10 Best Funny Story In Hindi: 2024 का मजेदार स्टोरी इन हिंदी

हास्य कहानियाँ (funny comdey stories) न केवल मनोरंजन का स्रोत होती हैं, बल्कि वे जीवन की गंभीरता से राहत दिलाकर खुशी और हँसी का अनुभव भी कराती हैं। “Funny Story in Hindi” ब्लॉग पोस्ट में हम कुछ ऐसी ही मजेदार कहानियाँ पेश कर रहे हैं, जिनमें शामिल हैं ठाकुर का उल्लू, कैदियों की राम लीला, संता के चुटकुले, गांव का सरपंच की रोचक घटनाएँ और लालची पंडित की कहानी। 

ये कहानियाँ न केवल आपके दिन को बेहतर बनाएंगी, बल्कि हँसी के फव्वारे भी छोड़ेंगी। हर कहानी अपने आप में अनोखी है और आपके चेहरे पर मुस्कान लाने की गारंटी देती है। तो आइए, इन कहानियों के माध्यम से हँसी और खुशी के पल साझा करें।

10 Funny Story In Hindi: फनी स्टोरी इन हिंदी

Best Funny Story In Hindi मजेदार स्टोरी इन हिंदी

तो दोस्तों, ये हैं वो 10 बेहद मनोरंजक कहानियाँ जो न सिर्फ आपको हँसी से लोटपोट कर देंगी बल्कि आपके तनाव को भी कम करेंगी।

1. मूर्ख व्यक्ति और शीशा हिंदी कॉमेडी स्टोरी (Best Funny Story in Hindi)

पुराने जमाने की बात है। एक व्यक्ति गांव में रहता था। बहुत ही पिछड़ा गांव था। एक बार वह मेला देखने गया। मेला गांव से थोड़ी दूरी पर लगता था। चार पांच किलोमीटर पैदल चलकर मेला देखने गया। मेले में पहुंचकर उसने तरह तरह की चीजें देखीं। मेला पहली बार देखा था। बहुत खुश हो रहा था।

गांव का रहने वाला वह आदमी बहुत देर तक घूमने के बाद घूमता घूमता एक दुकान पर पहुंचा। उसने दुकान पर शीशा देखा और शीशे में खुद को देखा। अब वह शीशा देखकर यह नहीं समझ पा रहा था कि इसमें मैं ही हूं। 

अब शीशे में जैसे ही उसने देखा तो वह मुस्कुराने लगा और शीशे में खुद को देखकर बोला, भैया नमस्ते। तो उधर से भी मुस्कुराहट देखी। भैया नमस्ते। उसने कहा, बड़े अच्छे भाई साहब हैं। पहली बार में ही इतना प्रेम से। 

अब वह कहने लगा, भैया, घर पर सब ठीक हैं? तो शीशे में भी ऐसा ही लगा जैसे वह बोल रहा है भैया सब घर पर ठीक हैं। वह दुकानदार से बोला भाई साहब, यह भाईसाहब कितने के दिए हैं? दुकानदार ने सोचा, चाहे कोई शीशा समझकर ले जाए या भैया समझकर ले जाए। हमें तो पैसे से मतलब है। 

दुकानदार बोला यह ₹2 के हैं। तो वह आदमी मेला देखने के लिए जो पैसे लेकर आया था, वह उसने उस दुकानदार को दे दिए और शीशा हाथ में लिया। शीशे को लेकर बार बार उसे देखने लगा और खुश होने लगा और वह अपना शीशा लेकर घर पहुंचा और शीशे को अपनी बैठक में अच्छी जगह रख दिया। 

अब वह घरवालों से थोड़ी देर बात करता और कहता कि मैं अभी आया बस और शीशे के पास पहुंच जाता था। उसमें अपना चेहरा देखता और कहता क्या हाल चाल है भाई साहब ठीक हो और फिर लौटकर आ जाता और अपने मन में सोचता यह अच्छे भाईसाहब हैं जो न खाते हैं, न पीते हैं और हमेशा मुस्कुराते रहते हैं, बहुत खुश रहते हैं। बहुत अच्छे भाई साहब हैं। 

फिर थोड़ी देर में जाए और फिर आ जाए। 

अब दिन में कई बार ऐसे ही करने लगा तो पत्नी सोचने लगी कि पहले तो यह कभी ऐसे जाते नहीं थे यह जाते कहां हैं? ठीक है, जब यह कहीं बाहर जाएंगे तब मैं देखूंगी। 

अब एक दिन वह कहीं बाहर घूमने गए तो पत्नी गई देखने कि देखूं तो कि बैठक में क्या है जो यह बार बार उठकर वहां जाते हैं। पत्नी गई बैठक में तो देखा उसने कि वहां पर तो एक शीशा रखा है। उसने उसे देखा तो उसमें उसे अपनी सूरत दिखाई दी। पत्नी ने सोचा अब मैं समझ गई यह इसी वजह से यहां आता है। उसकी पत्नी ने मुक्का ताना और दांतों को भींचा तो शीशे में भी वही मुक्का ताने औरत दिखाई दी। 

पत्नी को बहुत क्रोध आया कि हमारी सौतन को घर ले आया है और हमें हमारी तरह ही मुक्का दिखा रही है। इसी की वजह से मेरा पति यहां आता है। यह सोचकर पत्नी ने कहा कि मैं अब यहां नहीं रहूंगी, मैं चली जाऊंगी, जहर खा लूंगी, कुएं में डूबकर मर जाऊंगी, लेकिन यहां नहीं रहूंगी। और रोना शुरू कर दिया। 

उसकी सास दौड़ी दौड़ी आई कि क्या हुआ, क्या हुआ, बहू क्यों रो रही है। 

बहू बोली मां जी अपने बेटे की करतूत देखो, बैठक में किसको लाकर बिठाया है। मेरी सौतन को ले आया है आपका बेटा। मैं अब यहां नहीं रहूंगी। मैं तो चली जाऊंगी। 

सास बोली नहीं नहीं, मैं देखती हूं। अब सास वहां गई और सास ने बैठक में जाकर शीशा देखा तो उसने भी शीशे में अपने आप को देखा। सास शीशे में देखकर बोली अच्छा आप हो रामराम, छमा करना। बहू समझ नहीं पाई और बहू को डांटकर बोली क्या कह रही है? तू? यह तो बुढ़िया है, वृद्धा है, सेवा के लिए लाया होगा। 

अब बहू कहने लगी नहीं नहीं, बुढ़िया नहीं है, जवान औरत है। अब सास कहे कि नहीं, बुढ़िया है और बहू कहे कि नहीं, जवान औरत है मेरी सौतन। 

अब शीशा तो शीशा होता है। जो जैसा उसमें दिखाया जाए, शीशा वही दिखाता है। बहू सामने जाए तो उसमें बहू नजर आ जाए। कहने लगी देखो यह बैठी है और सास शीशे को देखती तो उसमें साफ नजर आ जाए। सास कहे कि देखो बुढ़िया है। अब इसी बात पर सास बहू का झगड़ा शुरू होने लगा। 

उनके झगड़े को देखकर बहू का ससुर आ गया और बोला किस बात पर झगड़ रही हो। 

तब बहू ने अपने ससुर से सारी बात बताई तो वह कहने लगा चलो कोई बात नहीं, मैं देखता हूं क्यों घर में कलह मचा रखा है। अब झगड़ा खत्म करो। 

ससुर ने जो शीशे देखा तो उसे भी शीशे में अपनी सूरत दिखाई दी। यानी वह बूढ़ा था तो शीशे में बूढ़ा आदमी दिखाई दिया। तो ससुर बोला अरे भैया राम राम आप हो यह समझती नहीं है। 

दोनों सास बहू को ससुर ने फटकारा और बोला डूब मरो तुम दोनों। तुम समझ ही नहीं पा रही हो इसमें कौन है तुम? स्त्री और पुरुष में भेद नहीं समझ पा रही हो तुम। स्त्री पुरुष में अंतर नहीं समझ सकी। 

सास बोली तो बुढ़िया, ससुर कहे कि नहीं, भाई साहब बैठे हैं और बहू कहे, नहीं उसमें जवान औरत मेरी सौतन है। 

इतने में वह व्यक्ति आ गया जो शीशा लेकर घर आया था और घर आकर बोला क्या बात है, किस बात पर बहस हो रही है। 

उसकी मां बोली, बैठक में किसको बिठाया है? वह कहने लगा हमारे भाई साहब हैं। बहु बोली, भाई साहब हैं? एक जवान औरत को लाकर बिठाया है। मेरी सौतन को। बुढ़िया बोली, नहीं जवान औरत नहीं है, वह तो बुढ़िया है। और ससुर ने कहा नहीं बूढ़ा आदमी है। 

अब जो शीशे के सामने जाए शीशा उसी को दिखाए, उसी का चेहरा दिखाई दे। अब शीशे को कभी बहू देखे, कभी सास देखे, कभी ससुर देखे और कभी उस औरत का पति देखे। 

अब शीशा ऐसे घूमते घूमते बहू के हाथ से नीचे गिर गया और टूट गया। टुकड़े टुकड़े हो गया और जैसे ही शीशा टूटा वह आदमी जो शीशा लेकर आया था, फूट फूटकर रोने लगा कि मेरे भाई साहब मर गए। मेरे भाई साहब को मार डाला। 

वह उठा और अपनी पत्नी की पिटाई कर दी। बहू नाराज होकर अपने मायके चली गई।


2. ठाकुर का उल्लू मजेदार हिंदी कॉमेडी स्टोरी (Funny Story for Kids in Hindi)

बहुत समय पहले की बात है। किसी गांव में एक ठाकुर रहते थे। ठाकुर साहब बड़े ठाठ बाट से रहते थे। ठाकुर साहब को पक्षी पालने का बड़ा शौक था। उनके पास एक उल्लू था। वैसे तो उस उल्लू में कोई विशेषता नहीं थी। पर ठाकुर साहब ने उसे एक विशेष आदत का अभ्यास करा दिया था। 

उनके आदेश पर वह सोने की गिन्नी को निगल जाता था और उनके आदेश देने पर गिन्नी को मुंह से उगल भी देता था। ठाकुर साहब ने उसे यह तक अभ्यास करा दिया था कि वह उल्लू एक बार में पांच गिन्नियां तक निगल जाता था और आदेशानुसार उन्हें एक एक कर उगल देता था। 

अपने उल्लू की इस विशेषता को ठाकुर साहब ने किसी को नहीं बताया था। 

ठाकुर साहब की एक पुत्री थी। उन्हें उसका विवाह अचानक तय करना पड़ा और विवाह की तिथि भी 10 दिन बाद की निश्चित हो गई। बेटी का विवाह सिर पर और ठाकुर साहब ठनठन गोपाल। ₹1 पास नहीं। समस्या विकट थी, पर वह घबराए नहीं। उन्होंने निश्चित कर लिया कि बेटी का विवाह निश्चित तिथि पर ही धूम धाम से होगा। 

ठाकुर साहब के गांव में एक साहूकार था, जो ब्याज पर पैसे दिया करता था। एक दिन ठाकुर साहब उसी साहूकार के पास गए और बोले सेठ जी, मेरी बेटी का विवाह अचानक सर पर आन पड़ा है। कुछ मदद कीजिए। 

ठाकुर साहब की बात सुनकर साहूकार ने पूछा कितना रुपया चाहिए? ठाकुर साहब बोले यही कोई 10,000 से काम चल जाएगा। 10,000? यह सुनकर साहूकार पहले चौंक गया, फिर कुछ सोचकर बोला गिरवी रखने को क्या लाए हो ठाकुर साहब? 

गिरवी की बात सुनकर ठाकुर साहब चौंक गए और बोले, भाई लाया तो मैं कुछ भी नहीं हूं। मैं तो लेने आया हूं। 

साहूकार बोले, लेकिन क्या? ठाकुर साहब बोले, आपको मुझ पर विश्वास नहीं है जो ऐसी बात कर रहे हो? साहूकार बोले, विश्वास तो आप पर और आपकी नीयत पर किसे नहीं होगा। पर व्यापार में विश्वास से ही काम नहीं चलता। लेन देन का काम अपने नियमों पर ही चलना चाहिए। 

यह सुनकर ठाकुर साहब कुछ देर सोच में पड़ गए। फिर कुछ सोचकर बोले ठीक है सेठ जी, मेरे पास एक बहुमूल्य चीज है। हालांकि उसे मैं किसी कीमत पर भी नहीं देता, पर बेटी का ब्याह करना है, इसलिए मजबूरी में उसे ही मैं आपके यहां गिरवी रख दूंगा। 

बहुमूल्य चीज की बात सुनकर सेठ के मुंह में पानी आ गया। उत्सुकता से बोला, ऐसी कौन सी चीज आपके पास है? ठाकुर साहब ने धीरे से सेठ के कान में कहा, एक उल्लू है सेठ जी, सुनहरी उल्लू। साहूकार चौंककर बोला उल्लू, सोने का उल्लू कितने तोले का है? 

ठाकुर साहब बोले सोने का बना हुआ नहीं, जीता जागता उल्लू है। सेठ जी यह सुनकर हंसा और बोला आप भी मजाक करते हैं ठाकुर साहब। मैंने तो समझा कि 10, 20 तोले का सोने का उल्लू होगा। 

अब ठाकुर साहब ने फुलझड़ी छोड़ी, अरे सेठ जी, यह उल्लू सोने की एक गिन्नी रोज उगलता है। सोने की गिन्नी की बात सुनकर सेठ की आंखें खुली की खुली रह गई। ठाकुर साहब समझ गए कि तीर चल गया। वह अपनी बात पर और जोर देते हुए बोले, हां, सोने की गिन्नी आप परीक्षा लेकर देख लीजिए। 

साहूकार मान गया। 

अगले दिन ठाकुर साहब उल्लू को पांच गिन्नियां खिलाकर साहूकार के यहां ले गए। उल्लू को सामने बिठाकर बोले, उगल बेटा। और उल्लू ने झट से एक गिन्नी उगल दी। 

दूसरे दिन भी ठाकुर साहब ने साहूकार के सामने एक गिन्नी उगलवाई और तीसरे दिन सेठ से कहा कि अब वह उल्लू को आदेश दें। उत्सुकता से भरा साहूकार बोला, उगल बेटा और उल्लू ने एक गिन्नी उगल दी। 

सेठ का मन उछलने लगा। उसने तुरंत चांदी के 10000 हजार रुपए ठाकुर साहब के सामने रख दिए। ठाकुर साहब ने रुपए उठाए और जाते जाते बोले सेठ जी, आपके ये 10,000 जल्दी ही लौटाकर अपना उल्लू ले जाऊंगा। साहूकार मुस्कुराते हुए बोला अरे ठाकुर साहब, कोई जल्दी नहीं है, आराम से लौट आइएगा। ठाकुर साहब चले गए। 

साहूकार उल्लू के लिए एक खूबसूरत पिंजरा लाया और उसमें उसे बिठाकर अपने सामने के कमरे में टांग लिया। उल्लू के पेट में दो गिन्नियां बची थीं। अगले दो दिनों तक उसने वह गिन्नियां उगल दी। किंतु तीसरे दिन साहूकार की खिलाई हुई रबड़ी उगल दी। 

अब अगले दो तीन दिनों तक रबड़ी उगलने का क्रम चलता रहा तो साहूकार घबरा गया और नौकरों को भेजकर ठाकुर साहब को बुलवाया। ठाकुर ने आते ही कहा, कहिए सेठ जी, कैसे याद किया? सेठ झल्लाकर बोला ठाकुर, तुमने मेरे साथ धोखा किया है। 

ठाकुर बोला धोका, मैंने क्या धोखा दिया आपको? सेठ ने गुस्से में कांपते हुए कहा हां, तुमने धोखा दिया है। तुम बेईमान हो। तुम्हारा उल्लू बेईमान है। वह तीन दिनों से गिन्नी नहीं उगल रहा। ठाकुर तो असलियत जानता ही था, मगर दिखावे के लिए पूछा, अच्छा, तो फिर क्या उगल रहा है?

साहूकार ने माथा ठोककर कहा, यह तो रबड़ी उगल रहा है। 

यह सुनते ही ठाकुर ने ठहाका लगाया और बोला, तो इसमें उल्लू का क्या कसूर है सेठ जी, आपने रबड़ी खिलाई थी, सो उसने रबड़ी उगल दी। यदि आप उसे गिन्नी खिलाते तो वह गिन्नी उगलता। आखिर ठाकुर का उल्लू है। बेईमानी थोड़े ही करेगा? जो खाएगा वही तो उगलेगा। 

यह कहकर ठाकुर साहब खिलखिलाते हुए साहूकार के घर से बाहर निकल गए और सेठ उल्लू की तरफ और उल्लू सेठ की तरफ देखता ही रह गया। 


3. चंदूलाल और डब्बू की हास्य कहानी (Funny Comedy Story in Hindi)

चंदू लाल उन दिनों सड़क के किनारे विज्ञापनों के बड़े बड़े बोर्ड बनाया करता था। एक दिन वह ऊपर की सीढ़ी पर से नीचे आ गिरा तो उसे बहुत चोट आ गई। 

डब्बू जी उसे देखने अस्पताल पहुंचे। देखा, चंदूलाल को जगह जगह फ्रैक्चर का पट्टियां बंधी हैं। सारे शरीर पर फ्रैक्चर फ्रैक्चर। कुछ दिखाई नहीं पड़ता, बस आंखें दिखाई पड़ती हैं और मुंह दिखाई पड़ता है। 

डब्बू जी को बहुत दुख हुआ और कहा कि बहुत दुखी हूं। तुम्हें बहुत दुख हो रहा होगा। चंदूलाल ने कहा कि ऐसे नहीं होता। हां, जब हंसता हूं। तब जगह जगह दुख होता है। 

डब्बू जी ने कहा, लेकिन इसमें हंसने की बात ही कहां? हंसते काहे के लिए? 

तो चंदूलाल ने कहा, हंसने का कारण यह है कि अब कुछ न पूछो, न पूछो तो अच्छा है। 

अरे, मैं जिस जगह काम कर रहा था, उसके सामने वाले मकान की खिड़की में एक नवयुवती अपनी ड्रेस बदल रही थी। वह अपना आखिरी कपड़ा उतारने ही जा रही थी कि सीढ़ी टूट गई और मैं नीचे आ गिरा और यह हालत हुई। 

डब्बू जी ने आश्चर्य से पूछा कि लेकिन सीढ़ी टूटी कैसे? क्या तुम्हारे वजन से सीढ़ी टूटी? 

चंदूलाल बोले, अरे, मेरे वजन से कहां? वह तो वे 25 आदमी और जो चढ़े हुए थे, उनके वजन के कारण टूटी। कोई मैं अकेला थोड़ा सीढ़ी पर था। पूरा गांव ही चढ़ा हुआ था। सीढ़ी भी कब तक ठहरती। 

और इसलिए कभी कभी रह रहकर उनको हंसी आ जाती थी। वाह रे वाह!


4. मालिक और नौकर की मजेदार कहानी (Short Funny Story in indi)

एक सेठ अपने नौकर को समझाते हुए बोला, देख रामू, मेरे पास कोई भी मिलने आता है तो मैं तुम्हें आवाज लगाऊंगा कि रामू शरबत लाओ तो तुम आकर कहोगे कि मालिक बादाम का लाऊ, किसमिस का या काजू का। 

मेरे कहने का मतलब है मैं जो भी चीज तुमसे मंगवाऊ तो तुम मेहमानों के आगे एक चीज के दो तीन नाम लिया करो। 

जैसे मैं कहूं रामू, चाय लाओ, तो तुम कहना, मालिक चाय लाऊ, कॉफी, या दूध ही ले आऊं। जैसे मैं कहूं ठंडा लाओ। तो तुम कहोगे, मालिक, पेप्सी लाऊ, कैम्पा या मिरिंडा। मेरी बात अच्छी तरह समझ गए ना? रामू बोला, समझ गया मालिक।

एक बार सेठ के पास पांच बड़े सेठ व्यापार के सिलसिले में आए और अपने व्यापार के बारे में बातें कर रहे थे तो उन सेठों ने कहा कि सेठ जी आपके पिताजी के सामने हुई बातें हो जाए तो भी अच्छा होता। सेठ ने कहा ठीक है, मैं अभी बुला देता हूं। 

सेठ ने रामू को आवाज लगाई – रामू। रामू दौड़कर आया और कहा, जी मालिक, सेठ ने कहा, जरा मेरे पिताजी को बुला लाओ।

रामू कुछ सोचकर, मालिक कौन से पिताजी को बुलाऊ, दिल्ली वाले, राजस्थान वाले, या मुम्बई वाले को?


5. कैदियों की राम लीला हास्य कहानी (Very Short Funny Story in Hindi)

जेलर साहब अपने घर के सामने उदास बैठे थे। उनके एक दोस्त आए और कहा जेलर साहब आज कैसे उदास हो? 

जेलर साहब, क्या बताऊं यार आज कल राम लीला चल रही है। 

दोस्त, फिर इसमें चिंता की क्या बात है? 

जेलर साहब, यार परसो जेल में कैदियों ने कहा कि सर हम भी राम लीला करेंगे। 

दोस्त, फिर?

जेलर साहब, फिर क्या मैंने सहमति दे दी। 

दोस्त, फिर?

जेलर साहब, फिर क्या था यार। पाठ चल रहा था कि लक्ष्मण को शक्तिबाण लगी तो जो कैदी हनुमान बना था वह राम से बोला, हे रघुनाथ, आप चिंता मत करो। मैं अभी जाता हूं और संजीवनी बूटी लेकर आता हूं। 

दोस्त, उसके बाद क्या हुआ? 

जेलर साहब, फिर क्या, वह परसों का गया हुआ अभी तक संजीवनी लेकर नहीं आया है।


6. गधे की बात। मजेदार कहानी छोटी सी (Funny Short Srory in Hind)

पति पत्नी खाने की टेबल पर। पत्नी खाना लगा रही थी, पति बैठे हुए थे और उनके दोनों बच्चे मोनू और पिंकी खेल रहे थे। 

पति पत्नी से, आज मैं ऑफिस से आ रहा था कि एक गधा। 

तभी पीछे से मोनू की आवाज आई, मम्मी देखो पिंकी ने मेरी कॉपी फाड़ दी। 

मम्मी, कोई बात नहीं बेटे, मैं दूसरी कॉपी ला दूंगी। 

पति, हां, तो मैं कह रहा था कि आज ऑफिस से आ रहा था कि एक गधा। 

तभी पीछे से पिंकी की आवाज आई, देखो ना मम्मी, मोनू ने मेरी गुड़िया तोड़ दी। 

पत्नी गुस्से से, तुम दोनों भगवान के लिए चुप हो जाओ। पहले मुझे गधे की बात सुनने दो।


7. संता, गांव का सरपंच (Funny Short Kahani in Hindi)

एक बार संता को गांव का सरपंच बना दिया गया। गांव वालों ने सोचा कि छोरा पढ़ा लिखा है, समझदार है। अगर यह सरपंच बन गया तो गांव की भलाई के लिए काम करेगा। 

मौसम बदला सर्दियों के आने के महीने भर पहले गांव वालों ने संता से पूछा, सरपंच साहब, इस बार सर्दी कितनी तेज पड़ेगी? संता ने गांव वाले से कहा, कि मैं आपको कल बताऊंगा। 

संता तुरंत ही शहर की ओर निकल गया। वहां जाकर मौसम विभाग में पता किया तो मौसम विभाग वाले बोले, सरपंच साहब! इस बार बहुत तेज सर्दी पड़ने वाली है। 

संता भी दूसरे दिन गांव में आकर ऐसा ही बोल दिया। गांव वालों को विश्वास था कि सब अपने सरपंच साहब पढ़े लिखे हैं। शहर से पता करके आए हैं तो सही ही कह रहे होंगे। गांव वालों की नजर में संता की इज्जत और बढ़ गई। तेज सर्दी पड़ने की बात सुनकर गांव वालों ने सर्दी से बचने के लिए लकड़ियां इकट्ठी करनी शुरू कर दी। 

महीने भर बाद जब सर्दियों का कोई नामोनिशान नहीं दिखा तो गांव वालों ने संता से फिर पूछा। संता ने उन्हें फिर दूसरे दिन के लिए टाला और शहर के मौसम विभाग में पहुंच गया। 

मौसम विभाग वाले बोले कि सरपंच साहब आप चिंता मत करो। इस बार सर्दियों के सारे रिकार्ड टूट जाएंगे। संता ने ऐसा ही गांव में आकर बोल दिया। संता की बात सुनकर गांव वाले पागलों की तरह लकड़ियां इकट्ठी करने लग गए। इस तरह 15 दिन और बीत गए, लेकिन सर्दियों का कोई नामोनिशान नहीं दिखा। 

गांव वाले संता के पास आए। संता फिर मौसम विभाग जा पहुंचा। मौसम विभाग वालों ने फिर वही जवाब दिया कि सरपंच साहब आप देखते जाइए कि सर्दी क्या जुल्म ढाती है। 

संता फिर से गांव में आकर ऐसा ही बोल दिया। अब तो गांव वाले सारे काम धंधे छोड़कर सिर्फ लकड़ियां इकट्ठी करने के काम में लग गए। इस तरह 15 दिन और बीत गए, लेकिन सर्दियां शुरू नहीं हुई। गांववाले संता को कोसने लगे। संता ने उनसे एक दिन का वक्त और मांगा। 

संता तुरंत मौसम विभाग पहुंचा तो उन्होंने फिर यह जवाब दिया कि सरपंच साहब इस बार सर्दियों के सारे रिकार्ड टूटने वाले हैं। अब संता का धैर्य भी जवाब दे गया। 

संता ने पूछा आप इतने विश्वास से कैसे कह सकते हैं? मौसम विभाग वाले बोले कि सरपंच साहब हम पिछले दो महीने से देख रहे हैं। पड़ोस के गांव वाले पागलों की तरह लकड़ियां इकट्ठी कर रहे हैं। इसका मतलब सर्दी बहुत तेज पड़ने वाली है। 

संता वही चक्कर खाकर गिर गया।


8. लालची पंडितों को सिखाया सबक (Funny Comedy Story in Hindi)

विजयनगर के ब्राह्मण बड़े ही लालची थे। वे हमेशा किसी न किसी बहाने राजा से धन वसूल करते थे। राजा की उदारता का अनुचित लाभ उठाना उनका परम कर्तव्य था। 

एक दिन राजा कृष्णदेव राय ने उनसे कहा, मरते समय मेरी मां ने आम खाने की इच्छा व्यक्त की थी, जो उस समय पूरी नहीं की जा सकी थी। क्या अब ऐसा कुछ हो सकता है, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिले? 

ब्राह्मणों ने कहा, महाराज, यदि आप 108 ब्राह्मणों को सोने का एक एक आम भेंट कर दें तो आपकी मां की आत्मा को अवश्य शांति मिल जाएगी। ब्राह्मणों को दिया दान मृत आत्मा तक अपने आप पहुंच जाता है। 

राजा कृष्णदेव राय ने ब्राह्मणों को सोने के 108 आम दान कर दिए। ब्राह्मणों की मौज हो गई। उन आमों को पाकर तेनालीराम को ब्राह्मणों के इस लालच पर बहुत क्रोध आया। वह उन्हें सबक सिखाने की ताक में रहने लगा। 

जब तेनालीराम की मां की मृत्यु हुई तो एक महीने के बाद उसने ब्राह्मणों को अपने घर आने का न्योता दिया कि वह भी मां की आत्मा की शांति के लिए कुछ करना चाहता है। खाने पीने और बढ़िया माल पाने के लोभ में 108 ब्राह्मण तेनालीराम के घर जमा हुए। 

जब सब आसनों पर बैठ गए तो तेनालीराम ने दरवाजे बंद कर लिए और अपने नौकरों से कहा, जाओ, लोहे की गरम गरम सलाखें लेकर आओ और इन ब्राह्मणों के शरीर पर दागो। ब्राह्मणों ने सुना तो उनमें चीख पुकार मच गई। सब उठकर दरवाजे की ओर भागे, लेकिन नौकरों ने उन्हें पकड़ लिया और एक एक बार सभी को गर्म सलाखें दागी गई। 

बात राजा तक पहुंची। वे स्वयं आए और ब्राह्मणों को बचाया। क्रोध में उन्होंने पूछा यह क्या हरकत है तेनालीराम? 

तेनालीराम ने उत्तर दिया, महाराज, मेरी मां को जोड़ों के दर्द की बीमारी थी। मरते समय उनको बहुत तेज दर्द था। उन्होंने अंतिम समय में यह इच्छा प्रकट की थी कि दर्द के स्थान पर लोहे की गरम सलाखें दागी जाएं ताकि वह दर्द से मुक्ति पाकर चैन से प्राण त्याग सकें। 

उस समय उनकी इच्छा पूरी नहीं की जा सकी। इसलिए ब्राह्मणों को सलाखें दागनी पड़ी। 

राजा हंस पड़े। ब्राह्मणों के सिर भी शर्म से झुक गए।


9. मेंढक-मेंढकी रोचक हास्य कथा (Funny Comdey Story in Hindi)

गर्मी के दिन थे। एक मेंढक ने अपनी पत्नी से कहा, जब हम रात में गाते हैं तो उस किनारे मकान में रहने वालों को जरूर तकलीफ होती होगी। मेंढकी ने कहा इससे क्या? वे लोग भी तो दिन में बातचीत करते हुए हमारी नींद खराब करते हैं। 

मेंढक ने कहा, हम यह मानें या न मानें पर सच यही है कि रात में हम कुछ ज्यादा ही मस्त होकर गाते हैं। मेंढक की पत्नी बोली, वे लोग भी दिन में कितनी जोर जोर से गप्पे हांकते हैं, चीखते हैं, चिल्लाते हैं। 

मेंढक ने कहा, अपनी जात के उस मोटे मेंढक के बारे में तो सोचो। चटराते हुए अड़ोस पड़ोस की नींद हराम किए रहता है। मेंढकी बोली और यह राजनेता, पुजारी और वैज्ञानिक यह भी तो इस किनारे आकर अपनी चिल्लपों से जमीन आसमान एक किए रहते हैं। 

मेंढक ने कुछ सोचते हुए कहा, हमें इन मनुष्यों से अधिक श्रेष्ठ बनना चाहिए। क्यों न हम रात में चुप रह करें और अपने गीत मन ही मन में गुनगुनाएं। चांद सितारे तो हमसे फरमाइश करते ही रहते हैं। कम से कम दो तीन रातें चुप रहकर देखते हैं। मेंढकी ने कहा ठीक है, देखते हैं तुम्हारी उदारता से हमारे क्या हाथ आता है। 

वे तीन रातों के लिए बिल्कुल चुप हो गए। झील के किनारे रहने वाली बातूनी औरत तीसरे दिन नाश्ते के दौरान अपने पति से कटखने अंदाज में बोली, तीन रातें बीत गई मुझे नींद नहीं आई। जब मेंढकों की आवाज मेरे कानों में आती रहती थी मैं निश्चिंत होकर सोती थी। कोई बात है, वे मेंढक तीन दिनों से चुप क्यों हैं? जरूर कुछ न कुछ हुआ है। अगर मैं न सो पाई तो पागल हो जाऊंगी। 

मेंढक ने जब यह सुना तो अपनी पत्नी को आंख मारते हुए बोला। इन रातों के मौन व्रत ने हमें भी पागल सा कर दिया है, है ना। मेंढक की पत्नी ने कहा, यह रातों की चुप्पी तो जान ही ले लेगी। वैसे तो मुझे भी कोई कारण नजर नहीं आता कि हम उन लोगों के लिए चुप रहें जो अपने जीवन की रिक्तता को शोर से भरकर चैन से सोना चाहते हों। 

और उस रात मेंढक मेंढकी से चांद सितारों द्वारा की गई गीतों की फरमाइशें खाली नहीं गई। 


10. गोबर बाबा का चमत्कार हास्य व्यंग्य (Funny Hindi Story for Kids)

एक महिला का बच्चा कुछ दिन से बीमार हो रहा था। कई डॉक्टर, वैद्य और हकीमों का इलाज करवाया पर कोई फायदा नहीं हुआ। वह महिला इतनी परेशान हो गई थी कि उसे कोई भी कहीं भी दिखाने को कहता। वह बच्चे को लेकर वहीं पहुंच जाती। लेकिन बच्चे की बीमारी पर किसी की कोई दवा असर नहीं कर रही थी। 

आस पड़ोस में सभी को पता था कि उस महिला का बच्चा बीमार है। रास्ते चलते जो भी मिलता उस बच्चे की तबीयत के बारे में पूछता। एक दिन वह महिला अपने बच्चे को किसी बैदजी को दिखाकर लौट रही थी। तभी सामने से पड़ोस में रहने वाला एक मज्जा की युवक आ रहा था। 

उसने उसे देखकर कहा, अरे भाभीजी, कहां घूम आई? महिला ने उदास स्वर में कहा, घूमना कहां देवरजी? बस, बच्चे को दिखा कर आई हूं। युवक बोला अरे आपका बच्चा अभी तक ठीक नहीं हुआ। महिला बोली जिसने जो बताया वही उपाय किया पर अभी तो 1% भी कोई फायदा नहीं है। आप बता दो। कोई उपाय हो तो वो भी कर के देख लूंगी। 

युवक स्वभाव से मजाकिया था। ऐसी स्थिति में भी उसे मजाक सूझा। उसने झट से कहा भाभीजी उपाय तो है पर देख लो आप कर सको या नहीं। महिला बोली अरे आप बताओ तो सही, जब इतना सब ही कर लिया तो यह भी आजमा लेंगे। 

वहां पास ही एक पीपल का पेड़ था। युवक ने पीपल की तरफ इशारा करके कहा वह पीपल का पेड़ देख रही हो। उसके नीचे छोटा सा बाबा है। सुबह जल्दी उठकर वहां दो अगरबत्ती जलाकर बच्चे को ढोक लगवाओ। सब ठीक हो जाएगा। साथ में दवाइयां भी देते रहना। 

अच्छा देवर जी, मैं यह भी कर के देख लेती हूं। ऐसा कहकर महिला आगे बढ़ गई। 

दूसरे दिन सुबह स्नान करके वह महिला वहां गई। चारों तरफ देखा, लेकिन उसे वहां कोई स्थान नजर नहीं आया। उस पीपल के नीचे आवारा पशु बैठे रहते थे तो वहां चारों तरफ गोबर पड़ा था और गांव में गोबर को पोठा कहते हैं। गोबर देख महिला को लगा शायद देवर जी इसी को पोठाशाह बता रहे थे। 

अतः महिला ने वहीं गोबर के पास बैठ कर दो अगरबत्ती जलाई और बच्चे को ढोक लगवा ली। उस दिन से महिला का यह नित्यक्रम हो गया। साथ में बैदजी की दवाई भी देती रही। 

अब इसे दवाइयों का असर समझो या नियति का खेल? उस महिला का लड़का ठीक होने लगा। 

एक दिन उसे वही युवक फिर मिला। वह बोला, भाभी, अब आपके बच्चे की तबीयत कैसी है? महिला बोली, देवरजी, भगवान आपका भला करे। पोठाशाह के ढोक और अगरबत्ती लगाने से मेरा बेटा बिल्कुल ठीक हो गया। वह युवक आश्चर्य से बोला, बिल्कुल ठीक हो गया। 

महिला ने मुस्कुरा कर कहा, हां देवर जी। युवक बोला, सब ऊपरवाले का चमत्कार है। लेकिन वह मन ही मन सोच रहा था कि मैंने तो ऐसे ही मजाक में कह दिया था। शायद बैदजी की दवा ने काम किया और इस महिला ने गोबर को ही कोई बाबा मान लिया। 

लड़के के ठीक होने की खुशी में उस महिला ने पीपल के पेड़ के नीचे एक छोटा सा चबूतरा बनवा दिया। अब उस महिला से कोई भी पूछता कि तुम्हारा बेटा कैसे ठीक हुआ तो वह महिला कहती। मैंने तो गोबर को ढोक लगवाई थी और दो अगरबत्तियां रोज जलाती थी।

किसी के घर में कोई बीमार होता तो वह महिला उसे गोबर को ढोक देने और अगरबत्ती जलाने की सलाह देती। साथ में दवा बंद न करने की हिदायत भी दे देती। 

देखते ही देखते गोबर के चमत्कार के किस्से गांव में ही नहीं बल्कि आसपास के गांवों में भी फैलने लगे। एक भिक्षा मांगने वाले फकीर ने जब देखा यहां काफी लोग आते हैं तो उसने उस चबूतरे पर डेरा जमा लिया। वह रोज चबूतरे की सफाई करता और रोज वहां ताजा गोबर रखता। 

वहां आने वाले भक्त जो दे जाते, उससे अपना गुजारा कर लेता। 

कुछ ही दिन में भक्तों ने वहां एक पक्का बरामदा और कमरा बनवा दिया। वह भिखारी फकीर कहीं से एक मोरपंख का झाड़ा ले आया और गुनगुनाते हुए लोगों के झाड़े देने लगा। वहां आने के बाद जिसे भी लाभ होता, व यही कहता फिरता, गोबर का चमत्कार है। 

देखते ही देखते वहां लोगों की भीड़ रहने लगी। आसपास के लोगों ने छोटी छोटी अगरबत्ती, प्रसाद और फूल मालाओं की दुकानें खोल ली। सुबह से शाम तक वहां गोबर साहब के जयकारे लगने लगे। साल में दो बार वहां मेला भरने लगा। सवामणी होने लगी। झोली लेकर भीख मांगने वाला फकीर अब चार पहिया वाहन में चलने लगा। 

इस तरह एक मजाक ने चमत्कार का रूप ले लिया और रास्ते का गोबर अब गोबर साह बाबा बन गया। वह व्यक्ति जब उधर से गुजरता तो अपने मजाक और लोगों की फितरत पर मन ही मन हंसने लगता। 

दोस्तो, यह कहानी (funny story in hindi ) काल्पनिक जरूर है, मगर सही मायने में यह समाज की एक कड़वी सच्चाई है। 


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Rakesh Dewangan

मेरा नाम राकेश देवांगन है। Hindi Kahani ब्लॉग वेबसाइट पर मेरा उद्देश्य हिंदी में प्रेरक, मजेदार, और नैतिक कहानियों के माध्यम से पाठकों को मनोरंजन और शिक्षित करना है। मेरी कोशिश है कि मैं उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री प्रदान करूँ जो लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए। आपके समर्थन से, मैं अपने इस सफर को और भी रोमांचक और सफल बनाने की उम्मीद करता हूँ।

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