10 Best Class 8 Moral Stories In Hindi Kids: नैतिक कहानियाँ

बच्चों के नैतिक विकास के लिए सीख देने वाली कहानियाँ (hindi moral stories for kids) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये नैतिक कहानियाँ न केवल बच्चों को सही और गलत के बीच का अंतर समझाती हैं, बल्कि उन्हें जीवन में महत्वपूर्ण मूल्यों को भी सिखाती हैं। 

आज के इस ब्लॉग पोस्ट Class 8 Moral Stories in Hindi में, हम कक्षा 8 के बच्चों के लिए ऐसे ही विभिन्न नैतिक कहानियाँ प्रस्तुत कर रहे हैं, जैसे आत्मविश्वास की कहानी, लालच बुरी बला, सच्चा मित्र, मेहनत का फल, और एकता में शक्ति। हर कहानी में एक गहरा संदेश छुपा है जो बच्चों के चरित्र निर्माण में सहायक होगा। 

तो आइए, कक्षा 8 के बच्चों के लिए इन प्रेरणादायक नैतिक कहानियों (moral stories for kids in hindi) के माध्यम से बच्चों के मन में नैतिक मूल्यों की नींव मजबूत करें और उन्हें एक बेहतर इंसान बनने की दिशा में प्रेरित करें।

10 Best Class 8 Moral Stories in Hindi: बच्चों की नैतिक कहानियाँ

तो दोस्तों, यह रहे 10 बेहतरीन कक्षा 8 के बच्चों के लिए नैतिक कहानियाँ (short moral stories in hindi for class 8) जो आपके बच्चों के चरित्र निर्माण में मदद करेगी और उन्हें सही और गलत का भेद भी सिखाएगी।

1. आत्मविश्वास की कहानी (Class 8 Moral Stories in Hindi)

आत्मविश्वास की कहानी (Class 8 Moral Stories in Hindi)

नितिन अभी आठवीं कक्षा में पढ़ता है। वो ज्यादातर मोबाइल में गेम खेलने में लगा रहता था। वो अपनी पढ़ाई में बिल्कुल ध्यान नहीं देता था। उसके माता पिता उसकी इस हरकत से बड़ा गुस्सा रहते। वो परीक्षा में भी सबसे आखिर में आता। 

नितिन जब भी पढ़ने बैठता तो उसे आलस आने लगता। उसे मोबाइल में गेम्स खेलने की इच्छा होने लगती और फिर क्या, वो मोबाइल उठा लेता और गेम खेलने लग जाता। जब उसे होश आता तो पूरा दिन निकल चुका होता। 

नितिन – ओह क्या? मैं तो अपना होमवर्क करना तो भूल ही गया। 

अगले दिन जब नितिन के शिक्षक सब बच्चों का होमवर्क चेक करती है।

शिक्षक – ये क्या नितिन, तुमने आज भी अपना होमवर्क नहीं किया? तुम पढ़ाई में बिल्कुल ध्यान नहीं दे रहे हो। मैं तुम्हारे माता पिता से इस बारे में बात करूंगी। 

नितिन शिक्षक की डांट सुनकर उदास हो जाता है। वो घर आकर फिर से पढ़ने की कोशिश करता है। पर कुछ देर बाद फिर उसका मन नहीं लगता और वो मोबाइल में लग जाता है। तभी उसके पिता अंदर आते हैं और उसे मोबाइल में गेम खेलते देखकर काफी गुस्सा हो जाते हैं। 

नितिन के पिता – नितिन क्या तुमने अपनी पढ़ाई कर ली?

नितिन – नहीं पापा।

नितिन के पिता – तुम रोज मोबाइल में लग जाते हो और अपनी पढ़ाई पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते। मुझे तुम्हारे शिक्षक से पता चला। तुम रोज अपना होमवर्क करना भूल जाते हो और पढ़ाई में सबसे पीछे हो। 

उसके पिता गुस्से में उसका मोबाइल ले लेते हैं। 

नितिन के पिता – अब जब तुम अपना पूरा होमवर्क कर लोगे, तभी तुम्हें मोबाइल मिलेगा। 

नितिन उदास हो जाता है और पढ़ने बैठता है। पर उसके दिमाग में तो सिर्फ गेम खेलने का ही विचार चल रहा था। वो चुपके से अपने पापा के कमरे से मोबाइल ले आता है और फिर से गेम में लग जाता है और अगले दिन फिर से उसे शिक्षक से डांट पड़ती है। उसके दोस्त भी उसका मजाक उड़ाते हैं। 

स्कूल से घर जाते समय वो यही सब सोचता रहता है और जंगल में चले जाता है। जब वो अपने खयालों से निकलता है तो देखता है वो जंगल में पहुंच गया था। उसने सामने देखा एक साधु बाबा बैठे थे। नितिन ने उन्हें प्रणाम किया। बाबा ने नितिन को परेशान देखकर कहा क्या बात है बच्चा? तुम क्यों इतने उदास हो? 

नितिन – बाबा मैं अपना ध्यान पढ़ाई में नहीं लगा पाता। मेरे शिक्षक और पिता बहुत डांटते हैं। बाबा आखिर में क्या करूं, जिससे मैं पढ़ाई में आगे निकल जाऊं?

साधु बाबा उसे एक सेब देते हैं और कहते हैं अच्छा ये लो शायद यह तुम्हारी मदद कर सके। ये एक जादुई सेब है। जब भी पढ़ने बैठो तो इसे थोड़ा सा खा लेना। इसे खाने से तुम पढ़ाई में तेज हो जाओगे। 

नितिन बाबा की बातों पर नितिन विश्वास कर लेता है और जब पढ़ने बैठता है तो वह थोड़ा सा सेब खा लेता है और पढ़ना शुरू करता है। नितिन देखता है कि आधे घंटे में उसने अपना होमवर्क लिया। नितिन को खुद पर विश्वास नहीं होता। 

नितिन – ये सेब तो सचमुच कमाल का है। इससे तो सच में मेरा दिमाग तेज हो गया और ना ही मेरा ध्यान मोबाइल की ओर गया। 

ऐसे ही नितिन पढ़ाई में आगे निकलता जाता है। 

शिक्षक – बहुत बढ़िया नितिन, तुम कक्षा में प्रथम आए हो। 

उसके माता पिता यह देखकर काफी खुश हुए। लेकिन कुछ दिन बाद सेब खत्म हो जाता है तो वह जंगल में फिर से जाता है साधु बाबा को ढूंढने। जंगल में उसी जगह बाबा मिलते हैं, जहां पहले मिले थे। वह साधु बाबा को धन्यवाद करता है और उनसे कहता है बाबा जो आपने जादुई सेब दिया था, वह खत्म हो गया है। क्या आप मुझे कुछ और जादुई सेब दे देंगे?

साधु बाबा हंसते हुये – हां हां हां बेटा, वह तो कोई जादुई सेब था ही नहीं। वह तो एक साधारण सेब था, जो मैंने तुम्हारा आत्मविश्वास लौटाने के लिए दिया था। तुम उस सेब की वजह से प्रथम नहीं आए। तुम अपनी मेहनत की वजह से प्रथम आए। तुम अपनी अंतरात्मा पर काबू करो तो कुछ भी हासिल कर सकते हो। 

नितिन बाबा की बातें सुनकर काफी हैरान हुआ। वह समझ गया। उसे किसी सेब की जरुरत ही नहीं है। वह बिना सेब के ही घर आ गया। उस दिन के बाद से वह पढ़ाई में खूब मन लगाकर पढ़ता। अब वह पढ़ाई के बीच में मोबाइल नहीं छूता था और वह कक्षा में हर बार प्रथम आने लगा।

कहानी से सीख (Moral of the Story)

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि आत्म-नियंत्रण और समर्पण से किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है। सच्ची सफलता मेहनत और आत्म-विश्वास से मिलती है, न कि किसी बाहरी जादू से।


2. लालच बुरी बला (Class 8 Moral Stories in Hindi with Pictures)

लालच बुरी बला (Class 8 Moral Stories in Hindi with Pictures)

यह कहानी एक लोभी राजा के बारे में है जो अधिक से अधिक सोना पाने के चक्कर में स्वयं को मुसीबत में डाल लेता है। आइए पढ़ते हैं राजा के अत्यधिक लोभ का क्या परिणाम निकलता है। 

बहुत समय पहले मगध देश में विक्रमादित्य नाम का राजा राज्य करता था। विक्रमादित्य बहुत लालची था। उसे केवल दो ही चीजों से प्यार था। एक थी उसकी बेटी फूल कुमारी और दूसरा था सोना। राजा विक्रमादित्य दिन रात सोना इकट्ठा करने के सपने देखा करता था। बेइंतहा खजाना होने पर भी राजा को संतोष नहीं था। 

एक दिन राजा अपने खजाने में रखे हीरे जवाहरात और सोने के सिक्कों की गिनती कर रहा था। तभी वहां एक देवी प्रकट हुई और बोली, राजा विक्रमादित्य, तुम तो बहुत अमीर राजा हो। तुम्हारे पास बहुत सारे हीरे जवाहरात और सोना मौजूद है। 

राजा ने मुंह लटकाते हुए कहा -नहीं, मेरे पास इतना धन कहां? आप मुझे वरदान दीजिए कि मैं जिस वस्तु को भी स्पर्श करूं, वह सोने की हो जाए। देवी ने हंसते हुए उसे वरदान दिया कि अगली सुबह से वह जिस वस्तु को भी स्पर्श करेगा, वह सोने की हो जाएगी। वरदान देकर देवी अंतर्धान हो गई। 

पूरी रात राजा को नींद नहीं आई। अगली सुबह वह जिस किसी वस्तु को हाथ लगाता, वह सोने की हो जाती। अब तो राजा की प्रसन्नता का कोई ठिकाना ही नहीं रहा। वह खुशी के मारे नाचने और उछलने कूदने लगा। वह पागलों की तरह दौड़ता हुआ एक उद्यान में गया। राजा वहां जिस पेड़ पौधे को स्पर्श करता, वह सोने की हो जाती। इस प्रकार पूरा उद्यान ही सोने के उद्यान में परिवर्तित हो गया। 

राजा विक्रमादित्य की प्रसन्नता का ठिकाना ही नहीं था। अब उसके पास सोने का अपार भंडार था। यह सब करते करते दोपहर हो गई। अब राजा थक गया था। वह थकान और भूख प्यास से बेहाल हो गया था। राजा विक्रमादित्य अपने महल में लौट आया और बैठ गया। 

दासी ने उसे पकवान परोसे, परंतु राजा के स्पर्श करते ही सब कुछ सोने में परिवर्तित हो गया। अब वह बहुत घबरा रहा था। तभी उसके पास उसकी बेटी फूल कुमारी खेलती खेलती आई और बोली, पिता जी क्या हुआ? यह सुनते ही राजा ने उसे गले से लगा लिया। राजा के स्पर्श से फूल कुमारी भी सोने में बदल गई। 

अब राजा के सब्र का बांध टूट गया। वह जोर जोर से रोने लगा। तभी देवी प्रकट हुई और राजा से उसके दुख का कारण पूछने लगी। राजा ने उसके पैरों में गिरकर माफी मांगी और देवी से कहा – आप अपना वरदान वापस ले लीजिए। मुझे सोना नहीं चाहिए। मेरी सबसे मूल्यवान वस्तु मेरी बेटी भी सोने की हो गई है। कृपया अपना वरदान वापस लेकर मेरी बेटी को पहले की तरह सामान्य कर दीजिए।

देवी ने एक पात्र में जल लेकर सब चीजों पर छिड़क दिया। सभी वस्तुएं अपने पुराने रूप में आ गई। राजा विक्रमादित्य अब प्रसन्न था। अब उसका सोने के प्रति लालच खत्म हो गया।

कहानी से सीख (Moral of the Story)

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अत्यधिक लालच हमेशा हानि ही पहुंचाता है। जीवन की सच्ची संपत्ति भौतिक धन-संपदा नहीं, बल्कि हमारे प्रियजन और उनका प्यार है।


3. सच्चा मित्र (Short Story in Hindi with Moral)

सच्चा मित्र (Short Story in Hindi with Moral)

एक वन में तालाब था। तालाब में एक बड़ा सा कछुआ रहता था। तालाब के किनारे एक वृक्ष था जिस पर एक कौवा रहता था। पास ही झाड़ियों में एक हिरन भी रहता था। तीनों में मित्रता हो गई। सुबह शाम तीनों मिलते एक दूसरे का हालचाल पूछते और हंसी मजाक करके अपना समय गुजारते। 

एक दिन एक मछुआरा उस तालाब पर आया। उसने तालाब में जाल डालकर कछुए को पकड़ लिया। मछुआरे ने कछुए को रस्सी से बांधकर एक लाठी पर टांगा और चल दिया। अपने मित्र को संकट में देख कछुआ और हिरन चिंता में पड़ गए। उन्हें पता था कि मछुआरा उनके मित्र को मारकर खा जाएगा। 

वे कछुए को बचाने का कोई उपाय सोचने लगे। काफी सोच विचार के बाद उन्हें एक उपाय सूझ गया। उसके बाद हिरन उस रास्ते पर जाकर लेट गया, जहां से मछुआरा कछुए को लेकर गुजरने वाला था। कौवा भी वहीं पास के एक पेड़ पर जा बैठा। हिरन एक मुर्दा बनकर लेटा हुआ था। 

जब मछुआरे ने रास्ते में एक मोटा तगड़ा हिरन मरा पड़ा देखा तो उसे लालच आ गया। उसने सोचा कछुआ तो है ही क्यों न इस हिरन को भी उठाकर ले चलू। इसकी चमड़ी बेचने से काफी धन मिलेगा। 

मछुआरे के पास एक ही रस्सी थी, जिससे उसने कछुए को बांधा हुआ था। उसने कछुए को खोलकर एक तरफ छोड़ दिया। मुक्त होते ही कछुआ चुपचाप खेतों में घुस गया और तालाब की ओर चल दिया। 

मछुआरा लाठी लेकर कछुए वाली रस्सी से हिरन को बांधने के लिए उसकी तरफ बढ़ा। जैसे ही वह हिरन के पास पहुंचा, पेड़ की डाली पर बैठा कौवा बोल उठा, कांव कांव। अपने मित्र कौवे की आवाज सुनते ही हिरन उछल कर भाग खड़ा हुआ। मछुआरा बेचारा देखता रह गया। 

इस तरह उसे न तो कछुआ मिला न हिरन। शाम ढलने पर तीनों मित्र तालाब के किनारे मिले। कछुए ने अपने प्राण बचाने के लिए कछुए और हिरन को धन्यवाद देना चाहा तो वे बोले धन्यवाद की कोई आवश्यकता नहीं मित्र। सुख दुख में काम आने वाले ही तो सच्चे मित्र होते हैं।

कहानी से सीख (Moral of the Story)

यह कहानी हमें सीखाता है कि सच्चे मित्र वही होते हैं जो संकट के समय एक-दूसरे की सहायता करते हैं। मित्रता का असली मूल्य कठिन परिस्थितियों में साथ देने से साबित होता है।


4. गुरु शिष्य की कहानी (Short Moral Stories in Hindi for Class 8)

गुरु शिष्य की कहानी (Short Moral Stories in Hindi for Class 8)

एक बार की बात है, एक आश्रम में तीन शिष्य रहते थे। तीनों ने अत्यंत मेहनत से अपनी शिक्षा संपूर्ण की। तत्पश्चात तीनों शिष्य गुरुदेव के पास गए और बोले गुरुदेव अब हमारी शिक्षा संपूर्ण हो गई है। अब गुरु दक्षिणा देने का वक्त आ गया है। 

गुरुदेव मुस्कुराए और बोले यदि तुम लोग मुझे गुरुदक्षिणा देना ही चाहते हो तो कल मुझे एक थैला सूखे पत्ते लाकर दे दो। तीनों शिष्य मंद मुस्कुराए और उन्होंने सोचा कि सूखी पत्तियां लाना कौन सी बड़ी बात है। 

अगली सुबह तीनों शिष्य पास ही के जंगल में दक्षिणा हेतु सूखे पत्ते एकत्रित करने के लिए गए। उन्होंने वहां देखा तो आश्चर्य हुआ। जंगल में सिर्फ एक मुट्ठी सूखे पत्ते बचे हुए थे। यह देखकर वे तीनों बहुत अधिक परेशान हो गए। उन्होंने सोचा अब गुरुदेव को दक्षिणा कैसे देंगे। 

तभी सामने से एक किसान आता हुआ दिखाई दिया, जिसने एक थैले में ढेर सारे सूखे पत्ते लिए हुए थे। उन्होंने उस किसान से आग्रह किया कि भाई हमें भी थोड़े सूखे पत्ते दे दो। हमें इनकी अत्यंत आवश्यकता है। 

किसान ने कहा, यह सूखे पत्ते मैं अपने जीवन यापन तथा घर का भोजन पकाने के लिए ले जा रहा हूं। मैं यह आपको नहीं दे सकता। परंतु हां, पास के ही गांव में सेठ जी रहते हैं। उनके पास सूखे पत्तों से दोने बनाने का कारखाना है। शायद वह आपको सूखे पत्ते दे सकें। 

वे तीनों सेठ जी के पास गए और उनसे सूखे पत्ते देने के लिए आग्रह किया। परंतु सेठ जी ने कहा कि मैं आपको सूखे पत्ते नहीं दे सकता क्योंकि इनकी मुझे आपसे अधिक आवश्यकता है। मैं इन सूखे पत्तों से अपना कारोबार चलाता हूं। मुझे क्षमा करें। वे तीनों शिष्य अत्यंत परेशान हो गए। 

उन्होंने बहुत लोगों से पूछा। पता चला कि पास में ही एक बूढ़ी दादी रहती हैं। वे सूखे पत्ते एकत्रित करती हैं। हो सकता है उनके पास से मिल जाए। तीनों बूढ़ी दादी के पास गए और उनसे सूखे पत्ते देने का आग्रह किया। परंतु बूढ़ी दादी उन सूखे पत्तों से औषधियां बनाया करती थी तो उन्होंने भी मना कर दिया। 

अब तीनों छात्र निराश होकर आश्रम लौट आए और दुखी मन से गुरुदेव को सारी बात बताई कि वे उनकी दक्षिणा लाने में असफल रहे। 

तब गुरुदेव ने कहा मेरे बच्चों, मुझे दक्षिणा की अभिलाषा नहीं है। मैं तो तुम्हें बताना चाहता था कि इस दुनिया में किसी भी चीज को छोटा नहीं समझना चाहिए। छोटी से छोटी चीज का भी अपना महत्व होता है, अपना मूल्य होता है। 

आज शिष्यों को पता चल गया था कि जिन चीजों को हम बहुत छोटा समझते हैं, वास्तव में उनका भी अपना एक स्थान होता है। 

कहानी से सीख (Moral of the Story)

यह कहानी हमें सीखाता है कि इस दुनिया में कोई भी चीज़ छोटी नहीं होती, हर वस्तु का अपना महत्व और मूल्य होता है। हमें कभी भी किसी चीज़ को तुच्छ या नगण्य नहीं समझना चाहिए।


5. सच्चाई की ताकत (Moral Story in Hindi for Class 8)

सच्चाई की ताकत (Moral Story in Hindi for Class 8)

एक समय की बात है नाहरगढ़ के राजा विक्रम सिंह ने अपने राज्य में व्यापार को बढ़ावा देने के लिए जनता से दुकान लगाने व किसी भी प्रकार का सामान बेचने की घोषणा की। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि किसी भी व्यक्ति का सामान शाम को बच जाएगा वह राजा के द्वारा खरीद लिया जायेगा। 

राजा विक्रम सिंह धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे और उनका समाज सेवा करना अपने राज्य का ही नही अपितु पडोसी राज्य का भी उत्थान करना लक्ष्य था। राजा विक्रम सिंह की घोषणा के बाद राज्य में लोगों ने अपनी अपनी दुकानें खोली और सामान की खरीद बिक्री करने लगे। 

राजा के मान सम्मान और उनकी योजनाओं के चर्चे दूर देश में भी होने लगे। देवताओं के राजा इन्द्र को यह बात सही नहीं लगी और उन्होंने राजा की परीक्षा लेने के लिए साधारण व्यक्ति का वेश बनाकर कूडे की दुकान लगाकर बैठ गए। 

सुबह से शाम हो गई किन्तु उसका कूडा कोई भी व्यक्ति नही खरीदा। जब राजमहल के सिपाही बाजार का निरीक्षण कर रहे थे तब उन्होंने पाया कि इस व्यक्ति का कूडा किसी भी व्यक्ति ने नहीं खरीदा। सिपाहियों ने तुरंत इसकी सूचना राजा विक्रम सिंह तक पहुंचाई। 

राजा अपने वचन के पक्के थे। उन्होंने वचन के अनुसार उस व्यक्ति का सारा कबाड़ खरीद लिया और अपने महल में लाकर रखवा दिया। 

अगले दिन उन्होंने पाया कि उनके महल से एक सुंदर दिव्य रूप धारण किए शुभ्र वस्त्र में एक स्त्री महल से बाहर जा रही है। स्त्री ने जवाब में कहा, मैं राज्य लक्ष्मी हूं। मैं गंदगी में वास नहीं कर सकती, इसलिए मैं आपका महल छोडकर जा रही हूं। ऐसा कहते हुए राजलक्ष्मी राजमहल से चली गई। 

कुछ समय पश्चात एक दिव्य रूप धारण किए पुरुष महल से जाते दिखे। राजा ने हाथ जोड़कर उनका परिचय पूछा तो उन्होंने कहा मैं यज्ञ देव हूं। जहां राजलक्ष्मी होती है, वही मेरा काम होता है। इसलिए मैं भी आपका महल छोडकर राज्य लक्ष्मी के पास जा रहा हूं। 

ऐसा करते करते कई सारे देवी देवता राजा विक्रम सिंह की महल को छोड़कर चले गए, जिनमें यश, कीर्ति, आदि देव भी शामिल थे। अंत में राजा ने एक और आखिरी देव को जाते देखा। उन्होंने हाथ जोड़कर उनका भी परिचय पूछा। देव ने कहा, मैं सत्य हूं। मैं भी तुम्हारे महल को छोड़कर जा रहा हूं। 

राजा विक्रम सिंह ने तुरंत ही सत्य के चरणों में गिरकर उन्हें महल से जाने के लिए मना कर दिया। राजा ने कहा, मैं सत्य के लिए अपनी सारी विपत्तियों को झेल रहा हूं और आप ही मुझे छोड़कर चले जाएंगे तो मेरा क्या आस्तित्व रहेगा? मेरा कौन सहारा रहेगा? 

सत्यदेव ने कुछ समय सोच विचार किया और राजा के वचनों को ध्यानपूर्वक समझा तो उन्हें मालूम हुआ कि उनकी सत्य के प्रति दृढ़ता के कारण ही यह सभी स्थितियां उत्पन्न हुई हैं। क्योंकि राजा सत्य का पालन करते हुए ही इंद्र के छल में फंसे हैं। इसलिए सत्य देव ने महल से जाने का विचार छोड़ दिया और महल में ही रुक गए। 

सत्य को महल में रुका हुआ देख राज्य, लक्ष्मी, यश, देव, यश, कीर्ति तथा सभी देवी देवता महल में पुनः वापस लौट आए क्योंकि जहां सत्य है वहां सभी देवी देवता वास करते हैं। 

बिना सत्य के सभी अधूरे हैं। अर्थात व्यक्ति को दुख और संकट की स्थिति में भी निराश नहीं होना चाहिए बल्कि उनसे डट कर सामना करना चाहिए और सत्य पर अडिग रह कर वह किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं। 

राजा विक्रम सिंह सत्य पर अडिग रहे जिसके कारण उनकी सारी संपत्ति, यश, धन, कीर्ति सभी समाप्त हो रही थी किंतु सत्य पर अडिग रहते हुए उन्होंने सभी चीजों को पुनः प्राप्त कर लिया। इसलिए किसी भी व्यक्ति को विपत्ति के समय सत्य का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। यही इस कहानी का सार है।


6. मेहनत का फल (Kahani Lekhan in Hindi for Class 8)

मेहनत का फल (Kahani Lekhan in Hindi for Class 8)

एक गांव में दो मित्र नकुल और सोहन रहते थे। नकुल बहुत धार्मिक था और भगवान को बहुत मानता था, जबकि सोहन बहुत मेहनती था। एक बार दोनों ने मिलकर एक बीघा जमीन खरीदी, जिससे वह बहुत फसल उगाकर अपना घर बनाना चाहते थे। 

सोहन तो खेत में बहुत मेहनत करता लेकिन नकुल कुछ काम नहीं करता बल्कि मंदिर में जाकर भगवान से अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करता था। इसी तरह समय बीतता गया। कुछ समय बाद खेत की फसल पककर तैयार हो गई। जिसको दोनों ने बाजार ले जाकर बेच दिया और उनको अच्छा पैसा मिला। 

घर आकर सोहन ने नकुल को कहा कि इस धन का ज्यादा हिस्सा मुझे मिलेगा क्योंकि मैंने खेत में ज्यादा मेहनत की है। यह बात सुनकर नकुल बोला, नहीं, धन का तुमसे ज्यादा हिस्सा मुझे मिलना चाहिए क्योंकि मैंने भगवान से इसकी प्रार्थना की तभी हमको अच्छी फसल हुई। भगवान के बिना कुछ संभव नहीं है।

जब वह दोनों इस बात को आपस में नहीं सुलझा सके तो धन के बंटवारे के लिए दोनों गांव के मुखिया के पास पहुंचे। मुखिया ने दोनों की सारी बात सुनकर उन दोनों को एक एक बोरा चावल का दिया, जिसमें कंकड़ मिले हुए थे। 

मुखिया ने कहा कि कल सुबह तक तुम दोनों को इसमें से चावल और कंकड़ अलग करके लाने हैं। तब मैं निर्णय करूँगा कि इस धन का ज्यादा हिस्सा किसको मिलना चाहिए।

दोनों चावल की बोरी लेकर अपने घर चले गए। सोहन ने रात भर जागकर चावल और कंकड़ को अलग किया। लेकिन नकुल चावल की बोरी को लेकर मंदिर में चला गया और भगवान से चावल में से कंकड़ अलग करने की प्रार्थना की। 

अगले दिन सुबह सोहन जितने चावल और कंकड़ अलग कर सका उसको ले जाकर मुखिया के पास गया, जिसे देखकर मुखिया खुश हुआ। नकुल वैसी की वैसी बोरी को ले जाकर मुखिया के पास गया। 

मुखिया ने नकुल को कहा कि देखाओ तुमने कितने चावल साफ किए है। नकुल ने कहा कि मुझे भगवान पर पूरा भरोसा है कि सारे चावल साफ हो गए होंगे। जब बोरी को खोला गया तो चावल और कंकड़ वैसे के वैसे ही थे। 

जमीन्दार ने नकुल को कहा कि भगवान भी तभी सहायता करते हैं जब तुम मेहनत करते हो।

जमींदार ने धान का ज्यादा हिस्सा सोहन को दिया। इसके बाद नकुल भी सोहन की तरह खेत में मेहनत करने लगा और अबकी बार उनकी फसल पहले से भी अच्छी हुई थी। 

कहानी से सीख (Moral of the Story)

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी भगवान के भरोसे नहीं बैठना चाहिए। हमें सफलता प्राप्त करने के लिए मेहनत करनी चाहिए।


7. एकता में शक्ति (Short Moral Story for Kids in Hindi)

एकता में शक्ति (Short Moral Story for Kids in Hindi)

किसी गांव में एक किसान रहता था। उसके चार बेटे थे। वे सदा आपस में लड़ते रहते थे। इस कारण किसान सदा दुखी रहता था। वह चाहता था कि उसके बेटे मिलकर रहें। उसके काम में हाथ बटाएं। किसान ने उन्हें बहुत समझाया, पर उसकी बातों का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। 

अपने बेटों को सदा आपस में लड़ते झगड़ता देख किसान व्याकुल हो गया। वह अब सदा रोगी रहने लगा। मृत्यु के समीप आया देख वह अपने बच्चों के बारे में सोचने लगा। 

उसने अपने चारों बेटों को अपने निकट बुलाया। उसने लकड़ियों का एक गट्ठा मंगवाया। उसने अपने चारों पुत्रों को बारी बारी से उस गट्ठे को तोडने के लिए कहा। कोई भी उस गट्ठे को न तोड़ सका। 

लकड़ियों के गट्ठर को खोलकर उसने एक एक लकड़ी सबको दी। ज्यों ही उसने अपने बेटों को अपनी अपनी लकड़ी तोड़ने की आज्ञा दी, त्यों ही सबने अपनी अपनी लकड़ी तोड़ दी। 

अपने पुत्रों को शिक्षा देते हुए किसान ने कहा मेरे प्यारे बच्चों! तुम बँधी लकड़ियों के गट्ठे को जोर लगाकर भी न तोड़ सके, परंतु एक एक लकड़ी को असानी से तोड़ सके। ठीक इसी प्रकार यदि तुम सब लकड़ियों के गठ्ठे की तरह मिलकर रहोगे तो तुम्हें कोई हानि नहीं पहुंचा सकेगा। 

यदि तुम एक एक लकड़ी की तरह अलग हो गए तो संसार के लोग तुम्हें कमजोर समझकर हानि पहुंचाएंगे। पिता की इन बातों का बेटों पर बड़ा अच्छा प्रभाव पड़ा। उस दिन से वे मिलकर रहने लगे। 

कहानी से सीख (Moral of the Story)

यह कहानी हमें एकता में बल की सीख देता है। अगर हम मिलकर रहें तो कोई हमें नुकसान नहीं पहुंचा सकता, लेकिन अगर हम बंटे हुए हों, तो हमें आसानी से हानि पहुँचाई जा सकती है। हमें सदा मिलजुलकर रहना चाहिए।


8. पेड़ का महत्व (Class 8 Hindi Moral Stories)

पेड़ का महत्व (Class 8 Hindi Moral Stories)

एक समय की बात है। एक छोटा सा गांव था जहां पर एक बड़ा पेड़ था। वह पेड़ बहुत ही सुंदर था और उसके पत्ते हमेशा हरे भरे रहते थे। गांव के बच्चे उस पेड़ के नीचे बहुत खेलते थे। वे उस पेड़ के नीचे बैठकर अपने खेल खेलते और बातें करते। वे पेड़ को अपना सच्चा दोस्त मानते थे। 

एक दिन गांव में बहुत जोर शोर से बारिश होने लगी। बारिश के कारण बाढ़ आने की संभावना बन गई। लोगों ने डर के मारे अपने अपने घरों में जाकर चिल्लाना शुरू कर दिया। 

पेड़ ने अपनी शाखाओं को बड़े ही प्यार से गांव के लोगों के घरों की ओर झुकाया। उसने अपनी छाया द्वारा गांव के लोगों को बारिश से बचाने की कोशिश की। बारिश के बाद लोगों ने देखा कि पेड़ ने उन्हें बचा लिया है। उनके घरों को कोई नुकसान नहीं हुआ और सबका घर सुरक्षित रहा। 

लोग बड़े आश्चर्य में थे। उन्होंने समझा कि पेड़ की महत्वपूर्णता क्या है। वे समझ गए कि पेड़ हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है। न केवल उसकी खूबसूरती के कारण बल्कि उसके पर्यावरणीय लाभ के कारण भी। 

इसके बाद से लोगों ने पेड़ का ध्यान रखना शुरू कर दिया। वे पेड़ों की सफाई करने और उनकी रक्षा करने का प्रयास करने लगे। 

कहानी से सीख (Moral of the Story)

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और पेड़ पौधों की देखभाल करनी चाहिए। यह हमारे और हमारे आसपास के लोगों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।


9. कामचोर गधा की कहानी (Bedtime Stories for Kids in Hindi)

कामचोर गधा की कहानी (Bedtime Stories for Kids in Hindi)

एक आदमी के पास एक गधा था। वह गधा बहुत आलसी था। एक दिन उसके मालिक ने बाजार जाकर कुछ नमक बेचने की सोची। वह अपने गधे की पीठ पर नमक का एक बोरा रखकर बाजार की ओर चल पड़ा। 

जैसे ही वे दोनों रास्ते में नदी को पार करने लगे कि अचानक गधे का पैर फिसल गया और वह नदी में गिर पड़ा। गधे को चोट तो नहीं लगी पर खड़े होने पर उसे ऐसा लगा कि उसकी पीठ पर रखे नमक के बोरे का बोझ कम हो गया। 

दूसरे दिन गधा फिर से कुछ नमक से भरा बोरा लेकर चल दिया। अब वह जानता था कि उसको क्या करना है। गधे को अब अपनी पीठ पर लदा बोझ हल्का करना था। अतः जब गधा और उसका मालिक नदी पार करने लगे तो गधा फिर से नदी में फिसलकर गिर पड़ा। 

इस बार फिर से उसे अपनी कमर पर रखे नमक का बोझ हल्का लगने लगा। उसने सोचा यह ठीक हुआ। गधे के मालिक ने उसकी यह चाल पहचान ली। उसको बहुत क्रोध आया क्योंकि उसके नमक के बोरे में से सारा नमक बह गया था। उसने गधे को सबक सिखाना चाहा। 

तीसरे दिन गधे का मालिक गधे की पीठ पर रुई से भरा बोरा रखकर बाजार चल पड़ा। गधे ने सोचा कि फिर से उसको अपनी चाल चलनी चाहिए। 

जब वे दोनों नदी पार करने लगे तो गधा फिर से जान बूझकर नदी में फिसल गया ताकि उसकी कमर पर रखा बोझ हल्का हो जाए। परंतु अबकी बार ऐसा नहीं हुआ। उसकी कमर पर रखा बोझ और भारी हो गया। 

वास्तव में गधे की कमर पर बोरे में भरी रुई ने अपने अंदर पानी सोख लिया था जिसके वजह से रुई से भरा बोरा और भी ज्यादा हारी हो गया था। लेकिन कामचोर गधे को उस बोझ को तो लेकर चलना ही था। सच तो यह है कि इस बार उसका यह चाल उसी पर भारी पड गया।

कहानी से सीख (Moral of the Story)

यह कहानी हमें सीख देती है कि यदि हम आलस के कारण काम को टालते हैं तो हम और भी अधिक परेशानी या संकट में फंस सकते हैं। इस कारण काम से जी चुराने वाला आदमी कामचोर कहलाता है।


10. मां की प्यारी सीख (Moral Story in Hindi for Kids of Class 8)

मां की प्यारी सीख (Moral Story in Hindi for Kids of Class 8)

चेतन अपनी मां के साथ एक बहुत अच्छे घर में रहता था। वह बहुत अच्छा लड़का था और सदा अपनी मां का कहना मानता था। चेतन की मां बहुत अच्छे पकवान बनाती थी। चेतन को पकवान खाना बहुत पसंद था। 

एक दिन चेतन की मां ने बहुत बढ़िया कुकीज बनाकर एक बड़े जार में रख दी और फिर बाजार चली गई। बाजार जाने से पहले चेतन की मां उसको कह गई थी कि अपना गृहकार्य समाप्त करने के बाद वह कुकीज खा सकता है। चेतन बहुत खुश हुआ। 

उसने जल्दी से अपना गृहकार्य समाप्त करके अपनी मां के लौटने से पहले ही कुकीज खानी चाही। इसीलिए वह एक स्टूल पर चढ़ गया। फिर उसने जार के अंदर हाथ डालकर ढेर सारी कुकीज निकालने की कोशिश की, पर जार का मुंह छोटा होने के कारण वह अपना हाथ बाहर नहीं निकाल सका। 

उसी समय उसकी मां बाजार से लौट आई। जब उसने चेतन को देखा तो वह हंसने लगी और अपने बेटे चेतन से कहा। चेतन हाथ से ढेर सारी कुकीज छोड़कर केवल दो या तीन कुकीज हाथ में पकड़कर हाथ बाहर निकालो। 

मां की बात मानकर जब उसने सिर्फ दो कुकीज हाथ में पकड़ी, तब वह आसानी से अपना हाथ बाहर निकाल सका। तब उसकी मां ने प्यार से कहा, ऐसा करने से तुमने क्या सीखा?

चेतन ने कहा, मैंने सीखा है कि किसी भी चीज का लालच अच्छी बात नहीं है। हमें हर चीज उतनी ही लेनी चाहिए, जितनी हमें जरूरत हो।

कहानी से सीख (Moral of the Story)

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि लालच अच्छी बात नहीं है। हमें हर चीज उतनी ही लेनी चाहिए, जितनी हमें जरूरत हो। लालच करने से हमें नुकसान हो सकता है, जबकि संतोष से हमें सुख और शांति मिलती है।


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Rakesh Dewangan

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