3 Long Emotional Story in Hindi: ममता और दर्द की कहानियाँ 2024

दोस्तों, आज के इस लंबी भावनात्मक हिंदी कहानी (Long Emotional Story in Hindi) में, हम आपको जीवन के उन पलों से रूबरू करवाने जा रहे जो आगे जाकर आपके दिल को छू जायेगी। इस पोस्ट में हम तीन गहरी और मार्मिक कहानियाँ पेश करेंगे। 

पहली कहानी एक माँ, बेटे, और बहू के रिश्तों की जटिलताओं और उनके बीच के भावनात्मक संघर्ष को उजागर करती है, दूसरी कहानी में एक माँ अपने बेटे को लिखी एक चिठ्ठी में अपने प्यार और उम्मीदों का इज़हार करती है। तीसरी कहानी एक वृद्ध माँ की दर्दभरी दास्तान है, जो अपने बेटे की प्रतीक्षा में जीवन बिता रही है। 

उम्मीद करते हैं कि आज कि यह Long Emotional Story in Hindi न केवल आपकी आँखों में आँसू लाएँगी बल्कि जीवन के महत्वपूर्ण सबक भी सिखाएँगी।

3 Long Emotional Story in Hindi: लोंग इमोशनल स्टोरी इन हिंदी

तो दोस्तों, ये है वो 3 लोंग इमोशनल स्टोरी हिंदी जो जीवन में रिश्तों की अहमियत और उनके भावनात्मक उतार-चढ़ाव को समझाते हुये आपके दिल की गहराई को छू जायेगी।

1. माँ बेटे और बहु की रुलाने वाली कहानी (Emotional Story in Hindi)

माँ बेटे और बहु की रुलाने वाली कहानी (Emotional Story in Hindi)

मां तुम्हें तकलीफ रहती है। हालांकि यह तुम्हारा ही घर है, लेकिन मैं सुबह अपने काम पर चला जाता हूं और तुम्हारी बहू धृति भी अपने ऑफिस चली जाती है। बच्चे स्कूल से जब तक आते नहीं, तब तक तुम्हें अकेले रहना पड़ता है। 

देखो, तुम्हारी तबीयत भी खराब रहती है। इसलिए मैं सोचता हूं कि पास ही एक हॉस्पिटल है, वहां आपके रहने का इंतजाम कर दूं। कुछ दिन में आप ठीक हो जाओगी तो फिर यहां आ जाना ठीक है। विमला देवी ने बेटे देवेश की बात को सुनकर चुपचाप अनजाने में जमीन की तरफ देखते हुए धीरे से हामी भरते हुए सर हिलाया। 

अगले दिन हमेशा की तरह बहूरानी शॉपिंग को निकल गई और दिन में घर आकर नौकर से बोली कि चाय नाश्ते का सही से प्रबंध करें। उसकी सहेलियां आ रही हैं। आज किट्टी पार्टी यहीं पर है। 

इधर किटी पार्टी में सब एंजॉय करते हुए बिजी थे। उधर विमला देवी का दमा का इनहेलर खत्म हो गया। उसने अपने बेटे देवेश को भी नहीं कहा था, क्योंकि अभी एक हफ्ता ही हुआ था उसे अपने बेटे के यहां रहने आए हुए। 

लगभग एक महीना ही हुआ था, जब उसके पति चल बसे थे, क्योंकि उससे पहले तो वह गांव में ही रहती थी। पति की मौत के बाद बेटा उसे अपने साथ शहर ले आया था, जहां वह अपने परिवार के साथ रहता था। 

जब उसकी सांस फूलने लगी तो वह न चाहते हुए भी बहू को आवाज देने लगी। बहू की सहेलियों ने बताया देखो तुम्हारी सास बुला रही है, जाओ सुन आओ धृति। धृति चेहरे पर झूठी मुस्कान लाकर उठी और सास के कमरे में घुसते ही गुस्से से बोली, देखो, आपको शहर के बारे में कुछ मालूम नहीं है। यहां ऐसा नहीं बुलाया जाता। 

विमला देवी खांसे जा रही थी। उसकी सांसें घुट रही थी। लेकिन धृति बोलती रही कि मुझे न बुलाना, जो चाहे नौकर से मंगा लेना। यह कहकर वह मुड़ी और दरवाजा उठाकर वापस सहेलियों के साथ गपशप में मग्न हो गयी। 

विमला देवी की हालत बहुत गंभीर हो रही थी। अचानक उसे कुछ याद आया। उसने अपने बक्से को खोला। उसमें एक पुराना पर्स था। उसे जल्दी से खोला। उसमें पुराना आधा उपयोग किया हुआ इन्हेलर था। उसने जल्दी से इनहेल किया। 

अब उसकी तबीयत संभलने लगी, पर उसकी आंखों से आंसू ही आंसू गिर रहे थे। अपने बेटे और बहू की निष्ठुरता पर नहीं, बल्कि अपने पति को याद करके। 

यह वही पर्स था, जिसे उसके पति ने पिछले साल उसे उपहार में दिया था और जब उसने कहा था कि पर्स तो बहुत है उसके पास, तो उसके पति ने कहा था कि देखो तुम्हें दमे का रोग है और तुम अकसर दवाई भूल जाती हो। इसलिये एक डिबिया मैंने इसमें रखी है इनहेलर की ताकि कभी भूल जाओ तो यहां से ले लेना। 

फिर विमला देवी कुछ और सोचने लगी। उसे कुछ और याद आया। उसने उसी पर्स में एक छोटी सी पर्ची देखी और अब उसमें एक अजीब सी हिम्मत जगने लगी। विमला देवी ने दराज से कलम निकाला और पेपर जो अलमारी में रखा था, उस पर कुछ लिखा और अपनी छड़ी के सहारे धीरे धीरे कमरे से बाहर निकली और फिर घर से बाहर आ गई। 

शाम को घर में कोहराम मचा हुआ था। देवेश धृति दोनों लड़ रहे थे और कारण सिर्फ यह नहीं था कि विमला देवी घर पर नहीं थी। धृति बोलती है, अच्छा हुआ जो तुम्हारी मां चली गई। मुझे तो एक हफ्ते से ऐसा लग रहा था जैसे जेल में रह रही हूं। 

देवेश बोलता है, अरे यार, उनके साइन लेने थे मुझे घर के मकान के कागज पर, इसलिए तुम्हे कह रहा था कि कुछ और दिन झेल लो, कुछ और दिन एडजस्ट कर लो। मैंने तो उन्हे वृद्धाश्रम में रखने की बात हॉस्पिटल का बहाना देकर कर ली थी। पता नहीं कहां चली गई। 

इतने में देवेश के फोन पर एक कॉल आती है। 

देवेश फोन पर – हां बताइए। दूसरे तरफ से – सर, हम वृद्धाश्रम से बोल रहे हैं। देवेश बोला, पर आपको मेरा नंबर कहां से मिला? वैसे मैं आपसे मिलने ही आने वाला था। दूसरे तरफ से – नहीं सर, आप जिन्हें यहां पहुंचाना चाहते थे, वह यहां आ गई है और उन्होंने यह कहा है कि आप जिस कागज को लेने के लिए आएंगे, वह वहीं उनके कमरे की दराज में है। उस पर साइन कर दिए गए हैं। कहकर फोन काट दिया गया। 

फोन रखकर वृद्ध आश्रम के प्रबंधक ने विमला देवी की तरफ बहुत सम्मान से देखा। विमला देवी चुपचाप अपने नए कमरे की ओर बढ़ी और वहां जाकर पलंग पर बैठ गई। 

उन्होंने फिर से वो पर्स निकाला और उसमें से वह पर्ची जिसे उनके पति ने यह कह कि उन्हें पढ़ने नहीं दिया था कि यह तभी पढ़ना जब मैं न रहूं। तब विमला देवी ने लड़ते हुए कहा था, तब तो मैं इस कागज को फाड़ ही देती हूं। लेकिन उसके पति ने उसे ऐसा नहीं करने दिया था। 

आज वही कागज उसने पढ़ा जब उसकी खुद की जान पर आ रही थी और उसे यह लग ही रहा था कि आगे की उसकी जिंदगी कैसे कटेगी। 

उस कागज पर एक पता और नंबर लिखा था जो उसके पति के दोस्त का था और जो उसी शहर में रहते थे जहां विमला देवी ने घर से निकलकर फोन किया था और नीचे लिखा था –

विमला, खुद को कभी अकेला मत समझना। मैं रहूं न रहूं, लेकिन तुम्हें किसी का भी मोहताज नहीं होना पड़ेगा। इस नंबर पर बात कर लेना। मैंने इनके पास बैंक में तुम्हारे लिए पर्याप्त पैसे जमा कर दिए हैं। तुम जहां भी होगी, यह सज्जन तुम्हारी मदद करेंगे। 

तुम कभी घबराना मत। हमेशा हिम्मत से काम लेना। उसी तरह जैसी हिम्मत तुम हमेशा मुझे बांधती रही हो। 

विमला देवी को याद आने लगा कि सबसे अधिक यदि उसने अपने पति को मजाक मजाक में ही कभी बोला था तो यही कि,

आप क्या मुझे कुछ उपहार देंगे? कभी घूमने घुमाने तो लेकर नहीं जाते हैं। हमेशा अपने काम में ही लगे रहते हैं। और यह बताइए कि शादी के शुरू शुरू में तो साड़ी वगैरह लाते थे, पर अब तो वह भी मैं खुद बाजार से लेकर आती हूं। 

लेकिन आज अपने पति के इस उपहार से न सिर्फ उसमें स्वाभिमान भर गया था, बल्कि उसका हृदय इस प्रार्थना से भी भर उठा था कि संसार का हर पति अपनी पत्नी को कम से कम ऐसा उपहार अवश्य दें। 

दोस्तों, अगर इस इमोशनल स्टोरी ने आपके दिल को छुआ हो तो इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ और परिवारजनो के साथ शेयर जरूर करें और हमें आपके बहुमूल्य विचार कमेंट करके जरूर बताएं। धन्यवाद।


2. बेटे के नाम माँ की चिठ्टी (Emotional Heart-touching Story in Hindi)

बेटे के नाम माँ की चिठ्टी (Emotional Heart-touching Story in Hindi)

मुझे अगले संडे को किटी पार्टी में जाना है। सुदेश तुम तो जानते हो मेरी फ्रेंड लोग कितना सज संवर कर आती है किटी पार्टी में और मैंने तो अभी तक कोई भी शॉपिंग नहीं की है। सुदेश इस बार मैं किटी शॉपिंग के लिए बहुत लेट हो गई हूं। सुदेश तुम सुन भी रहे हो, मैं क्या बोल रही हूं? 

सुदेश झुंझलाते हुए बोला। हां यार, सुन रहा हूं। मैंने तुझे कब मना किया था शॉपिंग के लिए। ड्राइवर को लेकर चली जाती। शर्ट की बटन लगाते हुए सुदेश बोला – अब कितनी देर लगाओगे तैयार होने में? मुझे आज ही अपने स्टाफ को बोनस भी बांटना है। जल्दी करो, मेरे पास इतना टाइम नहीं है। बहुत से काम भी मुझे निपटाने हैं। 

सुदेश की तभी लॉन में बैठी मां पर नजर पड़ी। सुदेश सोचते हुए वापिस रूम में आया और बोला रागिनी, हम शॉपिंग के लिए जा रहे हैं तो तुमने मां से भी पूछा कि उसको कुछ चाहिए तो नहीं? रागिनी बोली – नहीं मैंने पूछा तो नहीं है और वैसे भी अब उनको इस उम्र में क्या चाहिए होगा, दो वक्त की रोटी और दो जोड़ी कपड़े। इसमें पूछने वाली क्या बात है! 

सुदेश बोला रागिनी, वह बात नहीं है। मां पहली बार गर्मियों की छुट्टियों में हमारे घर रुकी है, वरना तो हर बार गांव में ही रहती है, तो सिर्फ एक फॉर्मेलिटी के नाते ही सही, कम से कम पूछ तो लेती। 

झल्लाकर तेज आवाज में रागिनी बोली – अगर इतना ही मां का प्यार उमड़ रहा है तो खुद क्यों नहीं पूछ लेते? रागिनी अपने कंधे पर हैंडबैग लटकाते हुए बहुत तेजी से कमरे से बाहर निकल गई। 

सुदेश मां के पास जाकर बोला, मां, मैं और रागिनी उसकी शॉपिंग के लिए बाजार जा रहे हैं। आपको कुछ चाहिए तो बता दीजिए। मां बीच में ही बोल पड़ी – मुझे कुछ नहीं चाहिए बेटा। सुदेश फिर से बोला सोच लो मां, अगर आपको कुछ चाहिए तो प्लीज बता दीजिए। 

सुदेश की बहुत जोर देने पर मां बोली ठीक है, तुम रुको, मैं लिखकर देती हूं। तुम्हें और बहू को बहुत खरीदारी करनी है। कोई भूल न जाओ कहकर सुदेश की मां अपने कमरे में चली गई। कुछ देर बाद बाहर आई और लिस्ट सुदेश को थमा दी। 

सुदेश ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए बोला, देखा रागिनी, मां को भी कुछ चाहिए था, पर बोल नहीं रही थी। मेरी जिद करने पर लिस्ट बनाकर दी है। इंसान जब तक जिंदा रहता है, रोटी और कपड़े के अलावा भी कुछ और भी उसे चाहिए होता है। 

रागिनी बोली अच्छा बाबा ठीक है, पर पहले मैं अपनी जरूरत के सामान लूंगी फिर बाद में आप अपनी मां की लिस्ट देखते रहना, यह कहकर दोनो बाजार के लिये निकल गये।

पूरी खरीदारी करने के बाद रागिनी बोली, मैं बहुत थक गई हूं। मैं कार में एसी चालू करके बैठती हूं। आप माजी का सामान देख लो। इतने में सुदेश बोला अरे रागिनी तुम भी रुको फिर साथ चलते हैं, मुझे भी जल्दी है। चलो मैं देखता हूं कि मां ने आखिर मंगाया क्या है। यह कहकर सुदेश ने मां की लिखी पर्ची अपनी जेब से निकाली। 

रागिनी बोली – बाप रे इतनी लंबी पर्ची। पता नहीं क्या क्या मंगाया होगा। ज़रूर अपने गांव वाले छोटे बेटे और उसके परिवार के लिए बहुत सारा सामान मंगाया होगा। और बनों श्रवण कुमार कहते हुए रागिनी गुस्से से सुदेश की ओर देखने लगी। 

जैसे ही सुदेश ने लिस्ट देखी तो सुदेश की आंखों में आंसू आ गए और लिस्ट पकड़े हुए सुदेश के हाथ सूखे पत्ते की तरह हिल रहे थे। पूरा शरीर कांप रहा था। रागिनी बहुत घबरा गई और सुदेश से पूछने लगी कि ऐसा क्या मांग लिया तुम्हारी मां ने, कहकर पर्ची सुदेश के हाथ से झपट ली। 

हैरान थी रागनी भी कि इतनी बड़ी पर्ची में बस चंद शब्द ही लिखे थे। पर्ची में लिखा था – 

बेटा सुदेश, मुझे तुमसे किसी भी अवसर पर कुछ नहीं चाहिए। फिर भी तुम ज़िद कर रहे हो तो और तुम्हारे शहर की किसी दुकान में अगर मिल जाए तो फुर्सत के कुछ पल मेरे लिए लेते आना। 

ढलती सांझ हो गई हूँ मैं बेटा, मुझे गहराते अंधियारे से डर लगने लगा है। बहुत डर लगता है पल पल मेरी तरफ बढ़ रही मौत को देखकर। 

जानती हूं मौत को टाला तो नहीं जा सकता, यह शाश्वत सत्य है। पर अकेलेपन से बहुत घबराहट होती है बेटा। 

इसलिए बेटा जब तक तुम्हारे घर पर हूं, कुछ पल बैठकर मेरे पास कुछ देर के लिए ही सही, लेकिन बांट लिया कर मेरे बुढ़ापे का अकेलापन अपने साथ। 

बिना दीप जलाए ही रौशन हो जाएगी मेरी जीवन की सांझ बेटा। 

कितने साल हो गए बेटा तुझे स्पर्श ही नहीं किया, एक बार फिर से मेरी गोद में सर रखकर और मैं ममता भेजी हथेली से सहलाऊ तेरे सर को। 

एक बार फिर से इतराए मेरा हृदय तुझको करीब बहुत करीब पाकर मेरे बेटा, और फिर मुस्कुराकर मिलू मौत के गले। 

क्या पता बेटा अगली गर्मी की छुट्टियों तक रहूं या ना रहूं।


3. वृद्ध माँ की दर्दभरी कहानी ( Heart-touching Emotional Kahani in Hindi)

वृद्ध माँ की दर्दभरी कहानी ( Heart-touching Emotional Kahani in Hindi)

एक आदमी का नाम विमल था। वह बहुत परेशान था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो इस परिस्थिति से कैसे निपटे। वो अपनी मां को बहुत चाहता था किंतु उसकी पत्नी और बच्चे उसकी मां से बहुत दूर भागते थे क्योंकि उसकी मां की एक आंख नहीं थी। साथ ही उसकी कमर भी 90 अंश पर झुकी हुई थी। 

वैसे वह अपना काम काज सब खुद कर लेती थी किंतु फिर भी वह उसकी पत्नी और बच्चों के लिए हमेशा खटकती है। 

दादी ऊपर के कमरे में जाओ। विमल के बेटे अखिल ने बड़ी बेरुखी से कहा। पर बेटा, मैं तो यहां बहुत दूर बैठी हूं। विमल की मां ने बहुत प्यार से कहा। नहीं, आप उनके सामने मत रहो, वो मुझे चिड़ाते हैं, अखिल ने जोर से डांटते हुए कहा

क्या हुआ? आखिर क्यों चिल्ला रहे हो? विमल की पत्नी कामनी ने किचन से ही आवाज लगाई। देखो ना मां, दादी यहां ड्राइंग रूम में बैठी है और मेरे दोस्त आ रहे हैं। अखिल ने शिकायत भरे लहजे में कहा। मां जी, आप ऊपर चली जाओ, क्यों हम लोगों को लजवाती हो? कामनी ने अपने बेटे का पक्ष लेते हुए कहा। 

बेचारी सरस्वती चुपचाप उठकर जीने के सहारे ऊपर जाने लगी। कमर झुकी होने के कारण उन्हें ऊपर चढ़ने में बहुत परेशानी हो रही थी, किंतु वह पूरी ताकत से ऊपर के एक अकेले कमरे में जाकर बैठ गई। 

विमल बाजू के कमरे से सब सुन रहा था। उसे कष्ट हो रहा था कि उसकी मां को अपमानित होना पड़ रहा है। किंतु वह असहाय था। अगर वह कुछ कहता तो पत्नी और बच्चे उसका विरोध करने लगते हैं। 

दूसरे, उनके तर्क भी सही लगते हैं, क्योंकि वह एक प्रशासनिक अधिकारी था। उनका सामाजिक स्तर बहुत ऊंचा था। उसकी ससुराल भी एक उच्च घराने में थी। अतः वह चुपचाप इस तरह हर दिन अपनी मां को अपमानित होता देखता रहता था। 

रात को विमल की पत्नी ने कहा, देखो जी, अब कुछ करो। कल डायरेक्टर साहब की पत्नी आई थी। मां जी अपनी देशी धुन धारा में उनसे मिली। मुझे बहुत शर्म आ रही थी बताते हुए कि यह मेरी सास है। मैंने कह दिया कि दूर के रिश्तेदार हैं, इलाज कराने आई हैं। 

विमल को रोना आ गया, किंतु फिर भी वह चुप रहा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। अपने बेटे की मानसिक स्थिति को सरस्वती अच्छी तरह से जानती थी और बेटे को कोई कष्ट न हो, इसलिए वह हर बात को चुपचाप सह लेती थी। 

विमल बहुत उदास रहने लगा। एक तरफ परिवार और सामाजिक स्तर पर जीने की प्रतिबद्धता थी तो दूसरी ओर मां। 

आखिर मां से अपने बेटे की यह हालत देखी नहीं गई। एक दिन उसने अपने बेटे से कहा, विमल, बहुत दिन हो गए हैं। मैं अपने गांव जाना चाहती हूं। मुझे वहां पहुंचा दो। मेरा मन यहां नहीं लग रहा। किंतु मां, वहां तो कोई नहीं है। तुम्हारी देखभाल वहाँ कौन करेगा? विमल ने आश्चर्य से पूछा। 

अरे सब गांव वाले तो हैं और वहाँ तुम्हारे मामा जी तो उसी गांव में रहते हैं और फिर हम सारी व्यवस्था कर आएंगे ना। कामनी को तो जैसे मन की मुराद ही मिल गई हो। 

हां बेटा बहू सही कह रही हैं। सरस्वती ने लंबी सांस लेते हुए कहा। विमल जानता था कि गांव में मां की देखभाल करने वाला कोई नहीं है, लेकिन अपनी पत्नी की जिद के कारण वह अपनी मां को गांव छोड़ने पर विवश हो गया। 

मां को गांव छोड़कर आते वक्त उसे रोना आ रहा था तथा अपनी बेबसी पर गुस्सा भी आ रहा था। किंतु परिवार, पत्नी और समाज ने उसके इस मनोभाव को दबा दिया और वह सुकून सा महसूस करने लगा। 

कुछ दिनों के बाद उसके चाचा जो अमेरिका में रहते थे, आने वाले थे। जब विमल बहुत छोटा था, उसके पिताजी जीवित थे, तब वे भारत आए थे और उसके बाद वे अब भारत आने वाले थे। पूरा परिवार और आसपड़ोस वाले बहुत उत्साहित थे। अमेरिका से विमल के डॉक्टर चाचा आ रहे थे। 

डॉ। रमेश ने जैसे ही घर में कदम रखा, सबने मिलकर बहुत उत्साह से उनका स्वागत किया। क्यों विमल भाभी नहीं दिखाई दे रहीं हैं? कहां हैं? डॉ रमेश ने उत्साहपूर्वक पूछा। जी, वह गांव में रहती हैं। यहां उनका मन नहीं लगा। कामनी ने सपाट लहजे में उत्तर दिया। 

डॉक्टर रमेश ने विमल की ओर देखा तो विमल ने अपनी आंखें झुका ली। डॉ रमेश सब समझ गए। बोले, कल हम सब लोग भाभी से मिलने गांव चलेंगे। 

दूसरे दिन सभी लोग गांव के घर में पहुंचे। देखा तो सरस्वती को बहुत तेज बुखार है और वह पलंग पर असहाय पड़ी हैं। डॉ रमेश दौड़कर सरस्वती के पास गए। उनके पैर छूकर रोने लगे। सरस्वती की यह हालत उनकी कल्पना से परे थी। 

वाह बेटा विमल, तूने तो नाम उजागर कर दिया। अपनी मां की यह हालत देखकर तुझे तो शर्म भी नहीं आ रही होगी। डॉ रमेश ने विमल को लगभग डांटते हुए कहा। नहीं देवरजी, विमल का कोई दोष नहीं है। मैं खुद ही गांव आई थी। सरस्वती ने अपने बेटे का बचाव किया। 

मुझे सब पता चल गया है भाभी, आप चुप रहो। क्यों बहू, तुम्हें अपनी सास की कुरूपता पसंद नहीं आई। समाज में तुम्हें नीचा देखना पड़ता है। है ना? डॉ रमेश ने कामनी की ओर व्यंग से देखा। कामनी निरुत्तर होकर विमल की ओर देखने लगी। 

आज तुम जिस सामाजिक स्तर पर हो, वह इन्हीं के संघर्षों की देन है। और बेटा विमल, तुम्हें शायद मालूम न हो कि बचपन में जब तुम एक साल के थे, तब छत से नीचे गिरने के कारण तुम्हारी एक आंख फूट गई थी और तुम्हारी रीढ़ की हड्डी में भी समस्या थी। तब तुम्हारी इस कुरूप मां ने अपनी एक आंख और अपनी बोन मैरो तुम्हें देकर इतना सुंदर स्वरूप दिया था। 

कामनी बेटा, इतने सालों तक संघर्ष करके बेटे को प्रशासनिक अधिकारी बनाने वाली इस संघर्षशील औरत की तुम लोगों ने यह दशा कर दी। तुम्हें ईश्वर कभी माफ नहीं करेगा। 

डॉक्टर रमेश की आंखों से अश्रु जलधारा बह रही थी। अब भाभी आप मेरे साथ अमेरिका जाएंगी। यहां इस स्वार्थी लोगों के बीच नहीं रहेंगी। डॉ रमेश ने सरस्वती से कहा। विमल को तो काटो तो खून नहीं था। डॉक्टर रमेश जो उनके चाचा थे, उन्होंने जो राज बताया उसके बाद तो विमल को यही लग रहा था कि उससे ज्यादा पापी इंसान इस दुनिया में कोई और है ही नहीं। 

वह दौड़ता गया और मां सरस्वती के कदमों से लिपट गया। मां, मेरा अपराध अक्षम्य है। मैं जानबूझकर चुप्पी साधे रहा। आपका अपमान करवाता रहा। अब सिर्फ आप ही उस घर में मेरे साथ रहेंगी और कोई नहीं। विमल ने आग्रेय दृष्टि से अपनी पत्नी और बच्चे को देखा। 

कामनी को भी बहुत पश्चाताप हो रहा था, किंतु उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह सरस्वती से आंखें मिलाएं। सरस्वती ने कामनी की मनस्थिति को समझकर उसको पुचकारते हुए अपने पास बुलाया और विमल को डांटते हुए कहा, खबरदार, मेरी बहू को मुझसे अलग करने की कोशिश की तो तुझे ही घर से बाहर निकाल दूंगी। 

कामनी और बच्चों ने सरस्वती के पैर पड़ते हुए अपने व्यवहार पर माफी मांगी और मां के हृदय ने सबको माफ कर दिया। 


आशा करते हैं कि आपको यह heart-touching long emotional story in Hindi जरूर पसंद आई होगी। अगर आपको यह स्टोरी पसंद आई हो तो प्लीज इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ और परिवारजनो के साथ शेयर जरूर करें और हमें आपके बहुमूल्य विचार कमेंट करके जरूर बताएं।

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Rakesh Dewangan

मेरा नाम राकेश देवांगन है। Hindi Kahani ब्लॉग वेबसाइट पर मेरा उद्देश्य हिंदी में प्रेरक, मजेदार, और नैतिक कहानियों के माध्यम से पाठकों को मनोरंजन और शिक्षित करना है। मेरी कोशिश है कि मैं उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री प्रदान करूँ जो लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए। आपके समर्थन से, मैं अपने इस सफर को और भी रोमांचक और सफल बनाने की उम्मीद करता हूँ।

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