फुर्र-फुर्र: हिंदी लोक कथा
एक गांव में एक जुलाहा रहता था। वो बोहोत अच्छा इंसान था। उसका पालन पोसड उसी से होता था। एक दिन जुलाहा सूत कातने के लिए रुई लेकर आ रहा था। वह बोहोत थक गया और नदी किनारे सुस्ताने के लिए बैठा ही था जोर की आँधी आई। आँधी में उसकी सारी रुई उड़ गई।
जुलाहा बोहोत घबराया वह मन ही मन सोच रहा था की अगर बिना रुई के घर पहुँचा तो मेरी पत्नी तो बहुत नाराज़ होगी। घबराहट में के मरे उसे कुछ न सूझा। और उसने सोचा यही बोल दूँगा (फुर्र-फुर्र)। और वह (फुर्र-फुर्र) बोलता जा रहा था। आगे एक चिड़ीमार पक्षी को पकड़ रहा था।
जुलाहे की (फुर्र-फुर्र) सुनकर सारे पक्षी उड़ कर भाग गए। चिड़ीमार को बहुत गुस्सा आया। और वह जुलाहे को बहुत चिल्लाया, तुमने मुझे बरबाद कर दिया। अब अब आगे से तुम ऐसा कहते जाना , पकड़ो पकड़ो
फुर्र-फुर्र: हिंदी लोक कथा
जुलाहे ने जोर जोर से “पकड़ो पकड़ो” रटता चालू किया। रास्ते में कुछ चोर रुपए गिन रहे थे। जुलाहे की बोहोत जोर से “ पकड़ो पकड़ो” की आवाज आ रही थी। यह आवाज सुनकर चोर बहोत घवराये और फिर चोरो ने देखा कि अकेला जुलाहा ही तेजी से चला आ रहा था।
चोरों ने उसे पकड़ा चिल्लाते और घूरते हुए कहा यह क्या कह रहे हो हमें तुम्हे मरवाने का इरादा है अब तुम जो हम बोलेगे तुम वही कहोगे अब तुम कहो, इसकों रखो ढेरों लाओ।
जुलाहा यही कहता हुआ आगे बढ़ गया-इसको रखो, ढेरों लाओ। जब वह श्मशान के पास से गुजर रहा था तो वहाँ गाँव वाले शवों को जला रहे थे। उस गाँव में हैजा फैला हुआ था।
फुर्र-फुर्र: हिंदी लोक कथा
लोगों ने जुलाहे को कहते सुना, की इसको रखो, ढेरों लाओ, यह सुनकर गांव वालो को बहुत गुस्सा आया। वो लोग चिल्लाए और बोले तुम्हें शर्म नहीं आती है। हमारे गाँव में इतना दुख फैला है और तुम ऐसा बोल रहे हो तुम्हे सरम नहीं आती है। अब तुम्हें कहना है , यह तो बड़े दुख की बात है।
जुलाहा ने बोहोत अपसोस किया और उसे बोहोत सरम आई वह सरम से पानी-पानी हो रहा था। वह यही रटता रटता आगे बढ़ने लगा यह तो बड़े दुख की बात है। जुलाहा कुछ देर बाद एक बरात के पास से गुजर रहा था और यह जब बरातियों ने उसे यह कहते हुए सुना, यह तो बड़े दुख की बात है यह तो बड़े दुख की बात है।
यह सुनकर वे जुलाहे को पीटने के लिए तैयार हो गए। जुलाहे ने उन्हें बड़ी मुश्किल से उन्हें सफाई दी तो उन्होंने कहा तुम अब जो हम बोलेगे वही कहोगे सीधे से आगे बढ़ो और हाँ अब तुम यही रटते रटते जाना, भाग्य में हो तो ऐसा सुख मिले।
फुर्र-फुर्र: हिंदी लोक कथा
अब जुलाहा यही रटता हुआ अपनी राह चल पड़ा। चलते-चलते अँधेरा हो गया। घर से निकलते समय उसकी पत्नी ने उससे यही कहा था कि “जहाँ रात हो जाए वहीं सो जाना।’ जुलाहा थक भी गया था। वह वहां सो गया।”
अगले दिन जब सुबह उसके मुँह पर पानी पड़ा, तब जुलाहा हड़बड़ा कर उठा। आँखें खोलीं तो देखता ही रह गया-यह तो उसी का घर था। और अभी-अभी उसकी पत्नी ने ही उस पर पानी फेंका था। जुलाहे के मुँह से निकला-भाग्य में हो तो ऐसा सुख मिले।
PUBLISHED BY – KAUSHLENDRA KUMAR
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