अपने देश का इतिहास उठा कर देखने से पता लगता है की हमारी सभ्यता का लोहा सारा संसार मानता है। इस भूमि में राम, कृष्ण, भरत, प्रताप शिवाजी सरीखे वीर पुरषो को जन्म दिया है।
स्वर्ण भूमि भारत पर विदेशी आक्रांताओ की लालची नजर हमेसा से लगी रही। यूनानी, हूण, कुषाण आदि अनेक जातियाँ भारत पर हमारे बरसो से आक्रमण करती रही है।
महाभारत के समय से इस देश का चक्रवर्ती राज्य रहा है। रामचंद्र ने वानर देश और लंका को विजय किया। कृष्ण ने कई अधर्मी राजाओ को जीता।
वीर पराक्रमी देश-भक्त
पर इस देशो की ओर हमारे राजाओ ने देखा तक नहीं। इन देशो को जीता और वही छोड़ आये।इस तरह देश के बहादुरों ने सारे संसार से प्रेम का नाता जोड़ा। इसी कारन से संसार में सुख भी था।
आज से करीब दो सौ वर्ष पहले की बात है, यूरोप महाद्वीप से सहस्त्रो मील की यात्रा तय कर कुछ अंग्रेजी व्यापारी भारत में आये।
हमारी आपसी फूट का लाभ उड़ा के ये मुठी भर लोग सारे देश में छा गए। जो कल तक झुक झुक कर प्रणाम करते नहीं थकते थे, उनके हाथो में देश की बागडोर आ गई।
देश-भक्त
प्राघिनता की बेड़ियों में जकड़े जाने पर भी हमारे देश में सहत्रो ऐसे वीर नवयुवको ने जन्म लिया, जिन्होंने हस्ते हस्ते फांसी का फन्दा अपने गाले में डाल लिया और मातृभूमि की स्वतंत्रता के यज्ञ में अपनी आहुति दी।
सान 1857 का विद्रोह कौन नहीं जनता। महारानी लक्ष्मीबाई, तात्याटोपे, नानासाहब ने अपना रक्त बहाकर मातृभूमि के बगीचे को सिचा।
सन 1894 में दमोदर चाफेकर और बालकृष्ण चाफेकर नाम के दो महाराष्ट्रीय अपना बलिदान दिया। देश के सच्चे नेता लोकन तिलक ने हमेसा उनका साथ दिया।
पराक्रमी देशभक्त
उधर बंगाल में भी देश भक्तो ने भी बड़े बड़े बलिदान दिए, रासबिहारी बोस और सुभाषचंद्र बोस का नाम सदा गर्व से लिया जाता है।
पंजाब की वीर भूमि के बलिदानो की अमिट गाथा है। इस भूमि ने बड़े बड़े वीरो को जन्म दिया है, जो आज इतिहास के पंनो में अमर है।
गुरु गोबिंद सिंह, महाराजा रणजीत सिंह बन्दा बहादुर का नाम किसने नहीं सुना। पंजाब केसरी लाला लाजपत राय और बाबा खड़क सिंह जैसे नवरत्नों की दहाड़ दिल को कापा देने वाली होती थी।
इसी प्रान्त में एक जिला लायजपुर अब यह जिला पाकिस्तान में है। इस जिले के बंगा नमक गांव में एक क्षतिय परिवार रहता था। यह परिवार अपनी देश भक्ति के लिए प्रशिद्ध था।
महान देशभक्त
13 आसीवन सम्वत 1964 के दिन इस परिवार में एक पुत्र का जन्म हुआ। पुत्र जन्म के समय सरदार किशन सिंह जेल में बंद थे।
जब बालक को बधाईया मिल रही थी, तब विदेशी सरकार ने कृपा करके बालक के पिता पुत्र का मुख देखने हेतु कुछ दिन के लिए छोड़ दिया।
दादी ने बालक का नाम भागो वाला अर्थात भग्यवान रखा। इसी बात पर बालक का नाम भगत सिंह रखा गया। भगत सिंह को तीन वर्ष की आयु में गायत्री मंत्र याद हो गया था।
भगत सिंह की शिक्षा गांव के ही प्राईमरी स्कूल में हुई। भगत सिंह अध्यापक की हर आज्ञा का पालन करते थे।
वीर एवं महान देशभक्त
आगे की शिक्षा भगत सिंह ने पंजाब केसरी लाला लाजपतराय और भाई परमानन्द सरीखे वीर पुरषो की छत्र छाया में पाई।
उनके सुखदेव जैसे मित्र थे; जिन्होंने फांसी तक इनका साथ दिया। पढ़ाई पूर्ण करने के पश्चात बे लाहौर से दिल्ली आकर रहने लगे।
यहाँ दैनिक पत्र अर्जुन में संवाददाता का काम किया। उधार इनके माता पिता ने इनकी सादी का का विचार बनाया।
भगत सिंह ने शादी करने से साफ मन कर दिया और वह घर से बहार रहने लगे। भगत सिंह की मुलाकात कानपुर में बटुकेश्वर दत्त और सच्चे सपूत चंद्रशेखर आजाद से हुई।
सच्चे देशभक्त और वीर सपूत
भगत सिंफ के पिता सरदार किसान सिंह ने सुना की भगत सिंह कानपुर में है। उन्होंने पुत्र को तर दिया की युम्हारी माँ बीमार है और शीग्र ही घर लौट आओ।
मातृभक्त पुत्र माता का कास्ट सुनते ही अपना कार्य छोड़कर अपनी जन्म भूमि आ पहुंचा।
उसने घर पहुंचते ही माता की सेवा में दिन रात एक कर दिया। वीर भगत सिंह की अथक सेवाओं से माता शीघ्र ही ठीक हो गई।
नवम्बर सन 1924 में सरदार भगत सिंह ने नौजवान भारत सभा की नीव राखी। इस सभा का सदस्य बनने की फीस चार आने और
निर्भय और वीर देशभक्त
मासिक एक रुपया वार्षिक राखी गई। अब नौजवन भारत सभा का प्रचार सुरु हुआ। पंजाब केसरी लाला लाजपतराय ने लाहौर के समस्त
नवयुवको को साथ लेकर साईमन कमीशन वापस जाओ के नारे लगवाए। वीर भगत सिंह भी वही थे। पुलिस ने जनता को रोकना चाहा।
जब जनता नहीं रुकी तो पुलिस ने लाडीचार्ज कर दिया। एक अग्रेज अघिकारी ने लाला लाजपतराय के सिर पर लड़ी मरी जिससे वे गिर गए।
वे इस चोट को सहन न कर सके, अठारह दिन बाद उनकी मृत्यु हो गयी। सरदात भगत सिंह को यह सहन नहीं हुआ, और उन्होंने बदला लेने की ठान ली।
अंत सहयोगी की सहायता से उस अग्रेज अधिकारी सांडर्स को गोली मर दी व लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया।
इस वारदातों देखते हुए अंग्रेजी सरकार ने पब्लिक सेप्टी बिल बनाया। उसे असेम्बली में पास करने के लिए ले जाया गया।
जिस समय बिल पास होने के लिए असेम्बली रखा गया, सरदार भगत सिंह अपने साथी के साथ गैलरी में पहोच चुके थे।
वीरता एवं देशभक्ति के प्रतीक
उन्होंने असेम्बली में बाम फेके। बड़े जोर का धमाका हुआ, दोनों ने इन्कलाब के नारे लगाए। वह भाग सकते थे लेकि भागे नहीं। सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को चारो और से घेर लिया गया।
पुलिस ने इन्हे पकड़ कर हथकडियो लिया। उघार सुखदेव और राजगुरु को भी बंद कर दिया गया।
तीनो क्रान्तकरियो को 24 मार्च सन 1931 को ही फांसी पर चढ़ा दिया। वे तीनो भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु हॅसते हॅसते फाँसी पर चढ़ गए।