सफलता की कहानियाँ (Success Story in Hindi) हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। चाहे वह विद्यार्थीयो की बात हो या जीवन में लक्ष्य पाने की बात हो, हर स्तर पर हिंदी प्रेरणादायक कहानियां (Motivational Story in Hindi) हमें मोटिवेट करने में बहुमूल्य भूमिका निभाती है।
और आज के इस ब्लॉग पोस्ट में, हम ऐसे ही विभिन्न वास्तविक जीवन की सफलता की प्रेरक कहानियाँ (Real-life Success Motivational Story in Hindi) प्रस्तुत करेंगे जो आपमे नई ऊर्जा भरेंगी और आपको आपके सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित करेंगी।
ये कहानियाँ उन व्यक्तियों की हैं जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी और अपनी मेहनत और लगन से सफलता हासिल की। चाहे वह किसी व्यवसायी सफलता की कहानी हो, या फिर किसी विद्यार्थी की संघर्षपूर्ण यात्रा, इन कहानियों दिखाती है कि मेहनत, धैर्य और संकल्प के साथ सब कुछ संभव है।
तो आइए, इन विद्यार्थीयो के लिए प्रेरणादायक कहानियों के माध्यम से हम सफलता के सच्चे मायने और जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण को समझने की कोशिश करते हैं।
5 Best Success Story in Hindi: महान लोगों की प्रेरणादायक कहानियां
तो दोस्तों, यह रहे 5 जबरदस्त सफलता की प्रेरक कहानी छोटी सी (Best Success Story in Hindi) जो संघर्ष, मेहनत और संकल्प के माध्यम से हासिल की गई असाधारण सफलताओं को उजागर करती हैं।
1. APJ Abdul Kalam Success Motivational Story in Hindi
दोस्तो, यह कहानी है हमारे मिसाइलमैन एपीजे अब्दुल कलाम जी के बारे में। उनकी लाइफ की जर्नी और ऐसे ही कुछ इंटरेस्टिंग किस्से आज के इस पोष्ट में मैं आज आपके साथ शेयर करूंगा।
एपीजे अब्दुल कलाम (APJ Abdul Kalam) जी का जन्म तमिलनाडु के रामेश्वरम शहर के एक छोटे से गांव धनुषकोडी में एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था जहां उनके पिता एक छोटी सी नाव चलाया करते थे जिससे उनकी फैमिली को मुश्किल से दो वक्त की रोटी नसीब होती थी।
उनके घर में कोई भी पढ़ा लिखा नहीं था लेकिन उन्हें बचपन से ही पढ़ाई लिखाई का बहुत शौक था। गरीब होने के बावजूद उनकी फैमिली उन्हें पढ़ाई के लिए पूरी तरह से सपोर्ट करती थी। लेकिन एपीजे अब्दुल कलाम जी हर सुबह स्कूल जाने से पहले न्यूजपेपर बेचा करते थे, ताकि उनकी फैमिली पर उनकी पढ़ाई का ज्यादा प्रेशर न आए।
स्कूल में उनके मार्क्स उतने अच्छे नहीं आते थे, लेकिन वह हार्डवर्किंग स्टूडेंट्स में से एक थे। उनका हमेशा सिर्फ एक फोकस रहता था कि हर दिन कुछ नया सीखा जाए और इसीलिए वह घंटो घंटो तक पढ़ाई किया करते थे।
बचपन से ही वह इंडियन आर्मी फोर्सेज (Indian Army Forces) के पायलट बनना चाहते थे इसीलिए उन्होंने अपनी स्कूलिंग खत्म होने के बाद मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के तहत एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया। यह किस्सा तब का है जब मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में पढ़ रहे थे।
उस वक्त वह एक सीनियर क्लास कॉलेज के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे और उस प्रोजेक्ट के प्रोग्रेस को लेकर कॉलेज के डीन उनसे बहुत गुस्सा हो गए और उन्होंने एपीजे अब्दुल कलाम जी से कहा कि अगर तीन दिन में यह प्रोजेक्ट कंप्लीट नहीं हुआ तो मैं तुम्हारी स्कॉलरशिप कैंसल कर दूंगा।
यह बात सुनकर एपीजे बहुत घबरा गए और उन्होंने दिन रात बैठकर तीन दिन के अंदर उस प्रोजेक्ट को कंप्लीट कर दिया। यह देखकर उनके डीन बहुत खुश हो गए और उन्होंने एपीजे अब्दुल कलाम जी से कहा कि मैं जानता था तुम्हें काबिलियत है, लेकिन मैं देखना चाहता था कि तुमने मुश्किल वक्त को सहन करने की क्षमता है या नहीं।
कॉलेज खत्म होने के बाद जब एपीजे अब्दुल कलाम जी ने इंडियन आर्मी फोर्सेज में फाइटर पायलट की पोस्ट के लिए अप्लाई किया, उस वक्त सिर्फ आठ वैकेंसीज ओपन थी और बदकिस्मती से उनका नौवा नंबर आया और वह आम फोर्सेज के लिए सिलेक्ट नहीं हो पाए।
जिसके बाद उन्होंने डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन यानी कि DRDO ज्वॉइन की, जहां वह छोटे से होवरक्राफ्ट डिजाइन किया करते थे। लेकिन वह डीआरडीओ में अपनी जॉब से खुश नहीं थे, क्योंकि उन्हें वहां कुछ नया सीखने नहीं मिल रहा था।
तभी उनकी मुलाकात हमारे इसरो के फाउंडर विक्रम साराभाई जी से हुई। उनको एपीजे अब्दुल कलाम जी की मेहनत और हर वक्त कुछ नया सीखने की चाहत बहुत पसंद आई और उसके बाद उनका डीआरडीओ से इसरो में ट्रांसफर हुआ।
इसरो में एपीजे अब्दुल कलाम इंडिया के सबसे पहले सक्सेसफुल सैटेलाइट लॉन्च एसएलवी थ्री रोहिणी (SLV3 Rohini) के प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे। उसके बाद उन्होंने कई प्रोजेक्ट इनिशिएट किए। आईटी में पृथ्वी मिसाइल सक्सेसफुली लॉन्च करने के बाद उन्हें नासा ने जॉब ऑफर करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने उसे ठुकरा दिया।
पृथ्वी मिसाइल (Prithvi Missile) के सक्सेसफुल लॉन्च के बाद इंडियन कैबिनेट के तहत रिसर्च के लिए थ्री बिलियन रुपीस के फंड अलॉट कर दिए जिसके बाद एपीजे अब्दुल कलाम जी ने उनकी टीम के साथ मिलकर अग्नि, त्रिशूल, आकाश, नाग जैसे कई बड़े मिसाइल लॉन्च किए।
उनके लीडरशिप के अंडर इंडिया को सबसे बड़ी कामयाबी तब मिली जब में इंडिया ने सीक्रेटली सारे न्यूक्लियर बम टेस्ट करके इंडिया को सारी दुनिया के सामने एक न्यूक्लियर पावर घोषित कर दिया। जिसके बाद एपीजे अब्दुल कलाम जी को मिसाइल मैन ऑफ इंडिया (MIssile Man of India) के नाम से बुलाया गया।
2002 में एपीजे इंडिया के इलेवंथ प्रेसिडेंट बने। अपने प्रेसिडेंशियल टर्म के वक्त जब वह केरला विजिट के लिए गए थे, उस वक्त उन्होंने दो लोगों को केरला के राजभवन में प्रेसिडेंशियल गेस्ट इनवाइट किया था। वह दो लोग कोई बड़े सेलिब्रिटी नहीं थे, बल्कि एक चपरासी और एक छोटे से होटल का मालिक था, जिनके साथ उनकी त्रिवेंद्रम में काम करते वक्त दोस्ती हो गई थी।
ऐसा ही एक किस्सा दो हज़ार पाँच का है जब उनकी फैमिली राष्ट्रपति भवन में रहने आई थी। लगभग 10 दिन तक उनकी फैमिली के 52 लोग राष्ट्रपति भवन में थे और उनके जाने के बाद एपीजे अब्दुल कलाम जी ने 3,52,000 अपनी फैमिली के रहने और खाने का खर्चा सरकार को दिया था।
जब एक रिपोर्टर ने उनको यह पूछा कि आपने सरकार को पैसा क्यों दिया तो उन्होंने जवाब देते हुए कहा था कि सरकार मेरे रहने और खाने का पैसा देती है नाकि मेरे परिवार के। और इसी खुद्दारी ने पूरी दुनिया को इनसे प्यार करने पर मजबूर कर दिया।
इनके पास जायदाद कोई नहीं थी। अपनी किताबों के अलावा पर अपनी कहानी से और अपने कामों से यह मिसाइल मैन पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन गए।
2. Success Story in Hindi of the Great Ratan Tata
रतन टाटा को आज कौन नहीं जानता। आज की कहानी में हम रतन टाटा की सक्सेसफुल स्टोरी (Success Story in Hindi of Ratan Tata) के बारे में जानेंगे कि कैसे वह एक चेयरमैन से इतनी बड़ी कंपनी के मालिक बने।
आज का कोई भी युवा उन्हें प्रेरणा के रूप में देखता है कि कैसे उन्होंने नए स्टार्टअप से कई लोगों की जिंदगी बदल दी और लोगों को रोजगार देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया। रतन टाटा भारत के महान उद्योगपति, टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन और एक दरियादिल इंसान हैं।
रतन टाटा को 1991 में टाटा ग्रुप का चेयरमैन बनाया गया था और 21 साल इस पद पर काम करने के बाद वह इस पद से रिटायर हो गए। लेकिन रतन टाटा, टाटा ग्रुप चैरिटेबल ट्रस्ट के चेयरमैन पद पर बरकरार रहे। रतन टाटा की कहानी के जरिए आज हम आपको उनके शुरुआती जीवन और उनकी सफलताओं के बारे में बताने जा रहे हैं।
दोस्तों, रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को सूरत, गुजरात में हुआ था। इनके पिता का नाम नवल टाटा है और इनकी माता का नाम सोनू टाटा और इनकी एक सौतेली मां भी है जिनका नाम सिमोन टाटा है। जब रतन 10 साल के थे तब उनके माता पिता ने औपचारिक तौर पर एक दूसरे से तलाक ले लिया था। तब उनके और उनके भाई जिमी की जिम्मेदारी उनकी दादी नवल बाई टाटा ने ले ली और उनका पालन पोषण बहुत अच्छे से किया।
रतन टाटा की शुरुआती पढ़ाई मुंबई के कैंपियन स्कूल में हुई और उन्होंने अपनी 10वीं तक पढ़ाई मुंबई में की और उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह विदेश चले गएजहां उन्होंने करनाल यूनिवर्सिटी से 1962 में बीएस वास्तुकला में स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग की। उसके बाद उन्होंने हॉवर्ड बिजनेस स्कूल से 1975 में अपना एडवांस मैनेजमेंट प्रोग्रामिंग कोर्स पूरा किया।
अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद वह भारत लौट आए और टाटा ग्रुप में काम किया। शुरुआती दिनों में उन्होंने टाटा स्टील के साथ शॉप फ्लोर पर काम किया। उसने कुछ सालों बाद उन्हें राष्ट्रीय रेडियो और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी का प्रभारी निर्देशक बनाया गया। उसके बाद उन्हें टाटा इंडस्ट्रीज का चेयरमैन बनाया गया और आखिरी में जेआरडी टाटा की टाटा ग्रुप के चेयरमैन पद को छोड़ने के बाद रतन टाटा को टाटा ग्रुप का चेयरमैन बना दिया।
टाटा साल्ट से लेकर टाटा सॉफ्टवेयर तक सभी में रतन टाटा की कड़ी मेहनत और रचनात्मक दिमाग है। सबसे छोटी और सस्ती कार जिसे एक आम आदमी भी खरीद सके, इस सोच के साथ उन्होंने नैनो कार बाजार में उतारी। हालांकि नैनो कार उनकी सोच के मुताबिक काम नहीं कर पाई और कुछ साल बाद इसके प्रोडक्शन को बंद कर दिया गया।
एक पत्रिका के अनुसार रतन टाटा अपनी पूंजी का 66% दान करते हैं। जहाँ COVID जैसी महामारी ने देश को चारों ओर से घेर लिया था ऐसे वित्तीय संकट में टाटा ग्रुप ने अपनी पूंजी में से 1500 करोड़ का फंड दिया। हालांकि आज रतन टाटा टाटा ग्रुप के चेयरमैन पद से रिटायर हो चुके हैं, लेकिन वह आज भी कामकाज में लगे हुए हैं और नए नए इनोवेटिव आइडियाज के साथ कुछ न कुछ क्रिएटिव सोचते हैं, जिससे कि एक नई युवा पीढ़ी को रोजगार मिल सके।
ऐसे महान व्यक्ति के बारे में जितना कहा जाए उतना कम है। हमें उनसे सीख लेनी चाहिए कि सफलता की सिर्फ एक ही कुंजी है और वह है मेहनत।
रतन टाटा एक ऐसे शख्श हैं जो अपनी कमाई का ज्यादातर हिस्सा दान में दे देते हैं और वह युवाओं को अक्सर कुछ नया करने और सीखने की सलाह देते हैं। आजकल ऐसे लोग बहुत कम ही होते हैं जो अपनी कमाई हुई चीजों को दान में देना चाहते हैं।
रतन टाटा हम सभी के लिए प्रेरणा के स्तोत्र इसलिए हैं क्योंकि वह हमेशा सबसे पहले अपने काम को इम्पोर्टेंस देते हैं। वह कहते हैं कि अगर आपको लाइफ में सफल होना है तो सबसे पहले अपने काम में फोकस करिए न कि उन चीजों में जो आपको अपने मकसद से दूर करती है।
साथ ही रतन टाटा दूसरों को बहुत सम्मान देते हैं। वह अपने कर्मचारियों चाहे वह बड़ा हो या छोटा, सब से प्यार से मिलते हैं और बातें करते हैं। रतन टाटा का यह भी कहना है कि आपको अगर सफल होना है तो हमेशा साथ मिलकर काम करिए। भले किसी काम की शुरुआत आप अकेले ही क्यों ना करें, लेकिन अगर आपको उस काम को आगे भी सफलतापूर्वक बढ़ाना है तो लोगों के साथ जुड़े रहें और उनके साथ मिलकर काम को आगे बढ़ाएं।
रतन टाटा की नेटवर्थ की बात करें जो 2024 की है तो वह 500 मिलियन अमरीकी डॉलर मानी गई है जो कि भारतीय मुद्रा में लगभग 3,775 करोड़ बनती है।
रतन टाटा फिलहाल मुंबई में रहते हैं। उन्होंने एक लग्जरी हाउस 2015 में खरीदा था। इस रियल एस्टेट संपत्ति का अनुमानित मूल्य लगभग 150 करोड़ है। वह पूरे भारत में कई संपत्तियों के मालिक हैं। रतन टाटा का कार कलेक्शन काफी बड़ा है। उनके पास दुनिया की कुछ बेहतरीन लग्जरी कारें हैं।
श्री रतन टाटा के कारक लक्षणों में कार ब्रांडों में मर्सिडीज बेंज, फरारी, होंडा सीबी, रेंज रोवर, टाटा जैगुआर और सुपर एट शामिल है। अगर उनकी पूरी कार कलेक्शन की बात की जाए कि उन्होंने अपनी कारों पर कितना खर्च किया है तो रिकॉर्ड के मुताबिक उन्होंने ₹19 करोड़ अपनी कारों पर खर्च किया हुआ है।
तो दोस्तों, यह थी रतन टाटा की एक छोटी सी सफलता की कहानी जिससे कि हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
3. Jamshedji Tata Motivational Story in Hindi for Success
दोस्तों, मुझे नहीं लगता कि आपको टाटा ग्रुप के बारे में कोई इंट्रोडक्शन देने की जरूरत है क्योंकि सिर्फ इंडिया ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया टाटा के बारे में भलीभांति जानती है कि टाटा इंडिया की एक बहुत बड़ी ग्रुप है जिसमें कि टाटा के खुद के सैकड़ों कंपनी की अलग अलग ब्रांच है जो कि टाटा की सब कंपनी पूरे दुनियाभर में खूब धूम मचा रही है।
और तो और शायद आपको यह ना मालूम हो कि मुंबई के ताज होटल को भी बनाने में टाटा का बहुत बड़ा हाथ था और इन्हीं सब कारणों से टाटा को फादर ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (TATA – Father of Indian Industries) के नाम से जाना जाता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि टाटा कंपनी को किसने और कैसे स्टैब्लिश किया था?
दोस्तों, TATA कंपनी की शुरुआत जमशेदजी टाटा (Jamshed Tata) ने किया था क्योंकि उनका जन्म जब भारत आजाद नहीं हुआ था तब 3 मार्च को बरोडा के नवसारी नाम के एक शहर में हुआ था। जमशेदजी के पिता का नाम सरवन टाटा और उनके मां का नाम जीवन भाई टाटा था जो कि जमशेद जी के पिता पारसी समुदाय से बिलॉन्ग करते थे।
उनके इस पारसी समुदाय में कभी भी किसी ने कभी बिजनेस नहीं किया था और इसीलिए जमशेदजी के पिता सरवन जी पूरे पारसी समुदाय के पहले इंसान थे जो कि उन्होंने खुद के बिजनेस को स्टार्ट किया था क्योंकि वो मुम्बई में एक्सपोर्ट इम्पोर्ट का काम किया करते थे।
जमशेदजी जब सिर्फ 14 साल के थे तभी वो अपने पिता के बिजनेस को मुम्बई में जॉइन कर लिए थे और उन्होंने अपने स्टडी को फिनिक्स नाम के कॉलेज से किया जो कि ज मुंबई की सबसे पुरानी कॉलेज है। जब वो पढ़ाई ही कर रहे थे तभी वो हीराबाई दाबू नाम की एक लड़की से शादी कर लिए थे।
जब उन्होंने 1950 में ग्रैजुएशन को कंप्लीट कर लिया फिर उसके बाद वो पूरी तरह से अपने पैर को खुद के बिजनेस में जमाना चाहते थे। लेकिन उस टाइम पर नए बिजनेस को स्टैब्लिश करना एक बहुत बड़ी चुनौती की बात होती थी क्योंकि आप उस टाइम सभी भारतीयों को अंग्रेज के गुलाम रहकर और उनके कानून के हिसाब से चलना पड़ता था।
लेकिन जमशेदजी अपने पिता के बिजनेस को एक अलग स्तर पर ले जाना चाहते थे इसलिए वो इंग्लैंड, चाइना, यूरोप, अमरीका सब जगह अपने पिता के बिजनेस के ब्रांच को स्टैब्लिश करना चाहते थे जो कि जमशेद जी, इंग्लैंड, चाइना, अमरीका सब जगह भ्रमण भी कर रहे थे और वो अपने जिन्दगी के पूरे 29 साल तक अपने पिता के बिजनेस में काम करते रहे।
फिर उसके बाद उन्होंने कैसे ना कैसे करके 1868 में सिर्फ ₹25,000 के मदद से खुद की एक ट्रेडिंग कंपनी को स्टैबलिश किए और उन्होंने मुम्बई में 1869 में एक कंगाल तेल मिल को खरीदा जिसे जमशेदजी ने कॉटन मिल में तब्दील कर दिया और उन्होंने दो साल बाद अपने उसी कॉटन मिल को बेच दिया ताकि उस जगह को बेचकर अच्छे खासे प्रॉफिट हो जाए।
फिर उसके बाद उन्होंने 1874 में एक और कॉटन मिल को नागपुर में सेटअप किया। और एक बार की बात है कि यही जमशेदजी टाटा मुंबई के वर्सोवा होटल में गए थे जो कि उस टाइम पूरे भारत में उन जैसा होटल शायद ही कोई हो। लेकिन जब वो वहां पर पहुंचे तो उन्हें होटल में घुसने से ही बिल्कुल मना कर दिया गया और यहां तक कि माना जाता है कि उस होटल के गेट पर कुछ इस तरीके से लाइन लिखी गई थी कि कुत्तों और भारतीयों का प्रवेश करना मना है।
और जब जमशेदजी ने कुछ ऐसा देखा तो उन्होंने उस भेदभाव को मिटाने के लिए ये चाहा कि उस होटल से कई गुना ज्यादा अच्छा होटल खुद की होटल को तैयार करेंगे जो कि ये उनके लाइफ का एक बहुत बड़ा सपना था।
साथ ही उनकी लाइफ का एक और बड़ा सपना था कि वो इंटरनेशनल लेवल पर Iron और Steel कंपनी को स्टैबलिश करेंगे और एक वर्ल्ड क्लास के Learning Institute को भी स्टैबलिश करेंगे। और तो और एक हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्लांट Hydro Electric Plant को भी स्टैबलिश करेंगे।
हालाकि दुख की बात ये कि उन्होंने अपने जीते जी तो ये सब चीजें तो स्टैबलिश नहीं कर पाएं लेकिन उनके लाइफ का जो सबसे बड़ा भेदभाव को मिटाने का सपना था उन्होंने अपने जीते जी के सपनों को पूरा कर लिया था। और वो सपना कुछ और नहीं बल्कि मुंबई के ताज होटल ही है, जिसे 3 दिसंबर 1903 को ओपनिंग की गई थी जिसको बनाने में पूरे 11 मिलियन रुपए लगे थे।
ताज होटल उस टाइम क्या आज भी एक ऐसी होटल है जिसके जैसा होटल पूरे भारत में कहीं नहीं है और ऐसे ही जमशेदजी अपने जीते जी थे। बहुत सारे कंपनी, मिल, पावर प्लांट, और होटल जैसे चीजों का टाटा नाम से स्टैब्लिश करते गए और उनके मरने के बाद भी न जाने टाटा के कितनी और बिजनेस को स्टैबलिश की गई थी।
और अगर उनके मृत्यु की बात की जाए तो जब जमशेदजी टाटा अपने बिजनेस ट्रिप पर जर्मनी गए हुए थे तभी वहां पर उनकी तबियत अचानक से बहुत ज्यादा खराब हो गई थी और 19 मई 1904 को आखिरकार उनकी मौत हो गई थी।
4. Dhirubhai Ambani Success Motivational Stories In Hindi
बड़ा सोचो, जल्दी सोचो और आगे की सोचो क्योंकि विचारों पर किसी का भी एक अधिकार नहीं है। ऐसा कहना है धीरूभाई अंबानी का जिन्होंने एक साधारण परिवार से दुनिया के सबसे अमीर इंसानों में से एक होने का संघर्ष भरा रास्ता तय किया।
बहुत कम लोग जानते होंगे कि धीरूभाई का वास्तविक नाम धीरजलाल गोवर्धनदास अंबानी है। धीरूभाई का जन्म 28 दिसंबर 1932 को गुजरात के चोरवाड गांव में हुआ था। हाईस्कूल में ही उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और उसके बाद पकौड़े बेचना शुरू कर दिया।
धीरू भाई का मानना था कि पैसे से पढ़ाई का कोई संबंध नहीं है क्योंकि यह जरूरी नहीं कि दुनिया में एक पढ़ा लिखा इंसान ही पैसे कमा सकता है। कुछ सालों तक घूम घूमकर पकौड़े बेचने के बाद सन् 1948 में 16 साल की उम्र में वे अपने भाई रमणीक लाल की सहायता से अपने एक दोस्त के साथ यमन के एडेन शहर काम करने चले गए।
एडेन पहुंचकर उन्होंने पहले पेट्रोल पंप पर काम किया। फिर कुछ दिनों बाद उसी कंपनी में क्लर्क की पोस्ट पर ₹300 प्रतिमाह के वेतन पर काम करने लगे। वह अपने दिनभर के काम के बाद भी कोई न कोई पार्टटाइम काम करते रहते थे, जिससे उनके साथियों में उनके पास सबसे ज्यादा पैसा था।
लेकिन फिर भी उनके दिमाग में कहीं न कहीं रहता था कि उन्हें अगर अमीर बनना है तो अपना खुद का बिजनेस करना ही होगा और बिजनस के लिए पैसे तो चाहिए होंगे। कई जगहों पर काम करने के बावजूद उन्होंने कभी भी अपने काम में कमी नहीं की और पूरी मेहनत और लगन से अपने दायित्वों को पूरा किया।
इसीलिए काम से खुश होकर कंपनी के मालिक ने उनका प्रमोशन एक मैनेजर के पद पर कर दिया। लेकिन थोड़े दिन उस काम को करने के बाद उन्होंने काम छोड़ दिया और अपने वतन हिन्दुस्तान चले आए। क्योंकि उनके दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था।
1955 में उन्होंने ₹15,000 लगाकर अपने चचेरे भाई चम्पकलाल दमानी के साथ मिलकर मसालों के निर्यात और पॉलिस्टर धागे के आयात का बिजनस स्टार्ट किया। उनके मेहनत के दम पर अगले कुछ सालों में कंपनी का टर्नओवर ₹10 लाख सालाना हो गया।
उस समय पॉलिस्टर से बने हुए कपड़े भारत में नए थे और यह सूती के मुकाबले लोगों द्वारा ज्यादा पसंद किया जाने लगा क्योंकि यह सस्ता और टिकाऊ था और इसमें चमक होने के कारण पुराने होने के बाद भी यह नया जैसा दिखाई देता था। और लोगों द्वारा पसंद किए जाने की वजह से जल्द ही उनका मुनाफा कई गुना बढ़ गया।
कुछ वर्षों के बाद धीरूभाई अंबानी और चम्पकलाल दमानी की व्यावसायिक साझेदारी समाप्त हो गई क्योंकि दोनों के स्वभाव और व्यापार करने के तरीके बिल्कुल अलग थे। लेकिन धीरूभाई ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और देखते ही देखते उन्होंने समय के साथ चलते हुए टेलीकॉम, एनर्जी, इलेक्ट्रिसिटी और पेट्रोलियम जैसे व्यापार में कदम रखते गए।
आप उनकी सफलता का अनुमान इसी बात से लगा सकते हैं कि आज धीरू भाई के कंपनी में 90,000 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं और भारत में उनकी कंपनी आज भी टॉप पर है। दोस्तो, अगर समय की मांग के अनुरूप आपने अपने आप को ढाल लिया ना तो कुछ भी असंभव नहीं रह जाता।
6 जुलाई 2002 को धीरूभाई अंबानी ने दुनिया से विदा ली। लेकिन उनके स्वभाव और विनम्रता की वजह से वह आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं।
धीरू भाई का कहना है जो सपने देखने की हिम्मत करते हैं वो पूरी दुनिया को जीत सकते हैं। हम दुनिया को साबित कर सकते हैं कि भारत एक सक्षम राष्ट्र है और हम भारतीयों को प्रतियोगिता से डर नहीं लगता।
5. Alakh Pandey Success Motivational Kahani in Hindi
दोस्तों अगर आप एक स्टूडेंट हूं तो आज के इस पोस्ट में मैं आपको उस बंदे की लाइफ स्टोरी बताने जा रहा हूं जिसे आप में से ज्यादातर लोग जानते हैं और सिर्फ जानते ही नहीं उसे अपना गुरु मानते होंगे। और आज इस बंदे की स्ट्रगल भरी कहानी सुनकर आप यह भी जान जाओगी कि चाहे लाइफ में कितनी ही प्रॉब्लम्स क्यों ना आ जाएं, हमें कभी भी गिव अप नहीं करना चाहिए।
ये कहानी शुरू होती है 2 अक्टूबर 1991 को जब उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में एक लड़के का जन्म होता है। वैसे तो हर सेकंड दुनिया में कई बच्चों का जन्म होता है, लेकिन उनमें से बड़ा होकर कौन एक नया कीर्तिमान स्थापित करेगा, यह कोई नहीं जानता।
हमारी आज की कहानी का हीरो भी एक मिडिल क्लास फैमिली से था। एक ऐसा वक्त आया जब उसके परिवार की फाइनेंशियल कंडीशन बहुत ज्यादा बिगड़ गई। उस लड़के के पास एक नोटबुक खरीदने तक के पैसे नहीं बचे। जब वह 6th class में था तो पैसों की तंगी की वजह से उन्हें अपना घर बेचना पड़ा।
इसने अपनी फैमिली को सपोर्ट करने के लिए एक क्लास से ही छोटे बच्चों को ट्यूशन देना शुरू कर दिया था। जब वो 12th class में आया तो फिजिक्स (Physics) इसका सबसे फेवरेट सब्जेक्ट बन चुका था। उसने मजबूरी में ट्यूशन देना शुरू किया था, लेकिन अब उसे इसमें मजा आने लगा था।
उसने अपने 12th class की बुक्स के पीछे यह लिखना शुरू कर दिया था कि I will be the biggest Physics Teacher of India। अब उसका सपना था इंडिया का नंबर वन फिजिक्स टीचर बनने का। लेकिन दोस्तों, आपके और आपके सपनों के बीच चुनौतियों की दीवार न खड़ी हो ऐसा तो नहीं हो सकता क्योंकि अगर ऐसा होता तो हर कोई अपना सपना पूरा कर लेता।
एक बार जिस कोचिंग इंस्टीट्यूट में बंदा पढ़ा रहा था वहां के स्टूडेंट्स के पेरेंट्स को यह पता लग गया कि यह तो खुद एक स्टूडेंट है। इस कारण से उसे वहां से निकाल दिया गया। अब उन्हें थोड़ी पता था कि जिसे वह निकाल रहे हैं, वह बंदा आगे बवाल मचाने वाला है।
जब इसने 12th कंप्लीट किया तो इंजीनियरिंग करने के लिए उसके पास पैसे नहीं थे। इसलिए उसने ₹1,80,000 का लोन लिया। लेकिन इंजीनियरिंग करते हुए भी उसने ट्यूशन देना नहीं छोड़ा।
उनके स्ट्रगल का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि उस कोचिंग तक जाने के लिए उनके पास एक साइकिल तक नहीं थी और उसकी तकलीफ को देखते हुए उस कोचिंग के मालिक ने उसे पुरानी स्प्लेंडर बाइक दी, जिससे वह कोचिंग तक आ सके। और आप विश्वास नहीं करोगे कि कई बार तो उस बाइक में पेट्रोल डलवाने तक के पैसे उसके पास नहीं होते थे।
जब वह अपने College के 3rd year में आया तो उसे पता लग चुका था कि वह बच्चों की जिंदगी सुधारने के लिए ही बना है। इसलिए उसने 3rd year में ही कॉलेज छोड़ दिया और फुल टाइम कोचिंग देना शुरू किया। लेकिन उसे लग रहा था कि अगर इंडिया का नंबर वन फिजिक्स टीचर बनना है तो ऐसे तो बात नहीं बनेगी। इसलिए 2014 में उसने अपना खुद का यूट्यूब चैनल स्टार्ट किया और यूट्यूब पर पढ़ाना शुरू किया।
एक साल तक लगातार मेहनत करने के बाद भी रिजल्ट नहीं मिला, लेकिन सपना तो पूरा करना था और उसी सपने को पूरा करने के लिए वह लगातार वीडियोज अपलोड करता रहा और तीन साल की मेहनत के बाद उसके सब्सक्राइबर थे सिर्फ 10,000।
दोस्तों! इतनी मेहनत करने के बाद भी अगर रिजल्ट न मिले तो कोई भी हार मान लेगा। लेकिन उसने हार नहीं मानी। वह कंसिस्टेंसी के साथ लगा रहा और मार्च 2019 में उसने वन मिलियन सब्सक्राइबर पूरे किए।
अब यह बंदा बड़े बड़े टेक ब्रांड्स की नजरों में आने लगा। उन्होंने इसे करोड़ों रुपए ऑफर किए, लेकिन उसने उन सारे ऑफर्स को ठुकरा दिया और 18 मई 2020 को खुद की Physics Wallah के नाम से एक एप्लीकेशन लॉन्च की, जिसे एक हफ्ते के अंदर ही 3 लाख से ज्यादा बार डाउनलोड किया गया।
बड़े बड़े Tech brands जिन courses के लाखों रुपए चार्ज कर रहे थे, वहीं Physics Wallah के कोर्सेज की स्टार्टिंग प्राइस थी मात्र ₹999। और आज इस बंदे ने बड़े बड़े टेक ब्रांड्स की नींदें उड़ा रखी हैं।
शायद अब मुझे बताने की जरूरत नहीं है कि उस बंदे का क्या नाम है लेकिन जिन्हें अभी भी नहीं पता चला तो मैं आपको बता दूं कि वह बंदा है टेक कंपनी फिजिक्स वाला के फाउंडर अलख पांडे जी।
दोस्तों, जिस बंदे को कभी कोचिंग से निकाल दिया गया था, आज उसकी कंपनी में 1900 एंप्लॉयीज काम करते हैं और आज इस कंपनी की वैल्यूएशन वन बिलियन डॉलर है। यानी कि लगभग 8000 करोड़ रुपए।
दोस्तों याद रखना कि सफलता एक बार में नहीं मिलती, उसे पाने के लिए खुद को घिसना पड़ता है। ताबड़ तोड़ मेहनत करनी पड़ती है तब जाकर कहीं सफलता मिलती है।
तो दोस्तों, आपको यह सफलता की मोटिवेशनल स्टोरी इन हिंदी (Success Story in Hindi) कैसी लगी हमें कमेंट में जरूर बताएं क्योंकि आपका विचार हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। और साथ ही इस पोस्ट को आप अपने दोस्तों को भी शेयर कीजियेगा।
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