें बिकेंगी।
(vii) यदि उत्तमपुरुष, मध्यमपुरुष और अन्यपुरुष एक वाक्य में कर्ता बनकर आयें तो क्रिया उत्तमपुरुष के अनुसार होगी।
जैसे- वह और हम जायेंगे।
हरि, तुम और हम सिनेमा देखने चलेंगे।
वह, आप और मैं चलूँगा।
गुरूजी का मत है कि वाक्य में पहले मध्यमपुरुष प्रयुक्त होता है, उसके बाद अन्यपुरुष और अन्त में उत्तमपुरुष।
जैसे- तुम, वह और मैं जाऊँगा।

कर्म और क्रिया का मेल

(i) यदि वाक्य में कर्ता ‘ने’ विभक्ति से युक्त हो और कर्म की ‘को’ विभक्ति न हो, तो उसकी क्रिया कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार होगी।
जैसे- आशा ने पुस्तक पढ़ी।
हमने लड़ाई जीती।
उसने गाली दी। मैंने रूपये दिये।
तुमने क्षमा माँगी।
(ii) यदि कर्ता और कर्म दोनों विभक्तिचिह्नों से युक्त हों, तो क्रिया सदा एकवचन पुंलिंग और अन्यपुरुष में होगी।
जैसे- मैंने कृष्ण को बुलाया।
तुमने उसे देखा।
स्त्रियों ने पुरुषों को ध्यान से देखा।
(iii) यदि कर्ता ‘को’ प्रत्यय से युक्त हो और कर्म के स्थान पर कोई क्रियार्थक संज्ञा आए तो क्रिया सदा पुंलिंग, एकवचन और अन्यपुरुष में होगी।
जैसे- तुम्हें (तुमको) पुस्तक पढ़ना नहीं आता।
अलका को रसोई बनाना नहीं आता।
उसे (उसको) समझकर बात करना नहीं आता।
(iv) यदि एक ही लिंग-वचन के अनेक प्राणिवाचक विभक्तिरहित कर्म एक साथ आएँ, तो क्रिया उसी लिंग में बहुवचन में होगी।
जैसे- श्याम ने बैल और घोड़ा मोल लिए।
तुमने गाय और भैंस मोल ली।
(v) यदि एक ही लिंग-वचन के अनेक प्राणिवाचक-अप्राणिवाचक अप्रत्यय कर्म एक साथ एकवचन में आयें, तो क्रिया भी एकवचन में होगी।
जैसे- मैंने एक गाय और एक भैंस खरीदी।
सोहन ने एक पुस्तक और एक कलम खरीदी।
मोहन ने एक घोड़ा और एक हाथी बेचा।
(vi) यदि वाक्य में भित्र-भित्र लिंग के अनेक प्रत्यय कर्म आयें और वे ‘और’ से जुड़े हों, तो क्रिया अन्तिम कर्म के लिंग और वचन में होगी।
जैसे- मैंने मिठाई और पापड़ खाये।
उसने दूध और रोटी खिलाई।
 

संज्ञा और सर्वनाम का मेल

(i) सर्वनाम में उसी संज्ञा के लिंग और वचन होते हैं, जिसके बदले वह आता है; परन्तु कारकों में भेद रहता है।
जैसे- प्रखर ने कहा कि मैं जाऊँगा।
शीला ने कहा कि मैं यहीं रूकूँगी।
(ii) संपादक, ग्रंथकार, किसी सभा का प्रतिनिधि और बड़े-बड़े अधिकारी अपने लिए ‘मैं’ की जगह ‘हम’ का प्रयोग करते हैं।
जैसे- हमने पहले अंक में ऐसा कहा था।
हम अपने राज्य की सड़कों को स्वच्छ रखेंगे।
(iii) एक प्रसंग में किसी एक संज्ञा के बदले पहली बार जिस वचन में सर्वनाम का प्रयोग करे, आगे के लिए भी वही वचन रखना उचित है।
जैसे- अंकित ने संजय से कहा कि मैं तुझे कभी परेशान नहीं करूँगा।
तुमने हमारी पुस्तक लौटा दी हैं।
मैं तुमसे 
बहुत नाराज नहीं हूँ। (अशुद्ध वाक्य है।)
पहली बार अंकित के लिए ‘मैं’ का और संजय के लिए ‘तू’ का प्रयोग हुआ है तो अगली बार भी ‘तुमने’ की जगह ‘तूने’, ‘हमारी’ की जगह ‘मेरी’ और ‘तुमसे’ की जगह ‘तुझसे’ का प्रयोग होना चाहिए : अंकित ने संजय से कहा कि मैं तुझे कभी परेशान नहीं करूँगा। तूने मेरी पुस्तक लौटा दी है। मैं तुझसे बहुत नाराज नहीं हूँ। (शुद्ध वाक्य)
(iv) संज्ञाओं के बदले का एक सर्वनाम वही लिंग और वचन लेगा जो उनके समूह से समझे जाएँगे।
जैसे- शरद् और संदीप खेलने गए हैं; परन्तु वे शीघ्र ही आएँगे।
श्रोताओं ने जो उत्साह और आनंद प्रकट किया उसका वर्णन नहीं हो सकता।
(v) ‘तू’ का प्रयोग अनादर और प्यार के लिए होता है।
जैसे- रे नृप बालक, कालबस बोलत तोहि न संभार।
धनुही सम त्रिपुरारिधनु विदित सकल संसार।। (गोस्वामी तुलसीदास)
तोहि- तुझसे
अरे मूर्ख ! तू यह क्या कर रहा है ?(अनादर के लिए)
अरे बेटा, तू मुझसे क्यों रूठा है ? (प्यार के लिए)
तू धार है नदिया की, मैं तेरा किनारा हूँ।
(vi) मध्यम पुरुष में सार्वनामिक शब्द की अपेक्षा अधिक आदर सूचित करने लिए किसी संज्ञा के बदले ये प्रयुक्त होते हैं-
(a) पुरुषों के लिए : महाशय, महोदय, श्रीमान्, महानुभाव, हुजूर, हुजुरवाला, साहब, जनाब इत्यादि।
(b) स्त्रियों के लिए : श्रीमती, महाशया, महोदया, देवी, बीबीजी आदि।

(vii) आदरार्थ अन्य पुरुष में ‘आप’ के बदले ये शब्द आते हैं-
(a) पुरुषों के लिए : श्रीमान्, मान्यवर, हुजूर आदि।
(b) स्त्रियों के लिए : श्रीमती, देवी आदि।

संबंध और संबंधी में मेल

(1) संबंध के चिह्न में वही लिंग-वचन होते हैं, जो संबंधी के।
जैसे- रामू का घर
श्यामू की बकरी
(2) यदि संबंधी में कई संज्ञाएँ बिना समास के आए तो संबंध का चिह्न उस संज्ञा के अनुसार होगा, जिसके पहले वह रहेगा।
जैसे- मेरी माता और पिता जीवित हैं। (बिना समास के)
मेरे माता-पिता जीवित है। (समास होने पर)

(3) वाक्यगत प्रयोग

वाक्य का सारा सौन्दर्य पदों अथवा शब्दों के समुचित प्रयोग पर आश्रित है। पदों के स्वरूप और औचित्य पर ध्यान रखे बिना शिष्ट और सुन्दर वाक्यों की रचना नहीं होती। प्रयोग-सम्बन्धी कुछ आवश्यक निर्देश निम्रलिखित हैं-

कुछ आवश्यक निर्देश

(i) एक वाक्य से एक ही भाव प्रकट हो।
(ii) शब्दों का प्रयोग करते समय व्याकरण-सम्बन्धी नियमों का पालन हो।
(iii) वाक्यरचना में अधूरे वाक्यों को नहीं रखा जाये।
(iv) वाक्य-योजना में स्पष्टता और प्रयुक्त शब्दों में शैली-सम्बन्धी शिष्टता हो।
(v) वाक्य में शब्दों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध हो। तात्पर्य यह कि वाक्य में सभी शब्दों का प्रयोग एक ही काल में, एक ही स्थान में और एक ही साथ होना चाहिए।
(vi) वाक्य में ध्वनि और अर्थ की संगति पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
(vii) वाक्य में व्यर्थ शब्द न आने पायें।
(viii) वाक्य-योजना में आवश्यकतानुसार जहाँ-तहाँ मुहावरों और कहावतों का भी प्रयोग हो।
(ix) वाक्य में एक ही व्यक्ति या वस्तु के लिए कहीं ‘यह’ और कहीं ‘वह’, कहीं ‘आप’ और कहीं ‘तुम’, कहीं ‘इसे’ और कहीं ‘इन्हें’, कहीं ‘उसे’ और कहीं ‘उन्हें’, कहीं ‘उसका’ और कहीं ‘उनका’, कहीं ‘इनका’ और कहीं ‘इसका’ प्रयोग नहीं होना चाहिए।
(x) वाक्य में पुनरुक्तिदोष नहीं होना चाहिए। शब्दों के प्रयोग में औचित्य पर ध्यान देना चाहिए।
(xi) वाक्य में अप्रचलित शब्दों का व्यवहार नहीं होना चाहिए।
(xii) परोक्ष कथन (Indirect narration) हिन्दी भाषा की प्रवृत्ति के अनुकूल नहीं है। यह वाक्य अशुद्ध है- उसने कहा कि उसे कोई आपत्ति नहीं है। इसमें ‘उसे’ के स्थान पर ‘मुझे’ होना चाहिए।

अन्य ध्यातव्य बातें

(1) ‘प्रत्येक’, ‘किसी’, ‘कोई’ का प्रयोग- 

ये सदा एकवचन में प्रयुक्त होते है, बहुवचन में प्रयोग अशुद्ध है। 
जैसे-
प्रत्येक- प्रत्येक व्यक्ति जीना चाहता है।
प्रत्येक पुरुष से मेरा निवेदन है।
कोई- मैंने अब तक कोई काम नहीं किया।
कोई ऐसा भी कह सकता है।
किसी- किसी व्यक्ति का वश नहीं चलता।
किसी का ऐसा कहना है।
किसी ने कहा था।
टिप्पणी- ‘कोई’ और ‘किसी’ के साथ ‘भी’ का प्रयोग अशुद्ध है। जैसे- कोई भी होगा, तब काम चल जायेगा। यहाँ ‘भी’ अनावश्यक है। कोई ‘कोऽपि’ का तद्भव है। ‘कोई’ और ‘किसी’ में ‘भी’ का भाव वर्त्तमान है।

(2) ‘द्वारा’ का प्रयोग- 

किसी व्यक्ति के माध्यम (through) से जब कोई काम होता है, तब संज्ञा के बाद ‘द्वारा’ का प्रयोग होता है; वस्तु (संज्ञा) के बाद ‘से’ लगता है।
जैसे- सुरेश द्वारा यह कार्य सम्पत्र हुआ।
युद्ध से देश पर संकट छाता है।

(3) ‘सब’ और ‘लोग’ का प्रयोग- 

सामान्यतः दोनों बहुवचन हैं। पर कभी-कभी ‘सब’ का समुच्चय-रूप में एकवचन में भी प्रयोग होता है।
जैसे- तुम्हारा सब काम गलत होता है।
यदि काम की अधिकता का बोध हो तो ‘सब’ का प्रयोग बहुवचन में होगा।
जैसे- सब यही कहते हैं।
हिंदी में ‘सब’ समुच्चय और संख्या- दोनों का बोध कराता है।
‘लोग’ सदा बहुवचन में प्रयुक्त होता है।
जैसे- लोग अन्धे नहीं हैं। लोग ठीक ही कहते हैं।
कभी-कभी ‘सब लोग’ का प्रयोग बहुवचन में होता है। ‘लोग’ कहने से कुछ व्यक्तियों का और ‘सब लोग’ कहने से अनगिनत और अधिक व्यक्तियों का बोध होता है। जैसे-
सब लोगों का ऐसा विचार है। सब लोग कहते है कि गाँधीजी महापुरुष थे।

(4) व्यक्तिवाचक संज्ञा और क्रिया का मेल- 

यदि व्यक्तिवाचक संज्ञा कर्ता है, तो उसके लिंग और वचन के अनुसार क्रिया के लिंग और वचन होंगे।
जैसे- कशी सदा भारतीय संस्कृति का केन्द्र रही है।
यहाँ कर्ता स्त्रीलिंग है।
पहले कलकत्ता भारत की राजधानी था।
यहाँ कर्ता पुंलिंग है।
उसका ज्ञान ही उसकी पूँजी था।
यहाँ कर्ता पुंलिंग है।

(5) समयसूचक समुच्चय का प्रयोग- 

”तीन बजे हैं। आठ बजे हैं।” इन वाक्यों में तीन और आठ बजने का बोध समुच्चय में हुआ है।

(6) ‘पर’ और ‘ऊपर’ का प्रयोग- 

‘ऊपर’ और ‘पर’ व्यक्ति और वस्तु दोनों के साथ प्रयुक्त होते हैं। किन्तु ‘पर’ सामान्य ऊँचाई का और ‘ऊपर’ विशेष ऊँचाई का बोधक है।
जैसे- पहाड़ के ऊपर एक मन्दिर है। इस विभाग में मैं सबसे ऊपर हूँ।
हिंदी में ‘ऊपर’ की अपेक्षा ‘पर’ का व्यवहार अधिक होता है। जैसे-
मुझपर कृपा करो। छत पर लोग बैठे हैं। गोप पर अभियोग है। मुझपर तुम्हारे एहसान हैं।

(7) ‘बाद’ और ‘पीछे’ का प्रयोग- 

यदि काल का अन्तर बताना हो, तो ‘बाद’ का और यदि स्थान का अन्तर सूचित करना हो, तो ‘पीछे’ का प्रयोग होता है।
जैसे- उसके बाद वह आया- काल का अन्तर।
मेरे बाद इसका नम्बर आया- काल का अन्तर।
गाड़ी पीछे रह गयी- स्थान का अन्तर।
मैं उससे बहुत पीछे हूँ- स्थान का अन्तर।

(8) (1) नए, नये, नई, नयी का शुद्ध प्रयोग- 

जिस शब्द का अन्तिम वर्ण ‘या’ है उसका बहुवचन ‘ये’ होगा। ‘नया’ मूल शब्द है, इसका बहुवचन ‘नये’ और स्त्रीलिंग ‘नयी’ होगा।

(2) गए, गई, गये, गयी का शुद्ध प्रयोग- 

मूल शब्द ‘गया’ है। उपरिलिखित नियम के अनुसार ‘गया’ का बहुवचन ‘गये’ और स्त्रीलिंग ‘गयी’ होगा।

(3) हुये, हुए, हुयी, हुई का शुद्ध प्रयोग- 

मूल शब्द ‘हुआ’ है, एकवचन में। इसका बहुवचन होगा ‘हुए’; ‘हुये’ नहीं ‘हुए’ का स्त्रीलिंग ‘हुई’ होगा; ‘हुयी’ नहीं।

(4) किए, किये, का शुद्ध प्रयोग- 

‘किया’ मूल शब्द है; इसका बहुवचन ‘किये’ होगा।

(5) लिए, लिये, का शुद्ध प्रयोग- 

दोनों शुद्ध रूप हैं। किन्तु जहाँ अव्यय व्यवहृत होगा वहाँ ‘लिए’ आयेगा।
जैसे- मेरे लिए उसने जान दी। क्रिया के अर्थ में ‘लिये’ का प्रयोग होगा; क्योंकि इसका मूल शब्द ‘लिया’ है।

(6) चाहिये, चाहिए का शुद्ध प्रयोग- 

‘चाहिए’ अव्यय है। अव्यय विकृत नहीं होता। इसलिए ‘चाहिए’ का प्रयोग शुद्ध है; ‘चाहिये’ का नहीं। ‘इसलिए’ के साथ भी ऐसी ही बात है।

Published By – Kaushlendra Kumar

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