नमस्कार दोस्तों, आज के इस ब्लॉगपोस्ट में हम बात करेंगे मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी कफन के सारांश (Kafan Story Summary in Hindi written by Munshi Premchand) के बारे में।
कफन कहानी मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई एक प्रसिद्ध हिंदी कहानी है, जो भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह कहानी गरीबी, मानवता, और समाज की क्रूर वास्तविकताओं का मार्मिक चित्रण करती है।
कहानी का मुख्य फोकस एक गरीब बाप-बेटे की जोड़ी पर है, जो अपनी ही दुनिया में मस्त रहते हैं और अपने आस-पास की परेशानियों से बेपरवाह होते हैं। कफन कहानी के माध्यम से प्रेमचंद ने समाज की निष्ठुरता और जीवन की कठिनाइयों को बखूबी उजागर किया है।
यह कहानी न केवल पाठकों को सोचने पर मजबूर करती है, बल्कि उनकी संवेदनाओं को भी झकझोर देती है। तो आइये जानते हैं मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी कफन की सारांश के बारे में।
कफन कहानी का सारांश: Munshi Premchand Kafan Summary in Hindi
कफन कहानी के मुख्य पात्र घीसू हैं। वह पारिवारिक मुखिया हैं। उनके परिवार में कुल तीन सदस्य हैं। उनका पुत्र माधव और बहू बुधिया। कहानी के दोनों प्रमुख घीसू और माधव आलसी और कामचोर हैं।
घीसू इतना कामचोर है कि वह यदि एक दिन काम करता है तो तीन दिन आराम और माधव इतना कामचोर है कि आधा घंटा काम करता है तो घंटे भर चिलम पीता है। गांव में काम की कमी न थी, परंतु उन दोनों के व्यवहार के कारण कोई दोनो को मजदूरी पर नहीं बुलाता था। इसलिए इन दोनों को कहीं भी मजदूरी नहीं मिलती।
घर में अगर मुट्ठी भर भी अनाज होता तो यह काम न करते। जब कुछ न बचता था तो घीसू पेड़ पर चढ़कर लकड़ियां तोड़ लाता और माधव उसे बाजार में बेच आता। उनका काम था रात में कहीं से लकड़ी तोड़ लाना, खेतों से गन्ने, आलू या मटर चुरा लाना और वे उसी प्रकार से अपना पेट भरते थे।
उनके पास घर के नाम पर एक झोंपड़ी थी और बाकी संपत्ति के नाम पर घर में मिट्टी के दो चार बर्तन थे। फटे पुराने कपड़े पहनकर दिन काट रहे थे। जब बिल्कुल फांके रह जाते तो कोई न कोई बहाना बनाकर मांगकर खाते थे। जिससे एक बार उधार लिया, दोबारा कभी दिया नहीं।
विचित्र जीवन था इन दोनों का। ये दोनों गालियां खाते, मार खाते, मगर कोई भी गम नहीं। कर्ज से लदे थे तो भी उन्हें कोई चिंता नहीं थी। अभिशाप से घिरकर भी आराम से रह रहे थे।
घीसू के जीवन से 60 वर्ष निकल गए थे। उसकी नौ संतानें थी, परंतु उनमें से केवल माधव ही बचा था। अब माधव भी अपने पिता के कदमों पर चल रहा था और यहां तक कि उससे भी एक कदम आगे निकल चुका था मानो अपने पिता का नाम रोशन कर रहा हो।
गत वर्ष पूर्व ही माधव की शादी हुई थी। उसकी पत्नी अत्यंत भोली एवं मेहनती थी। उसने आकर उनके खानदान को कुछ व्यवस्थित किया था। वह लोगों के घरों के काम करती और मजदूरी करके इन दोनों का पेट भरती थी। वह पिसाई करती, घास काटती और इससे घर के लिए आटे का इंतजाम करती और ये दोनों दिनरात उसे ही परेशान करते रहते थे।
अब यह दोनों ज्यादा आराम परस्त हो गए थे। दोनों मटर आलू की फसल दूसरों के खेतों से उखाड़ लाते और भून भान कर खा लेते।
सर्दी की ठंडी रात थी। पूरा गांव सोया पड़ा था। विवाह के एक वर्ष पश्चात माधव की पत्नी बुधिया प्रसव वेदना से कराह रही थी और झोपड़ के बाहर बाप बेटे दोनों बुझे अलाव के सामने चुपचाप बैठे हुए थे और कहीं से चुराकर लाए आलुओं को भून रहे थे।
झोपड़ी के अंदर माधव की बीवी बुधिया प्रसव वेदना से चिल्ला रही थी। वह इतनी पीड़ा ग्रसित थी कि सुनने वाले का दिल दहल जाता था। परंतु वे दोनों भूने हुए आलू खाने में लगे हुए थे। दोनों में से कोई बुधिया के पास नहीं जाना चाहता था। उनको एक दूसरे पर भरोसा नहीं था।
घीसू ने आलू निकालकर छीलते माधव को बुधिया के पास जाने के लिए कहा। लेकिन माधव अंदर नहीं जाता क्योंकि माधव को भय था कि अगर वह बुधिया को देखने झोंपड़ी में गया तो घीसू सारे आलू खा जाएगा। वे बुधिया के तड़प तड़पकर मरने से चिंतित नहीं थे। वह सोच रहे थे कि अगर बुधिया मर जाए तो अच्छा ही होगा, क्योंकि वह इन सब दुखों से मुक्त हो जाएंगे।
जब से वह इस घर में आई थी, ये लोग और ज्यादा आलसी हो चुके थे। जिस बुधिया ने इन दोनों का इतना खयाल रखा, आज ये दोनों उसके मरने का इंतजार कर रहे थे।
आलू खाने के बाद दोनों ने पानी पीया और वहीं चादर ओढ़कर सो गए। बुधिया की कराह को उन्होंने अनसुना कर दिया। बेचारी रातभर तड़पती रही और अंततः उनके प्राण पखेरू उड़ गए।
अगले दिन जब सुबह हुई तो माधव अंदर जाता है और देखता है कि बुधिया की मृत्यु हो चुकी है। बुधिया के मुख पर मक्खियां भिन्न भिनभिना रही थीं। सारा शरीर लहू से सना हुआ था। उसका बच्चा पेट में ही मर गया था।
वह भागकर बाहर आया। उसने घीसू को यह बताया और अब दोनों जोर जोर से हाय हाय करने लगे और छाती पीटने लगे। दोनों ने बनावटी रोना प्रारंभ किया जिससे गांव इकट्ठा हो गया। पडोस वालों ने जब यह रोना धोना सुना तो वह दौड़े आए और पुरानी मर्यादा के अनुसार इन अभागों को समझाने लगे।
कोई म्रित बुधिया को देखता तो कोई उन्हें सांत्वना देता था। लेकिन यह रोने पीटने का अवसर तो था नहीं। अब उन्हें बुधिया के दाह संस्कार के लिए लकड़ियों और कफन की चिंता थी। उन्हे आवश्यकता थी कफन और लकड़ी की। पर इन दोनों के घर में से तो पैसा एकदम गायब था।
बाप बेटे रोते रोते जमीदार के पास गए। आंखों में दीनता के आंसू भरकर घीसू ने जमीन पर सिर रखकर कहा, सरकार बड़ी विपत्ति में हूं। माधव की घरवाली गुजर गई है। रातभर हम उसकी सेवा करते रहे। दवा दारू से जो भी हो सका, सब कुछ किया। वह हमें दगा दे गई। आपका गुलाम अब आपके सिवा और कौन उसकी मिट्टी पार लगाएगा?
जमीदार इनको बिल्कुल भी पसंद न करता था और कई बार इन्हें पीट चुका था। क्योंकि ये वादा करके काम पर आते ही ना थे। जमीदार उनसे घृणा करता था, तथापि उसने दो रूपये फेंक दिए। फिर जमीदार की देखा देखी बनिए महाजनों ने पैसे दिए। कुल पांच रूपये जमा हो गए।
कहीं से अनाज मिल गया तो किसी ने लकड़ी दी। ऐसे ही करके संपूर्ण गांव से लोग इन्हें पैसा देना शुरू करते हैं और इनके पास एक अच्छी खासी रकम जमा हो जाती है। आज पहली बार वे रूपये के मालिक बने थे। अब वह पांच रूपये लेकर कफन खरीदने बाजार चले गए।
बाजार जाकर वे सोचने लगे और दोनों के मध्य वार्तालाप शुरू हो जाती है कि कोई हल्का सा कफन ले लें। लाश उठाते हुए रात हो जाएगी तब कफन पर किसका ध्यान जाएगा? घीसू कहता है कि कैसा बुरा रिवाज है कि जीते जी तन ढकने को चिथड़ा भी न मिला उसे मरने पर कफन चाहिए। कफन लाश के साथ ही तो जल जाता है।
दोनों अब बाजार में इधर उधर घूमते रहे और संयोग से वे आगे जाकर एक मधुशाला के सामने जा पहुंच गये। वहां से उन्होंने शराब की एक बोतल खरीद ली और सामने की दुकान से पूरियां और चटनी भी खरीदी।
उन्होंने तली हुई मछलियां खाई, वे पूड़ियां खाने लगे और अपनी भूख को शांत करने लगे। बीच बीच में उन्हें कफन की भी चिंता हुई। उन्होंने सोचा कि पड़ोसी कफन का तो प्रबंध कर ही देंगे। हां, अब की बार उन्हें पैसे न मिलेंगे।
आज बहुत दिनों बाद भरपेट खाने के बाद माधव ने बची हुई पूरियों की पत्तल भिखारी को दे दी जो खड़ा उनकी ओर भूखी आंखों से देख रहा था। किसी को देने के गौरव, आनंद और उत्साह का अनुभव उन्हें जिंदगी में पहली बार हुआ था। घीसू ने कहा, ले जा, खूब खा और आशीर्वाद दे।
अंत में दोनों भोजन और नाश्ते से मस्त होकर नाचने और गाने लगे। आज उन्हें जो भोजन मिला वह उन्हें कभी उम्रभर भी न मिला था। दोनों हृदय से बुधिया को आशीर्वाद दे रहे थे। दोनों कहने लगे कि वह बैकुण्ठ जायेगी। मधुशाला में सभी उनको देख रहे थे।
वह चले भी, कूदे भी, गिरे भी, मटके भी, भटके भी और आखिरी नशे में मदमस्त होकर वहीं गिर पड़े। और कहानी यहीं पर बिना किसी घोषणा के समाप्त हो जाती है।
कफन: मुंशी प्रेमचंद कहानी का सारांश (Kafan Story Summary in Hindi)
यह कहानी प्रेमचंद के यथार्थवाद का सर्वोच्च स्तर है। इसके दो दलित चरित्रों घीसू और माधव के माध्यम से प्रेमचंद दिखाते हैं कि भूख और गरीबी व्यक्ति को इस हद तक संवेदनहीन बना देती है कि अपने परिवार के व्यक्ति की मौत के बाद भी वह उसे विचलित नहीं करती।
इस यथार्थ का चरम बिंदु वहां उभरता है, जहां कफन के लिए इकट्ठे किए गए पैसों पर भी पेट की भूख भारी पड़ती है।
तो दोस्तों, आपको मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी कफन के सारांश (Kafan Story Summary in Hindi written by Munshi Premchand) कैसी लगी हमें कमेंट में जरूर बताएं क्योंकि आपका विचार हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। और साथ ही इस पोस्ट को आप अपने दोस्तों को भी शेयर कीजियेगा।
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